लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। अध्यात्मिक चेतना से लेकर भौतिक जगत तक और वैज्ञानिक प्रयोगों से लेकर दैनिक जीवन के उपयोगों तक पर प्रकृति प्रदत्त रंगों के प्रभाव, परिणाम और महत्व पर दो दिनों तक चले गहन चर्चा और विमर्श के बाद आज दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘‘कलर्सः विबग्योर टू अर्थ’’ (आईएससीवीई 2025)” का समापन हो गया। संगोष्ठी का आयोजन एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर द्वारा किया गया।
इस संगोष्ठी में प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और शोधार्थियों ने रंगो के संदर्भ में खगोल, मौसम, रसायन, आनुवंशिकी और जैविकी के क्षेत्रों में अपनी खोजों और विचारों को साझा किया।
विगत गुरूवार को मुख्य अतिथि संजीव नारायण माथुर (अतिरिक्त सचिव एवं वित्त सलाहकार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार), विशिष्ट अतिथि प्रो. (डा.) सुमन प्रीत सिंह खनूजा (पूर्व निदेशक, सीएसआईआर-सीमैप, लखनऊ एवं संस्थापक अध्यक्ष, फ्लोरा फौना साइंस फाउंडेशन), प्रो. (डा.) अनिल वशिष्ठ (प्रो-वाइस चांसलर, एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर) और डा. राजेश कुमार तिवारी (निदेशक एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी) के कर कमलों से संगोष्ठी का शुभारम्भ हुआ था।

इस अवसर पर प्रो. (डा.) अनिल वशिष्ठ ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एमिटी विश्वविद्यालय के संस्थापक अध्यक्ष डा. अशोक के चौहान के नेतृत्व और दूरदृष्टि की चर्चा की। उन्होंने कहा कि, संगोष्ठी में देशभर से आए वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के विचारों और अनुभवों से हमारे विद्यार्थियों को धरती पर जीवन, हमारे परिवेश और भावनाओं के संबंध में रंगो की भूमिका के बारे में समझ और निखरेगी।
संगोष्ठी के दो दिनों के दौरान सात तकनीकि सत्रों का आयोजन किया गया। जिसके अंर्तगत 13 अतिथि व्याख्यान, 04 ओरल प्रजेंटेशन सत्र, 04 पोस्टर सत्र सहित पैनल डिस्कशन सत्रों का आयोजन किया गया।
ह्यूमन चक्राज एण्ड इट्स कलर्स विषय पर आयोजित एक व्याख्यान में बोलते हुए आर्ट ऑफ लिविंग के अंतर्राष्ट्रीय संकाय सदस्य प्रदीप कुमार पाठक ने मानव शरीर में स्थित ऊर्जा चक्रों मूलाधार से लेकर सहस्रधार तक के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यह चक्र प्रकृति के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं और सभी चक्रों का अपना एक विशेष रंग है। आज के समय में प्रकाश और रंग चिकित्सा की जो बात की जाती है वह इन्हीं चक्रों रंगो से संबंधित है। उन्होने कहा कि शरीर में स्थित यह चक्र मानवीय मन- विचार पर प्रभाव डालते हैं। इस ऊर्जा के नकारात्मक होन पर व्यक्ति दुखी होकर अवसादग्रस्त हो जाता है जबकि इन्हें संतुलित करके हम अपने मानसिक व्याधियों को दूर कर सकते हैं।
‘‘कलर्सः एस्ट्रोनामिकल, मेट्योरोलाजिकल, जियोलाजिकल, केमिकल, जेनिटिकल और बायोलाजिकल फिनामिना’’ विषय पर आयोजित पैनल डिस्कशन में बोलते हुए डा. प्रदीप मवार, निदेशक जियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंण्डिया, डा. मंजू अग्रवाल निदेशिका सेंटर ऑफ एक्सेलेंस फॉर हैपीनेस रिसर्च एमिटी लखनऊ, डा. मंजूषा, एनबीआरआई लखनऊ, सहित एमिटी लखनऊ की डा. संगीता बाजपेई, डा. अनुराग प्रसाद और डा. प्रीति माथुर ने अपने विचार रखे।
विषय पर बोलते हुए डा. प्रदीप मवार ने विभिन्न जियोलाजिकल गतिविधियों में शामिल रंगों और उनके अभिप्राय पर चर्चा की। उन्होने कहा कि भूवैज्ञानिक ज्वालामुखी लावा, समुदी पानी, चट्टानों, बादलों और बिजली कड़कने के रंगों को देखकर भी पर्यावरण की सेहत के बारे में आंकलन कर लेते हैं। उन्होने कहा कि धरती के ध्रुवों पर देखे जाने वाल ऑरोरा रोशनी के रंगों को देखकर यह बताया जा सकता है कि ऑरोरा रोशनी की ऊंचाई और कारण क्या है।
कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए गए। संगोष्ठी के समापन सत्र में पोस्टर प्रजेंटेशन और ओरल प्रजेंटेशन सत्र में श्रेष्ठ प्रस्तुति देने वालों को पुरस्कृत किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी विभागाध्यक्ष, शिक्षक एवं छात्र उपस्थित रहे।