लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, जो वैश्विक आपूर्ति का लगभग एक चौथाई हिस्सा उपलब्ध करता है। फिर भी, अपर्याप्त पोषण और पशुओं की कमजोर स्वास्थ्य स्थिति के कारण प्रति व्यक्ति दुग्ध उत्पादन केवल 1,700 से 2,000 लीटर प्रतिवर्ष रह जाता है, जो वैश्विक औसत 2,500 से 3,000 लीटर से काफी कम है। इस गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक है हीट स्ट्रेस (तापीय तनाव), जो पशुओं के पोषण और स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव डालता है।
कैप्टन (डॉ.) ए.वाई. राजेन्द्र (सीईओ, एनिमल एंड एक्वा फीड बिजनेस, गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड) के अनुसार, उत्तर प्रदेश के दुग्ध क्षेत्र में बढ़ते तापमान एक गंभीर संकट वार्षिक 38.78 मिलियन टन या लगभग 1,062 लाख लीटर प्रतिदिन के दुग्ध उत्पादन के साथ उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक राज्य है। हालांकि, तापीय तनाव के कारण राज्य को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। वर्ष 2022 में गोरखपुर और झांसी जैसे जिलों में लू और अत्यधिक गर्मी के कारण दुधारू पशुओं के लिए हरे चारे की उपलब्धता घटी और दूध उत्पादन में 11 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई। अध्ययनों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश को इसके पड़ोसी राज्यों की तुलना में अधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। जिससे यह आवश्यक हो जाता है कि राज्य विशेष हस्तक्षेप और नीतियां अपनाए।
हीट स्ट्रेस के कारण पशुओं की चारा सेवन की क्षमता घटती है, वे अधिक पानी पीते हैं, और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की संभावना बढ़ जाती है। प्रजनन क्षमता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान बढ़ रहा है, इन चुनौतियों का समाधान करना उत्तर प्रदेश के दुग्ध क्षेत्र की निरंतर सफलता और स्थायित्व के लिए अत्यंत आवश्यक हो गया है।
आर्थिक प्रभाव: इन प्रभावों का असर केवल दूध उत्पादन के आर्थिक नुकसान तक सीमित नहीं है। किसान को अब पशुओं को लू से बचाने के लिए कूलिंग उपकरण, पशु चिकित्सक की जांच जैसी व्यवस्थाओं पर अधिक खर्च करना होगा, जिससे उत्पादन लागत बढ़ेगी। हालांकि परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को महंगा दूध खरीदना पड़ेगा। प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने की क्षमता विकसित करना जरूरी उत्तर प्रदेश के डेयरी उद्योग को पशुपालन और देखभाल की पारंपरिक प्रणालियों को परिवर्तित करते हुए गर्मी के अनुकूल बनाना होगा ताकि दूध उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सके।
उचित आवास: पशुओं को गर्मी से राहत देने के लिए अच्छे वेंटिलेशन वाले बाड़े बनाए जाएं जिनमें स्प्रिंकलर सिस्टम लगे हों। पानी का प्रावधान: ठंडा, स्वच्छ पीने का पानी पशुओं के शरीर का तापमान नियंत्रित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके लिए छायादार टंकियां, शेड युक्त नांद, और गर्मी से बचाव वाले जल भंडारण समाधान आवश्यक हैं।
पोषण और आहार अनुसूची: पोषण और आहार अनुसूची को भी तापमान के अनुकूल ढालना होगा। पशुओं को टोटल मिक्स्ड राशन (टीएमआर) जैसे गुणवत्तापूर्ण आहार और अधिक ताजगीयुक्त चारा देना होगा। सप्लीमेंट्स: इलेक्ट्रोलाइट्स, विटामिन (विशेषकर ए, डी और ई) तथा जिंक व सेलेनियम जैसे खनिजों की खुराक से पशु गर्मी सहन कर सकते हैं, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और ऑक्सीडेटिव तनाव कम होता है।
आहार की आवृत्ति: दूध उत्पादन और प्रजनन क्षमता बनाए रखने के लिए इन पोषण तत्वों की भूमिका बेहद अहम है। ठंड के समय में आहार देने का समय और आवृत्ति भी बढ़ाई जा सकती है। पशुओं को हाई-क्वालिटी चारा और फाइबर देना चाहिए या हाइड्रोपोनिक्स पद्धति से साल भर चारा उगाया जा सकता है। बाईपास प्रोटीन के माध्यम से दूध की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार किया जा सकता है। समग्र कार्यनीति की आवश्यकता भारत के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक राज्य के रूप में, उत्तर प्रदेश, जो प्रति वर्ष 38.78 मिलियन टन या लगभग 1,062 लाख लीटर दूध का उत्पादन करता है, अब जोखिम नहीं उठा सकता। अगर राज्य अभी ठोस कदम उठाए, तो इस तरह के लचीलेपन को विकसित कर, किसानों की आजीविका की रक्षा करने के साथ ही दुग्ध उद्योग का भविष्य भी सुरक्षित रखा जा सकता है। साथ ही बढ़ते तापमान और हीट स्ट्रेस के खतरे के खिलाफ सुधारात्मक कदम भी उठाए जा सकते हैं।