क्या लिखूं उस महान शख्सियत परजिसने खुद स्वर्णिम इतिहास लिखा इरादे जिस के अटल सदावो शख्स रहा है अटल खड़ा लेकर कलम की ताकत कोक्षेत्र पत्रिकारिता का चुनाभावो से भरा कवि ह्रदयन बांध सका मन के भावों कोपिरो मन के भावो को शब्दो मेकविताओ मे ढाल दिया। रखा जब कदम …
Read More »लेख/स्तम्भ
अटल जन्मशती पर विशेष : छः पैसे की राह से सत्ता शिखर तक
(डॉ. एस.के. गोपाल) भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का लखनऊ से रिश्ता केवल एक निर्वाचन क्षेत्र का नहीं था बल्कि वह संबंध आत्मीयता, संघर्ष और संस्कारों से बना हुआ था। वे लखनऊ से सांसद रहे और इसी शहर की जनता के विश्वास के सहारे देश के प्रधानमंत्री बने। लखनऊ उनके …
Read More »जी -राम -जी से अब मजदूरों को मिलेगी रोजगार की वैधानिक गारंटी
जी राम जी – है गारंटी काम की (मृत्युंजय दीक्षित) संसद के शीतकालीन सत्र में विकसित भारत -जी राम जी; गारंटी फार रोजगार एंड आजीविका मिशन ग्रामीण विधेयक -2025 पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाने के साथ ही विधिवत कानून बन चुका है। संसद के दोनों सदनों …
Read More »क्या सनातन का विरोध और अपमान ही सेक्युलर राजनीति है?
(मृत्युंजय दीक्षित) भारत विभाजन के साथ मिली स्वाधीनता से कोई सबक न लेते हुए भारत की राजनीति आज तक तुष्टिकरण के आधार पर चलती रही है। मुस्लिम वोट बैंक को प्रसन्न करने के लिए तथाकथित समाजवादी लालू ने सम्मानित नेता आडवाणी जी को जेल में डाल दिया और एक कदम …
Read More »भारतीय राजनीति में उपनामों की परंपरा : डॉ अतुल मलिकराम
भारत हो या विश्व का कोई भी देश, राजनीति में राजनेताओं को दिए जाने वाले उपनाम केवल संबोधन के लिए नहीं होते, बल्कि जनता के मन में बसे उनके व्यक्तित्व, योगदान और छवि का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। आज़ादी के पहले या बाद में, यह परंपरा निरंतर चलती रही है। …
Read More »वैवाहिक संस्कार में घुलते नए लोकाचार
डॉ. एस. के. गोपाल भारतीय जीवन में विवाह केवल एक उत्सव नहीं बल्कि उस सांस्कृतिक श्रृंखला का केंद्रीय संस्कार है, जिसकी डोर पीढ़ियों से चली आ रही है। विवाह का अर्थ मात्र दो व्यक्तियों का साथ आना नहीं, बल्कि दो कुलों, दो परिवारों और दो आत्माओं का ऐसा मिलन है, …
Read More »अनदेखी से अवरुद्ध होती लोकतंत्र की धड़कन
डॉ. एस. के. गोपाल लोकतंत्र केवल चुनावी प्रक्रिया का नाम नहीं है; यह सम्मान, सहभागिता और संस्थागत संतुलन की सतत साधना है। जब संस्कृति, भाषा और कलाओं जैसे संवेदनशील क्षेत्र उपेक्षा के शिकार होने लगें, तो वह केवल सांस्कृतिक क्षय नहीं होता, वह लोकतंत्र की धड़कन को धीमा करने वाला …
Read More »गली–गली में इतिहास, सड़क–सड़क में राजनीति
व्यंग्यबाण डॉ. एस. के. गोपाल इतिहासविद् पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीन कहा करते थे- “जहाँ संसार की प्राचीन सभ्यताएँ थीं, वहाँ गलियाँ थीं, सड़कें नहीं।” उनकी बात में सिर्फ इतिहास नहीं, भारतीय समाज का पूरा मनोविज्ञान छुपा है। गली- हमारे शहरों की आत्मा, मोहल्लों का चरित्र और जीवन का वह रास्ता …
Read More »रचनात्मक हस्तक्षेप है ओटीटी सामग्री के नियमन की मांग
डॉ. एस.के. गोपाल इस वर्ष हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद के रीवा अधिवेशन में ओटीटी प्लेटफार्मों और गेमिंग एप्स के नियमन की जो मांग उठाई गई, वह केवल सांस्कृतिक शुचिता का प्रश्न नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के भविष्य से जुड़ा एक अत्यंत गंभीर मुद्दा है। परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव …
Read More »विधायी मूल्यों का संरक्षण आवश्यक
डॉ. एस. के. गोपाल जहाँ आज उत्तर प्रदेश का भव्य विधान भवन स्वाभिमान से खड़ा है, कभी वहाँ एक खुला मैदान हुआ करता था। अंग्रेजी शासन के समय तक इलाहाबाद ही प्रदेश की राजधानी थी और समस्त प्रशासनिक कार्य वहीं से संचालित होते थे। परंतु जैसे-जैसे अंग्रेजों का विस्तार बढ़ता …
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