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मेदांता हॉस्पिटल : कैंसर की दुर्लभ स्थिति में की गई चुनौतीपूर्ण ब्रैकीथेरेपी सर्जरी

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। कैंसर के इलाज के लिए मेदांता हॉस्पिटल के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग ने एक बेहद जटिल और दुर्लभ कैंसर केस में इंटरस्टिशियल ब्रैकीथेरेपी तकनीक का सफलतापूर्वक प्रयोग किया, जिससे एक 42 वर्षीय महिला को जीवनदान मिला।

42 वर्ष की मरीज़ ने नवंबर 2022 में यूटेरस कैंसर के चलते सर्जरी करवाई गई थी। सर्जरी के बाद उन्हें रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी की सलाह दी गई थी, लेकिन डर की वजह से वे उपचार नहीं करा पाईं। लगभग दो साल बाद, वजाइनल वॉल्ट (जहाँ यूटेरस था) में कैंसर की वापसी हुई।

डॉ. मोहम्मद सुहैब, निदेशक, रेडिएशन ऑन्कोलॉजी, मेदांता कैंसर केयर, बताते हैं, “यह एक एडवांस वॉल्ट कार्सिनोमा का केस था। एक बार सर्जरी हो जाने के बाद शरीर की संरचना बदल जाती है, जिससे इस तरह के मामलों में रेडिएशन ट्रीटमेंट करना बेहद जटिल हो जाता है।”

पीईटी स्कैन में पता चला कि बीमारी बहुत अधिक नहीं फैली थी लेकिन वॉल्ट क्षेत्र में कैंसर लगभग 5.5 सेमी-6 सेमी तक फैला हुआ था। इसके बाद रेडिएशन के 28 सेशन और वीकली कीमोथेरेपी के 6 सप्ताह चले इलाज के बाद कैंसर काफी हद तक समाप्त हो गया, लेकिन करीब 1.5 सेमी कैंसर अब भी बचा हुआ था।

सामान्य ब्रैकीथेरेपी (इंट्रा-कैविटी) यूटेरस की मौजूदगी में दी जाती है इसे देखते हुए आखिर में बचे हुए कैंसर को हटाने के लिए टीम ने इंटरस्टिशियल ब्रैकीथेरेपी का निर्णय लिया।  

इस थेरेपी में टाइटेनियम की 18 पतली सुइयाँ शरीर के अंदर उसी क्षेत्र में डाली गईं जहाँ कैंसर बचा था। यह तकनीक बेहद जटिल होती है क्योंकि आसपास इंटेस्टाइन, ब्लैडर और ब्लड वेसल्स होती हैं। अगर ब्लड वेसल्स पंक्चर हो जाए और समय रहते खून का बहाव न रुक सके तो जान का जोखिम हो सकता है। 

मरीज़ के शरीर में 18 नीडल्स थीं इसलिए उनको चार दिन तक एनेस्थीसिया के प्रभाव में अस्पताल में रखा गया। साथ ही उन्हें  पेशाब के लिए कैथेटर लगाया गया और मल रोकने के लिए इन विवो मैनेजमेंट की विशेष व्यवस्था की गई। तीन दिनों में पांच बार रेडिएशन के बाद सारी सुइयाँ निकाली गईं और एक दिन के लिए मरीज को ऑब्जर्वेशन में रखा गया।

इलाज के लगभग ढाई महीने बाद किए गए अल्ट्रासाउंड और क्लिनिकल मूल्यांकन में मरीज पूरी तरह कैंसर मुक्त पाई गईं। न केवल इलाज सफल रहा, बल्कि मरीज को कोई भी बड़ा साइड इफेक्ट भी नहीं हुआ। जो छोटे साइड इफेक्ट्स हुए वो भी दवा से मैनेज कर लिए गए। 

डॉ. सुहैब ने कहा, “शरीर में यदि किसी भी क्षेत्र में रेडिएशन की आवश्यकता होती है और सामान्य ब्रैकीथेरेपी संभव नहीं है, तो इंटरस्टिशियल ब्रैकीथेरेपी एक जीवनरक्षक विकल्प साबित हो सकती है। लखनऊ में मेदांता इकलौता निजी संस्थान है जहाँ यह इंटरस्टिशियल ब्रैकीथेरेपी तकनीक उपलब्ध है।”