लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। दिल्ली में जन्मे लेकिन गोरखपुर की गलियों में पले-बढ़े पुनीत शुक्ला का जीवन एक साधारण शुरुआत से असाधारण रचनात्मकता तक का सफर है। बचपन से ही शांत स्वभाव और एकांतप्रिय रहे पुनीत को किताबों और कहानियों से ज़्यादा लगाव नहीं था—बल्कि उन्हें अपने खाली वक्त में कागज़ पर आकृतियाँ उकेरना भाता था। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि यही आदत एक दिन उनकी पहचान बन जाएगी।
बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के, स्कूल के दिनों से ही पुनीत चित्र बनाते आ रहे थे। शुरुआत में यह केवल एक शौक था, लेकिन कोविड-19 महामारी ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दे दिया। जब दुनिया थमी हुई थी, तब पुनीत ने खुद को एक गंभीर कलाकार के रूप में ढालने का निर्णय लिया। वह हैदराबाद में थे जब उन्हें भारतीय कॉमिक्स एसोसिएशन और WAVES Comics Creator Championship के बारे में पता चला। यह प्रतियोगिता उनके लिए एक अवसर से कहीं ज़्यादा, एक आत्म-खोज की यात्रा बन गई।

हर कॉमिक प्रतियोगिता की तरह, उन्हें न केवल एक अच्छा कलाकार बल्कि एक प्रतिभाशाली लेखक की भी जरूरत थी। यहीं पर उनकी मुलाकात डॉ. पीयूष कुमार से हुई। दोनों ने साथ मिलकर एक ऐसा विषय चुना, जो देशभक्ति और बलिदान की भावना से ओतप्रोत था—भारतीय सशस्त्र बल। उनके प्रोजेक्ट का नाम रखा गया WORTH DYING FOR। इस कॉमिक में उन्होंने हर हिस्से को एक क्लिफहैंगर के साथ समाप्त करने की योजना बनाई, जिससे पाठकों की रुचि अंत तक बनी रहे। पीयूष की लेखनी और पुनीत की चित्रकला ने मिलकर एक ऐसी रचना तैयार की, जो न केवल जजों का ध्यान खींचने में सफल रही, बल्कि उन्हें WAVES के देशव्यापी फाइनलिस्ट में शामिल कर दिया गया।
अब जब पुनीत ने यह मुकाम हासिल कर लिया है, तो उनके सपने और भी व्यापक हो चुके हैं। वह मानते हैं कि भारत में हजारों ऐसे युवा हैं जो रचनात्मक हैं, लेकिन उन्हें सही मार्गदर्शन और मंच नहीं मिल पाता। इसी सोच के साथ उन्होंने यह संकल्प लिया है कि वह एक एंकर आर्टिस्ट के रूप में काम करेंगे—ऐसे उभरते कलाकारों के लिए एक मार्गदर्शक बनेंगे जो कॉमिक्स की दुनिया में प्रवेश करना चाहते हैं लेकिन तकनीकी या रचनात्मक जानकारी की कमी के कारण पीछे रह जाते हैं।
पुनीत की योजना है कि सरकार और निजी संगठनों के सहयोग से वे विभिन्न शहरों में कार्यशालाएँ आयोजित करें, जिससे एक ठोस रचनात्मक समुदाय का निर्माण हो सके। उनके अनुसार, यदि सरकार इस अभियान को समर्थन देती है, तो यह न केवल युवाओं के लिए रोज़गार का माध्यम बन सकता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता को भी एक नई वैश्विक पहचान मिल सकती है।
WAVES जैसे मंच न केवल कलाकारों को पहचान देते हैं, बल्कि उन्हें प्रेरणा और दिशा भी प्रदान करते हैं—जहां चित्रों से कहानियाँ बनती हैं, और कहानियों से भविष्य.