Friday , December 20 2024

पहले अपने गिरेबान में झाँकना सीख लीजिए..


– अतुल मलिकराम (लेखक एवं राजनीतिक रणनीतिकार)

अंबानी जी ने अपने सागर में से एक गागर पानी निकाला है, सागर भी उन्हीं का, और गागर भी उन्हीं का, लेकिन सारी की सारी समस्या हमें है.. सच में बड़े ही अजीब लोग हैं हम..

आजकल की शादियाँ रीति-रिवाजों पर नहीं, बल्कि दिखावे पर आधारित होती हैं। अच्छे से अच्छा खाना, साज-सज्जा, मेहमानों के लिए बेहतर से बेहतर सुख-सुविधाएँ, ठहरने की उत्तम व्यवस्था, अच्छे-से अच्छा स्वागत-सत्कार आदि, ये ऐसे बिंदु हैं, जिन पर जितनी बात की जाए, कम ही होगी। लेकिन, लोगों की दूसरों पर ऊँगली उठाने की आदत, मेरी समझ के बाहर है। चंद दिनों पहले देश के एक बड़े घराने यानि अंबानी परिवार के बेटे अनंत अंबानी की शादी का आयोजन हुआ। सोशल मीडिया उठा लो या प्रिंट मीडिया, टेलीविज़न पर देख लो या फिर आम आदमी के समूह में खड़े हो जाओ, हर जगह इस शादी और इसमें हुए खर्चों को गंभीर मुद्दा बनाकर रखा हुआ है लोगों ने।

लोगों को यह बात फूटी आँख नहीं सुहा रही है कि शादी में 5000 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। अब लोगों को गरीबी रेखा और देश में बढ़ते भूखमरी इंडेक्स की चिंता सताने लगी है। स्वस्थ्य और शिक्षा का निरंतर महँगा होना भी खटकने लगा है। गैस-पेट्रोल की महँगाई का रोना भी अब रोने लगे लोग। मोबाइल फोन के रिचार्ज महँगे हो रहे हैं, यह भी लोगों को दिख रहा है। इस महँगाई का शादी से क्या लेना-देना? और तो और लोग यह भी कह रहे हैं कि शादी का खर्चा निकालने के लिए अंबानी जी ने रिचार्ज महँगा कर दिया। तो आप क्या यह चाहते हैं कि व्यक्ति इतनी महँगी शादी न करके आपके लिए महँगाई कम करने का काम करे? यानी वह अपना पैसा, आपकी सुख-सुविधाओं के लिए लगा दे। आप कर सकेंगे क्या ऐसा कुछ, यदि आप इतने सक्षम होंगे तो?

कोई कह रहा है किसानों की समस्या हल कर देते, तो कोई कहता है गरीबों के लिए मकान ही बना देते। कोई कहता है हॉस्पिटल बनवा देते, तो कोई कहता है देश की सड़कें ही दुरुस्त करवा देते। आखिर क्यों कर देते? उस शख्स ने आपके पैसों का उपयोग अपने घर की शादी में किया क्या, जो आपको उन पैसों की इतनी चिंता हो रही है? आपकी शादियों में होने वाले खर्चों से तो कई गुना कम ही खर्च किया है अंबानी जी ने। अब आँकड़ों पर बात करेंगे, तो उन लोगों के हाथ सिवाए शर्मिंदगी के कुछ भी नहीं लगेगा, जो बार-बार इस शादी को पैसों की बर्बादी करार दे रहे हैं। सभी लोग अपनी हैसियत के अनुसार काम करते हैं, इस परिवार ने तो अपनी आमदनी के सिर्फ 0.5 प्रतिशत हिस्से का ही इस्तेमाल अनंत की शादी के लिए किया है।

दोनों ने एक फंक्शन में सोने की ड्रेस पहनी, उस पर भी बड़े मुद्दे उठा रहे हैं लोग.. वह कहते हैं न, व्यक्ति दुनिया पर लाख सवाल उठा लेता है, लेकिन कभी झाँकता नहीं खुद के गिरेबान में। एक माध्यम वर्गीय परिवार की ही बात करते हैं, चलिए.. रस्में निभाने तक की बात अलग है, लेकिन अब हमारे समाज में चलन दिखावे का चल पड़ा है.. हल्दी के फंक्शन में साज-सज्जा अलग और पीले वस्त्र धारण किए हुए तमाम मेजबान, फिर होती है मेहँदी, तमाम साज-सज्जा हरे रंग की और उसी रंगों के परिधान.. शादी तो रस्मों से होती है न! महिला संगीत कैसी रस्म है?? इसमें भी बड़ी-बड़ी रंग-बिरंगी एलईडी वाली साज-सज्जा अलग, थीम अलग और फिर फेरों, बारात और रिसेप्शन की तो क्या ही बात की जाए.. हर फंक्शन के लिए अलग ड्रेस कोड और थीम..

मैं यहाँ पूछना चाहता हूँ कि क्या हर फंक्शन में साज-सज्जा में खर्च नहीं होता या फिर जो अलग-अलग रंग की थीम हर फंक्शन के लिए विशेष रूप से रखी जाती है और इसके लिए अलग-अलग कपड़े खरीदे जाते हैं, वो मुफ्त में मिल जाते हैं? एक आम आदमी इस तरह के आयोजनों में कम से कम 20 से 25 लाख रुपए खर्च कर देता है। एक आम आदमी की हैसियत से यह राशि काफी अधिक है। लेकिन, वहाँ इन मुद्दों को उठाने वाले लोगों को कोई आपत्ति नहीं होती। इन पैसों से करवाइए न गरीबों की सेवा.. अपने क्षेत्र की सड़कें बनवा दीजिए इन पैसों से.. आप कीजिए यह पहल, फिर बेशक उम्मीद करें अंबानी जी से..

करिए कोर्ट या मंदिर में बढ़िया रीति-रिवाज से शादी, लाखों रुपए स्वाहा होने से बच जाएँगे.. समाजसेवा करने में और जरूरतमंदों की मदद करने के लिए इन रुपयों का इस्तेमाल कीजिएगा फिर.. इसमें क्या गलत है? अफसोस, नहीं कर पाएँगे आप, क्योंकि ऊँगली उठाना बहुत आसान है, उसे खुद के लिए अमल में लाना उतना ही कठिन। जब आपकी हैसियत हजारों की है और आप लाखों खर्च कर रहे हैं वह भी एक शादी में, तो उस व्यक्ति की हैसियत तो अरबों की है, उसके बावजूद उसने करोड़ों ही खर्च किए हैं.. लगाइए अब गणित..

अंबानी जी ने अपने सागर में से एक गागर पानी निकाला है, सागर भी उन्हीं का, और गागर भी उन्हीं का, लेकिन सारी की सारी समस्या हमें है.. सच में बड़े ही अजीब लोग हैं हम.. जितने भी लोग सवाल उठा रहे हैं, सब के सब बेबुनियाद हैं। जरूरतें बनी रहेगी संघर्ष होता रहेगा, रोटी कपड़ा मकान के लिए। लेकिन, जीवन में खुशियों को बाँटने और जीने का अधिकार सभी को है, सो उन्होंने भी शादी के इस आयोजन में किया। उन्होंने जिस तरह की शाही शादी की है, अन्य देशों के लोग उसकी तारीफें कर-करके थक नहीं रहे हैं, और एक हम, अपने ही लोगों की टाँग खींचने का काम करने में लगे रहते हैं। उम्मीद है, मुद्दा उठाने वाले तमाम लोगों को सारे सवालों का जवाब मिल गया होगा.. मेरी ओर से नव जोड़े को परिणय सूत्र में बँधने की अनंत शुभकामनाएँ..

(लेखक अतुल मलिकराम राजनीतिक रणनीतिकार है और ये उनके निजी विचार हैं)