लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। भारत और विदेशों के विद्वानों तथा प्रतिभागियों को एक मंच पर लाकर दक्षिण एशियाई अध्ययनों के विविध आयामों पर संवाद, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आलोचनात्मक विमर्श को प्रोत्साहित करने के लिए एमिटी यूनिवर्सिटी में सोमवार को ‘‘यूनीकनेस एण्ड रिलेवेंसेस ऑफ साउथ एशियन स्टडीज इन कंटेंम्परेरी वर्ल्ड” विषय पर आधारित 10 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला (ऑटम स्कूल) का शुभारंभ हुआ।
कार्यशाला का आयोजन एमिटी स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज द्वारा उप्साला यूनिवर्सिटी, स्वीडन के सहयोग से किया जा रहा है। कार्यशाला 6 से 16 अक्टूबर 2025 तक चलेगी।

इंडोलॉजी विभाग, यूनिवर्सिटी ऑफ ट्यूबिंगेन, जर्मनी एवं ज़्यूरिख यूनिवर्सिटी, स्विट्ज़रलैंड के दिव्यराज अमिया, पश्चिमी इतिहास विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रो. (डॉ.) मधु राजपूत तथा निदेशिका, एमिटी स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज, एमिटी यूनिवर्सिटी लखनऊ परिसर प्रो. (डॉ.) कुमकुम रे ने दीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का शुभारम्भ किया।
इस अवसर पर अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रो. (डॉ.) कुमकुम राय ने कहा कि प्राचीन पुरातात्विक खोजें भारतीय ज्ञान प्रणाली को न केवल दक्षिण एशियाई ज्ञान परंपरा से जोड़ती हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि हमारे बीच साझा सांस्कृतिक धरोहर विद्यमान है।
स्वीडन से ऑनलाइन जुड़े भाषाविज्ञान एवं दर्शनशास्त्र विभाग, उप्साला यूनिवर्सिटी के प्रो. (डॉ.) हाइंज-वेर्नर वेसलर ने “इंडोलॉजी का भविष्य” विषय पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि पश्चिमी शैक्षणिक जगत में भारत की छवि लगातार बदल रही है। वेदों और वाङ्मय जैसे भारतीय ज्ञान परंपरा के प्राचीन ग्रंथ अब विदेशी शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का विषय बन रहे हैं।
अपने संबोधन में दिव्यराज अमिया ने कहा कि दक्षिण एशिया एक अद्वितीय क्षेत्र है जहाँ एक ओर बिरहोर, कोरवा और चेंचू जैसे शिकारी-संग्राहक समुदाय आज भी विद्यमान हैं। वहीं दूसरी ओर आधुनिक विज्ञान, सूचना प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष अनुसंधान के सबसे उन्नत केंद्र भी यहीं हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया वह भूभाग है जहाँ मानव सभ्यता के अनेक युग एक साथ साँस लेते हैं, जो इसे विश्व का एक अद्वितीय सांस्कृतिक भंडार बनाता है।

प्रो. (डॉ.) मधु राजपूत ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दक्षिण एशिया में अनेक समाज विभिन्न शताब्दियों में एक साथ जी रहे हैं। कुछ क्षेत्र 21वीं सदी की तीव्र प्रगति का प्रतीक हैं, जबकि अनेक अन्य अब भी 18वीं सदी की परंपराओं और जीवनशैली को जीवित रखे हुए हैं। उन्होंने कहा कि “यही विविधता दक्षिण एशिया की पहचान है और इसे समझना आज की आवश्यकता है।
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में एमिटी स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज के विद्यार्थियों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुति भी दी गई।महाभारत पर आधारित एक नाट्य मंचन में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता उपदेश, दुर्याेधन वध तथा गांधारी के श्राप के प्रसंगों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया, जिसे दर्शकों ने सराहा।
यह 10 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला आगामी दिनों में दक्षिण एशिया के ऐतिहासिक, भाषाई, दार्शनिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर केंद्रित विशेषज्ञ व्याख्यानों, संवादों और सहभागिता सत्रों के माध्यम से जारी रहेगी।