डॉ. एस.के. गोपाल
मानव सभ्यता का इतिहास जितने साम्राज्यों के उदय और पतन का साक्षी है, उतना ही वह मानव स्वभाव की दुर्बलताओं और शक्तियों को भी उजागर करता है। इन दुर्बलताओं में सबसे खतरनाक है, चापलूसी का मीठा विष। राजमहलों में यह विष कभी खुले आम नहीं बेचा जाता था। यह सोने की परत चढ़े शब्दों के कप में भरकर दिया जाता था और राजा इसे प्रायः अमृत समझकर पी लेते थे। पर यह अमृत नहीं था; यह वह विष था जो धीरे-धीरे सत्य के स्वाद को नष्ट कर देता था।
कहा जाता है, किसी भी राजा के पतन से पहले उसकी बुद्धि का पतन होता है और बुद्धि का पतन तब शुरू होता है जब उसके आसपास ऐसे लोग इकट्ठा होने लगते हैं जिनके शब्दों में कृत्रिम मिठास तो बहुत होती है, पर सत्य का नमक बिल्कुल नहीं। राजा जब भी कोई निर्णय लेता उसके पीछे से बीसों स्वर उठते “वाह महाराज! आपकी दूरदृष्टि की तो तुलना नहीं! आप जैसा दयालु राजा इस धरती पर कभी नहीं हुआ!” यह सुनकर राजा पहले मुस्कुराता, फिर प्रसन्न होता, फिर अभिमानी, और अंत में वास्तविकता से कट जाता था। महल के भीतर जितनी तालियाँ बजती थीं, महल के बाहर उतनी ही आहें उठने लगती थीं। यह इतिहास का खेल था और इतिहास के खेलों की एक खासियत होती है, वे समय बदलने पर भी अपनी प्रकृति नहीं बदलते।
आज राजा कम हैं; पर दरबार हर जगह है। कार्यालयों में, राजनीति में, संगठनों में, यहाँ तक कि घरों और डिजिटल संसार में भी। जहाँ भी कोई व्यक्ति शक्ति, सफलता या प्रभाव की राह पर आगे बढ़ता है, वहाँ धीरे-धीरे उसके आसपास भी वाह-वाह मंडली बनने लगती है। वे कुछ और नहीं करते, बस व्यक्ति के भीतर की आत्ममुग्धता को सहलाते हैं, और उसके विवेक की जड़ों को धीरे-धीरे खोखला करते जाते हैं। चाटुकारिता हमेशा मुस्कुराहट के साथ आती है, पर उसके पीछे एक गहरा अंधेरा होता है। एक ऐसा अंधेरा जो मनुष्य को सच देखने से रोक देता है।
मनुष्य के भीतर दो दीपक हमेशा जलते रहते हैं। एक सुख का दीपक और एक सत्य का दीपक। चापलूसी हमेशा सुख के दीपक की लौ को बढ़ाती है। सुख वाला दीपक बड़ा आकर्षक होता है, उसकी रोशनी को देखकर लगता है कि मैं सबसे श्रेष्ठ, अद्वितीय और परिपूर्ण हूँ। लेकिन सत्य वाला दीपक छोटा होता है। उसकी लौ में न चमक होती है न रंगीन प्रकाश। वह बस सीधा और स्थिर जलता है। उसकी रोशनी हमें हमारी सीमाएँ दिखाती है, हमारी गलतियाँ दिखाती है, हमारे भ्रम तोड़ती है और इसी वजह से वह कई लोगों को अप्रिय लगती है। पर विडंबना यह है कि जीवन का सही मार्ग हमेशा उसी दीपक से दिखाई देता है जो हमें पसंद नहीं होता।
मनुष्य अक्सर सोचता है कि जो उसकी प्रशंसा करता है, वह उसका मित्र है। पर जीवन का अनुभव बताता है, जो आपको केवल प्रसन्न रखता है, वह कभी आपका विकास नहीं चाहता। राजा को भी वही मंत्री महान बनाते हैं जो उसके निर्णयों पर प्रश्न उठाने का साहस रखते हैं। जो कहते हैं “महाराज, यह निर्णय सही नहीं। आइए, पुनर्विचार करें।” ऐसा मंत्री, ऐसा मित्र, ऐसा सहकर्मी भले ही कठोर लगे, पर वह आपके भाग्य का निर्माता होता है। चापलूस, चाहे कितना भी मुस्कुराए आपके भविष्य का विध्वंसक होता है।
सफलता की सबसे बड़ी परीक्षा यह नहीं कि आप कितने लोग साथ लेकर चलते हैं, बल्कि यह है कि आप उपहास, आलोचना और असहमति को कितनी सहजता से सह सकते हैं। जो व्यक्ति सत्य को सुनने से डरता है, वह नेतृत्व के योग्य नहीं। और जो व्यक्ति सत्य को अपनाने का साहस रखता है वह चाहे किसी पद पर न हो, जीवन का सच्चा राजा वही है।
चापलूसी का अंधेरा बाहर से नहीं, भीतर से फैलता है। यह मन को मीठे जाल में उलझाकर धीरे-धीरे आपकी दृष्टि छीन लेता है। इसलिए जीवन का यही मंत्र है, अपने आसपास ऐसे लोग रखिए जो आपकी खुशामद नहीं, आपकी कमियों की ओर इशारा करें। जो आपकी प्रसन्नता नहीं, आपकी प्रगति के लिए समर्पित हों और अपने भीतर ऐसा साहस जगाइए कि आप सत्य को पहचान सकें चाहे वह कितना ही कड़वा क्यों न हो। क्योंकि जिसने सच को गुरु बना लिया, उसे संसार की कोई शक्ति परास्त नहीं कर सकती।
Telescope Today | टेलीस्कोप टुडे Latest News & Information Portal