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सभी कैदी पेशेवर नहीं, कुछ लोग अनायास घटना घटित होने से बन जाते हैं कैदी : धर्मवीर प्रजापति

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। जेल समाज का वो हिस्सा है जहां रहने वाले हर कैदी को हेय दृष्टि से देखा जाता है। जबकि जेल में लोगों को सुधरने के लिए भेजा जाता है। इनमें से कुछ लोगों को अगर छोड़ दिया जाए तो जेल से सजा काट कर निकलने वाले अधिकांश लोग इस संकल्प के साथ बाहर आते हैं कि दोबारा जीवन में वो कोई अपराध नहीं करेंगे। मानवीय दृष्टि से देखा जाए तो जेल अपराधी के मन के दृष्टिकोण को बदलने का सबसे उपयुक्त स्थान है, जहां वो अपने गुनाहों की सजा काटते हैं। खुद बिहारी जी ने कारागार में जन्म लेकर आसुरी शक्तियों का नाश कर समाज को भयमुक्त, अपराधमुक्त और अपराधी मुक्त रहने का संदेश दिया है। और जेल में रहकर कैदी भी अपने मन मस्तिष्क में व्याप्त विकारों से तौबा करते हैं।

प्रदेश के कारागार एवं होमगार्ड मंत्री धर्मवीर प्रजापति भी इन्हीं उद्देश्यों के साथ यूपी की जेलों में बंद समाज के बहिष्कृत लोगों को बदलने की पुरजोर कोशिश में जुटे हुए हैं। अपने सरकारी आवास में एनयूजे यूपी के पदाधिकारियों और विभिन्न अख़बारों के पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने बंदियों के जीवन में सुधार के लिए किए जा रहे तमाम क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने जानकारी दी कि किस तरह से सरकार और विभाग बंदियों के व्यवहार परिवर्तन के लिए काम कर रहा है।

नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट उत्तर प्रदेश के पदाधिकारियो से ख़ास बातचीत के दौरान कारागार एवं होमगार्ड विभाग के मंत्री धर्मवीर प्रजापति ने बताया कि जेलों में 40 वर्ष तक के बंदियों की संख्या का प्रतिशत सबसे अधिक है। करीब 80 फीसदी कैदी युवा हैं जिनकी उम्र 40 वर्ष से कम है। सभी कैदी पेशेवर नहीं हैं, कुछ लोग अनायास घटना घटित होने कि वजह से कैदी बन जाते हैं। मानवीय दृष्टि से ऐसे बंदियों को संभलने का अवसर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब से वे कारागार मंत्री बने हैं तब से लगातार जेलों में सुधार कैसे हो, बन्दियों के व्यवहार में बदलाव कैसे हो इसी पर कार्य कर रहे हैं।

कारागार मंत्री ने बताया कि अलग-अलग जेलों में जाकर वहां बन्दियों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के संकल्प के साथ संवाद कर रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि इस प्रयास से कारागार में निरुद्ध बन्दियों के जीवन में आने वाले समय में निश्चित ही बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। नौजवान क्यों बिगड़ रहा है, इसके लिए स्कूल कॉलेज में बच्चों से संवाद स्थापित किया जा रहा है। ताकि नई पीढ़ी किसी अपराध में लिप्त होकर अपना व अपने परिवार का भविष्य खराब न करें।

मंत्री धर्मवीर प्रजापति मानते हैं कुछ लोग आदतन अपराधी होते हैं और कुछ जाने अनजाने अपराध में लिप्त हो जाते हैं। युवाओं का भविष्य खराब न हो इसको देखने हुए उन्होंने बीती 6 अप्रैल को पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर 136 बिना टिकट यात्रा करने के अपराध में बंद कैदियों को छोड़ने की व्यवस्था की। जिसमें समाज सेवियों ने करीब 9 लाख रूपये जुर्माना भरने में सहयोग किया। जेलों में सुधार के लिए प्रत्येक शनिवार को सुंदरकांड का पाठ किया जाता है। जिसमें सभी हिन्दू मुस्लिम कैदी एक साथ बैठकर पाठ करते हैं।

माँ के साथ जेल में रह रहे बच्चों की पढ़ाई और खेलने की व्यवस्था

कारागार मंत्री धर्मवीर प्रजापति का मानना है कि जेल में बंद महिला बंदियों के बच्चों को मजबूरीवश चहारदीवारी में कैद होकर रहना पड़ रहा है, जबकि उनका कोई दोष नहीं है। उनके भविष्य को ध्यान में रखते हुए ना सिर्फ इन बच्चों की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था की गई है बल्कि जेलों में बच्चों के लिए चिल्ड्रन पार्क भी बनाए गए हैं। यूपी जेलों में रह रहे करीब 436 बच्चों को पढ़ाई के लिए 41 शिक्षक नियुक्त किए गए हैं और जहां शिक्षक नहीं हैं वहां बंदी रक्षकों को पढ़ाने के लिए लगाया गया है।

बंदियों को शिक्षित कर स्वरोजगार से जोड़ा

जेल राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मवीर प्रजापति ने कहा, “हमने कैदियों पर ध्यान देते हुए मानवीय दृष्टि से काम किया है, जो कैदी पढ़ना चाहते हैं उनको पढ़ने में मदद की जा रही है। साथ ही जेल में बंद कैदियों को कौशल विकास से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि जेल से छूटने के बाद उनके पास रोजगार की समस्या न हो।” बंदियों की शिक्षा पर भी काम हो रहा है। यूपी बोर्ड के हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट के एग्जाम में इस बार सैकड़ों की संख्या में कैदियों ने एग्जाम दिया था। जिसमें से अधिकांश कैदियों ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट का एग्जाम पास किया है। बरेली सेंट्रल जेल में हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सीतापुर निवासी ओंकार सिंह ने 10वीं की बोर्ड परीक्षा में 600 में से 503 अंक हासिल किए थे और सभी बंदियों में अव्वल रहा।

श्री बांके बिहारी ने पहने कैदियों द्वारा निर्मित पोशाक 

मथुरा जिला जेल के कैदियों ने इस बार भगवान श्रीकृष्ण के लिए पोशाक बनाई, जिसे खुद कारागार मंत्री अपने सिर पर रखकर मंदिर पहुंचे थे। श्री बांके बिहारी जी के लिए पोशाक बनाने का काम 15 दिन में पूरा किया गया था। इसे तैयार करने में जिन बंदियों ने योगदान दिया उनमें भरत, नेहना, करन, बॉबी, शेर सिंह, पिंटू, राहुल और सोनू शामिल रहे। कौशल विकास मिशन के तहत बंदियों को कच्चा सामान जेल प्रशासन ने उपलब्ध कराया था। रेशम के धागे से बनी हल्के पीले रंग की यह पोशाक 24 मीटर कपड़े से बनी थी। 11 पार्ट में तैयार इस पोशाक में धोती, बगलबंद, दुपट्टा, कमरबंद, प्रतिमा के पीछे लगने वाला पर्दा, भगवान के सिंहासन पर बिछने वाला कपड़ा शामिल है।

जेलों में भी मनाया जा रहा करवा चौथ और रक्षाबंधन

उत्तर प्रदेश की जेलों में करवा चौथ मनाया जा रहा है, पुरुष कैदियों की पत्नियां जेल में जाकर पति के साथ पूजा कर रही हैं। इतना ही नहीं महिला कैदियों से उनके पति जेल में जाकर करवा चौथ का त्योहार मना रहे हैं। कारागार मंत्री ने कहा कि व्रत को लेकर किसी को कोई असुविधा न हो इसके लिए जरूरी निर्देश दिया है। जेल कारागार प्रशासन की ओर से करवा चौथ के व्रत और पूजन के लिए सामग्री मुहैया कराई जाती है। वहीं बहन और भाई के पवित्र त्योहार रक्षाबंधन पर जेल में बंद कैदियों से मिलने आने वाली उनकी बहनों के लिए खासे इंतजाम किए गए थे। इस साल राज्य के भीतर बनीं 73 जिलों में हजारों महिलाओं ने अपने अपने भाइयों से मुलाकात करते हुए रक्षाबंधन का पर्व मनाया। इस बीच एक भी बहन को बिना राखी बांधे जेल से वापस नहीं लौटाया गया।

छोड़े जाएंगे 70 की उम्र पार कार चुके कैदी

यूपी की जेलों में उम्रकैद की सजा काट रहे 70 साल से ज्यादा के बुजुर्ग और गंभीर बीमारियों से ग्रस्त बंदियों को योगी सरकार बड़ी राहत देने का फैसला किया है। मानवीय आधार पर ऐसे कैदियों को जेल की चहारदीवारी से बाहर भेजने की तैयारियां शुरू कर दी है। हालांकि इसके लिए उत्तर प्रदेश बंदी परिवीक्षा नियमावली और जेल मैनुअल में निहित नियमों के तहत रिहाई के लिए प्राथमिकता तय करने के लिए कहा गया है। साथ ही कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को भी ध्यान में रखने के लिए कहा गया है। जैसे, क्या उसके द्वारा किया गया अपराध समाज को व्यापक रूप से प्रभावित किये बिना केवल व्यक्ति विशेष तक सीमित अपराध की श्रेणी में आता है? क्या बंदी द्वारा भविष्य में अपराध करने की कोई आशंका है? क्या सिद्धदोष बंदी दोबारा अपराध करने में अश्क्त हो गया है? क्या बंदी को जेल में और आगे निरुद्ध करने का कोई सार्थक प्रयोजन है? और क्या बंदी के परिवार की सामाजिक, आर्थिक दशा बंदी को समयपूर्व रिहाई के लिए उपयुक्त है।