Friday , December 27 2024

गर्भ में पल रहा बच्चा भी आज वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों से अछूता नहीं : डॉ. सूर्यकान्त

आकर्षक अंदाज में वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में किया सचेत

लंग केयर फाउन्डेशन के तत्वावधान में ‘स्वच्छ वायु और स्वास्थ्य’ पर मीडिया कार्यशाला

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। किसी भी जश्न पर एक चकरी जलाने से कितने सिगरेट का धुंआ निकलता है…, 24 घंटे में हम कितनी बार सांस लेते हैं और उसके लिए कितने लीटर आक्सीजन की जरूरत पड़ती है…? दैनिक जीवन से जुड़े इसी तरह के तमाम सवाल लंग केयर फाउन्डेशन के तत्वावधान में सोमवार को गोमतीनगर स्थित 112- यूपी इमरजेंसी सर्विसेज कार्यालय के सभागार में आयोजित मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला में उठे। विशेषज्ञों ने बहुत ही आकर्षक अंदाज में इनके जवाब दिए और कार्यशाला के दौरान ही कपूर जलाकर एयर क्वालिटी इंडेक्स पर पड़ने वाले असर का प्रदर्शन भी किया। गुब्बारे फुलाकर फेफड़ों की ताकत भी परखी गई। प्रदेश में बढ़ते वायु प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की रोकथाम पर मंथन भी किया गया।

लंग केयर फाउन्डेशन के फाउंडर ट्रस्टी राजीव खुराना ने बताया कि हम किसी भी जश्न पर एक छोटी से चकरी भी जलाते हैं तो करीब 431 सिगरेट के बराबर का धुंआ उससे निकलता है। इसी तरह से अन्य पटाखों से भी होना वाला प्रदूषण सीधे हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है। 24 घंटे के दौरान करीब 25 हजार बार सांस लेते हैं। उन्होंने मीडिया से अपील की कि वातावरण को स्वच्छ बनाने का बीड़ा हम सभी को उठाने की जरूरत है। इसकी शुरुआत आज से ही अपने 20 से 200 मीटर के दायरे में करना शुरू कर देंगे तो खुद के साथ ही अगली पीढ़ी के भी हित में साबित होगा।

इस मौके पर किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्परेटरी मेडिसिन डिपार्टमेंट के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि वायु प्रदूषण आज इतना बढ़ चुका है कि माँ के गर्भ में पल रहा शिशु भी उसके दुष्प्रभावों से अछूता नहीं है। उन्होंने बताया कि हाइवे के किनारे की कुछ बस्तियों और कुछ सुदूर गाँवों पर किये गए शोध में भी यह बात सामने आ गयी है। देश के 22 सबसे प्रदूषित जिलों में नौ उत्तर प्रदेश के हैं, जिसमें लखनऊ भी शामिल है। इसलिए हमें सचेत हो जाने की जरूरत है, क्योंकि बिना पिए भी 10 से 15 सिगरेट का धुंआ हमारे फेफड़ों तक पहुंचकर हमारी सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है। वायु प्रदूषण से एलर्जी, अस्थमा, ब्रांकाइटिस, टीबी, कैंसर ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, माइग्रेन, ब्रेन ट्यूमर, मोतियाबिंद, अनिद्रा, चिडचिडापन, बाल झड़ना व जल्दी सफ़ेद होना, लीवर –किडनी सम्बन्धी तमाम दिक्कतें पैदा हो रहीं हैं।  

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. एपी माहेश्वरी (सेवानिवृत्त महानिदेशक, सीआरपीएफ व संरक्षक- लंग केयर फाउंडेशन) के स्वागत भाषण से हुई। डॉ. कारमिन उप्पल (उप निदेशक, एलसीएफ) ने वायु गुणवत्ता और स्वास्थ्य के संदर्भ में पत्रकारों की भूमिका, समाधान के लिए विचार सृजन, शहर-स्तरीय प्राथमिकताओं को निर्धारित करने और कानून, वायु प्रदूषण, सरकार, मीडिया और अन्य हितधारकों की भूमिकाओं पर चर्चा की। भरत नायक (संचार प्रबंधक, हेल्थ केयर विदाउट हार्म) ने फ़िर जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के बारे में सटीक जानकारी की पहचान करने और मिथकों को दूर करने के महत्व पर जोर दिया। इस मौके पर वरिष्ठ लेखक व पत्रकार नवीन जोशी ने कहाकि लोगों को उनकी भाषा में वायु प्रदूषण की विषमताओं को समझाने में मीडिया की अहम भूमिका है। इतिहासकार व मीडियाविद रवि भट्ट ने कहाकि वायु प्रदूषण कई तरह की बीमारियों को जन्म दे रहा है, जिसके प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए मीडिया को आगे आने की जरूरत है।