(केंद्रीय युवा कार्यक्रम एवं खेल तथा श्रम एवं रोजगार मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया की कलम से) भारत अपनी स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष-2047 की ओर आगे बढ़ रहा है, ऐसे में हमारे युवा विकसित भारत के निर्माण के हमारे मिशन में सबसे आगे हैं। बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले एक लाख …
Read More »लेख/स्तम्भ
एक देश एक चुनाव : राष्ट्र की आवश्यकता
(केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की कलम से) ‘एक देश एक चुनाव’ पर बनी उच्च स्तरीय कमिटी की सिफारिशों को केन्द्रीय केबिनेट ने मंजूर कर लिया है। हमारी सरकार की इच्छा अगले पांच वर्षों में इसे सारे देश में लागू करने की है। यह कोई राजनैतिक मुद्दा नहीं बल्कि राष्ट्र की …
Read More »श्रद्धांजलि
क्या लिखूं उस महान शख्सियत परजिसने खुद स्वर्णिम इतिहास रचाइरादे जिस के अटल सदावो शख्स रहा है अटल खड़ालेकर कलम की ताकत कोपत्रकारिता क्षेत्र चुनाभावो से भरा कवि ह्रदयन रोक सका मन के भावों कोपिरो शब्दो मे भावो कोकविताओ को आकार दियाजब रखा कदम सियासत मेफिर से एक नया इतिहास …
Read More »बहुउद्देशीय पैक्स- ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बदलाव का कारक
डॉ. हेमा यादव, निदेशक, VAMNICOM भारत में लगभग 2,70,000 ग्राम पंचायतें हैं, फिर भी इनमें से कई स्थानीय निकाय प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS), डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों से वंचित हैं। ऋण, आवश्यक सांमग्री, बाजार और रोजगार प्रदान करने में इन प्राथमिक-स्तर की सहकारी समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका को …
Read More »सीरस वृक्ष : महत्व और महात्माजी
आदरणीय महात्माजी, व बाबा विनोबा के प्रकृति चिंतन, के संबंध में लिखा हुआ काम ही है परंतु संतों का क्रियात्मक निसर्ग संरक्षण अद्भुत है जो कि यहां वर्धा जिले की गांधीजी व बाबा विनोबा की विचारवादी संस्था परिसर में आज भी नजर आता है। मगनवाड़ी हो या एमगिरी हो सेवाग्राम …
Read More »काश
निधि श्रीवास्तव काश कि तुम मैं होतेतो जान पातेकि चाहिए मुझे भी एक हिस्सातुम्हारे घर का नहींतुम्हारे दिल काजहां बसते हैंहर रिश्ते नातेसिवाय मेरे..काश कि तुम मैं होतेतो जान पातेकि इन नीरव सी आंखों मेंबसते हैं कुछ भाव मेरेहृदय में पनपते हैंकुछ अहसास मेरेकाश कि तुम मैं होतेतो जान पातेकि …
Read More »सामाजिक न्याय की योद्धा अनुप्रिया
कुछ सवाल एक नहीं, अनेक बार उठते रहे हैं, जैसे स्वतंत्रता के बाद दलित स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को भुला दिया गया, जिन्हें याद रखा गया, उनकी पहचान भी मिटाने की कोशिश की जा रही है। दलित पिछड़े समाज को आज भी देश के कई हिस्सों में अछूत की नजर …
Read More »और सब बढ़िया…..!
सुख और दुःख, हमारे जीवन के दो पहिये हैं, दोनों की धुरी पर ही जीवन की गाड़ी चलती है। जीवन में जितना सुख आता है उतना ही दुःख भी आता है। फिर भी हम सुख का स्वागत तो खुले दिल से करते हैं लेकिन दुःख का नहीं….। जबकि हम भी …
Read More »आसान नहीं है एक स्त्री के लिए दीवाली की सफाई
(संध्या श्रीवास्तव) यूं ही लोग नहीं कहतेआसान नहीं है दीवाली की सफाईतन मन दोनों ही महसूस करते हैंएक कसक एक दर्दहर साल की तरह इस साल भीजब करने बैठी दीवाली की सफाईकोने कोने से निकाल करएक एक सामान को लगी झाड़नेसबसे पहले नजर आया वो बक्साजिसमें मम्मी पापा ने सहेज …
Read More »अश्लीलता की बाढ़ में बर्बाद होती युवा पीढ़ी
सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर बढ़ती अश्लीलता, देश के लिए नई चुनौती खड़ी कर रही है… भारतीय संस्कृति में सदाचार, चरित्र निर्माण, विनम्रता, प्रेम, दया, त्याग, और आदर-सम्मान जैसे सद्गुणों को हमेशा से ही प्रमुखता दी गई है। इसके बावजूद, समाज में बढ़ते अपराध और नैतिक पतन की ख़बरें …
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