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IIT कानपुर : कुछ इस अंदाज में मनाया गया चौथा गाथा महोत्सव

कानपुर (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। आईआईटी कानपुर के आउटरीच सभागार में प्रसिद्ध ऑडियो प्लेटफार्म गाथा जो आईआईटी कानपुर के राजभाषा प्रकोष्ठ और शिवानी केंद्र के साथ कार्यरत है, के चार वर्ष पूरे होने पर गाथा महोत्सव के चतुर्थ संस्करण का आयोजन किया गया। आयोजन का शुभारंभ आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर अभय करंदीकर ने दीप प्रज्वलन करके किया। उन्होंने कहा की गाथा पूरे भारतीय साहित्य को देश के कोने कोने में पहुंचाने में अभूतपूर्व कार्य कर रहा है। गाथा और आईआईटी का साथ बहुत लंबे समय तक रहने वाला है। 

कार्यक्रम में प्रथम सत्र में उत्कर्ष अकादमी के निदेशक डॉ. प्रदीप दीक्षित ने सोशल मीडिया के युग में बौद्धिक और सामाजिक चुनौतियां विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि हमें सोशल मीडिया को लेकर अपनी प्राथमिकताएं स्वयं तय करनी होंगी। अन्यथा वह दिन दूर नहीं है जब सोशल मीडिया हमारे असली अस्तित्व को खा जाएगा। इसके बाद प्रसिद्ध अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा ने अपनी चर्चा के दौरान कहा कि भारत कहानियों का देश है। कहानियां बिखरी पड़ी हैं बस निर्माताओं को थोड़ा शोध और मिट्टी से जुड़ने की जरूरत है। सिनेमा में मानवीय मूल्यों को यदि जोड़ा जाएगा तो सिनेमा का स्तर निश्चय ही बहुत ऊपर जाएगा। 

तीसरे सत्र में प्रसिद्ध साहित्यकार अनामिका, कानपुर की कवयित्री एवं अध्यापिका कमल मुसद्दी और साहित्यकार लता कादम्बरी ने चर्चा करते हुए वर्तमान भारतीय परिपेक्ष्य में महिला सशक्तिकरण पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि सशक्तिकरण जब तक पंक्ति में खड़ी हर आखिरी महिला तक नहीं पहुंचता तब तक इस तरह की चर्चाएं बेकार हैं। सच्चे अर्थों में सभी अभियान तभी सफल होंगे जब ग्रामीण अंचल में जागरुकता होगी और शिक्षा का प्रसार होगा। 

इसके उपरांत जमील गुलरेज की अगुवाई में मुंबई से आई कथा कथन की टीम ने मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘कफन’ का सजीव नाट्य रूपांतरण करके सभी को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। अगले सत्र में संस्कृत, नवाचार और प्रगति पर चर्चा करते हुए प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने कहा कि संस्कृत में प्रगति की अनेकों संभावनाएं हैं बस तलाशने की देर है। प्रख्यात लेखक नवीन चौधरी ने कहा कि संस्कृति की जड़ें पकड़े बिना प्रगति की बात करना बेमानी है। हिंदी अकादमी दिल्ली के उप निर्देश ऋषि कुमार शर्मा जी ने कहा कि नवाचार ऐसा हो की संस्कृति का मूल बना रहे। संस्कृति का मूल त्याग देने पर नवचार और प्रगति दोनों ही बाधित हो जाएंगे। सत्र का संचालन आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर समीर खांडेकर ने किया। 

अगले आयोजन में ओपन माइक का आयोजन हुआ जिसमें सात नवोदित रचनाकारों ने पल्लवी गर्ग के संचालन में काव्यपाठ किया। इसके उपरांत 12 से अधिक चर्चित पुस्तकों की रचयिता मनीषा कुलश्रेष्ठ से कहकशां के संस्थापक आनंद कक्कड़ ने संवाद किया। मनीषा ने कहा कि कोई भी कहानी आपको निश्चित हल नहीं देती है बल्कि वह आपके जीवन के उलझे ताने बाने को सुलझाकर ऐसे आपके सामने ला खड़ा करती है कि आप चयन कर सकें अब अब जीवन किस दिशा में जाना हैं। प्रसार भारती के पूर्व निदेशक शशि शेखर वेमपति ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के सौ एपिसोड को विषय बनाकर लिखी गई पुस्तक ‘कलेक्टिव स्पिरिट, कंक्रीट एक्शन’ पर चर्चा करते हुए मन की बात कार्यक्रम के भारतीय समाज पर पड़े प्रभाव पर चर्चा की और बताया कि कैसे मन की बात कार्यक्रम ने भारतीय जन जीवन को प्रभावित किया है, कैसे लोगों में जागरूकता आई हैं और किस प्रकार भारतीय समाज अपनी सोच बदल रहा है।  

वाराणसी से आए अमित श्रीवास्तव ने जटायु की सद्गति विषय पर नृत्य नाटिका प्रस्तुत कर सभी को सम्मोहित किया। लक्ष्मी देवी ललित कला अकादमी की टीम ने कविता सिंह की अगुवाई में श्रावणी संगीत, कजरी आदि सुनाकर सभी को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। अंतिम प्रस्तुति के रूप में कवि सम्मेलन प्रसिद्ध संचालक डॉ. शिव ओम अंबर के संचालन में आरंभ हुआ। अंबर जी ने पढ़ा “स्नेह की संहिता रही है मां, भागवत की कथा रही है मां, इस मुझे चैन से सुलाने को, मुद्दतों रतजगा रही है मांI”

प्रसिद्ध शायद अजहर इकबाल ने “गुलाब चाँदनी रातों पे वार आए हम, तुम्हारे होंटों का सदक़ा उतार आए हम, वो एक झील थी शफ़्फ़ाफ़ नील पानी की और उस में डूब को खुद को निखार आए हम” सुनाया। DD उर्दू के प्रोड्यूसर सैय्यद नज़्म इकबाल ने “जब भी बेटी ने हंसकर दुआएं दी हैं, ऐसा लगा कि फरिश्तों ने अलविदा कहा है” सुनाया। लखनऊ से आए डॉ. सर्वेश अस्थाना ने कहा कि, “जग को आंख खोलकर देखा तो हम खुद ही बुद्ध हो गए।“

कार्यक्रम में आईआईटी कानपुर के प्रो समीर खांडेकर जी के चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई जिसे लोगों ने खूब सराहा। अंत में गाथा के सह संस्थापक निदेशक अमित तिवारी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यक्रम को अगले वर्ष तक के लिए स्थगित किया। कार्यक्रम का संचालन विश्वनाथ विश्व और डॉ. अल्पना सुहासिनी ने किया। इस अवसर पर आईआईटी कानपुर के प्रो. ब्रज भूषण, प्रोफेसर कांतेश बलानी, प्रो. अर्क वर्मा, प्रो. राकेश शुक्ला, श्रवण शुक्ला, विनोद श्रीवास्तव, राधा शाक्य समेत सैकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित रहे।