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सनातन धर्म और संस्कृति का गवाह है श्री नृसिंह मंदिर

रखरखाव के अभाव में मंदिर खण्डर में तब्दील 

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। राजधानी में परमपुण्यदायिनी आदिगंगा गोमती के पावन तट पर सबसे प्राचीन श्री नृसिंह भगवान् का अद्भुत मंदिर स्थित है। मंदिर की प्राचीनता प्रथम दृष्टि से ही पता चल जाती है। इसका अधिकांश भाग प्राचीन लखनौरी ईंटों से बना है।‌ मंदिर का विशाल घाट खंडित कँगूरे अलंकृत प्रवेश द्वार सब इसकी पुराकालीन भव्यता की साक्षी देते हैं। किसी समय यहाँ कार्तिक पूर्णिमा पर विशाल मेला लगा करता था। दो दिशाओं से मंदिर में प्रवेश की व्यवस्था थी। महिलाओं के लिये अलग स्नान की व्यवस्था थी। परन्तु कालक्रम से आज यह दिव्य प्राचीन मंदिर खँडहर बन चुका है।

मंदिर के घाट पर मोटी सिल्ट जमा है। गोमती दर्शन के लिए बने कँगूरे टूट गये हैं। मंदिर के एक प्रवेश द्वार के सामने १९९८ में डालीगंज का पुल बन गया तो वह बंद हो गया। दूसरा द्वार नदी के सामने बने छोटे पुल पर था। वह पुल टूट गया तो दूसरा द्वार भी बंद हो गया। मंदिर के अनेक कमरों की दीवारें गिर गयीं। कुछ कमरों की छत टूट गयी। जो बचे उनपर अराजक तत्त्वों ने कब्ज़ा जमा लिया। मंदिर के आसपास नशेड़ियों का जमावड़ा हो गया।  मंदिर की अव्यवस्था के इस काल में भक्तों ने भी इसकी ओर से मुँह मोड़ लिया।‌ इसकी अनेक मूर्तियाँ चोरी हो गयीं। कुछ खंडित हो गयीं पर अभी भी यहाँ अनेक दिव्य एवं अद्भुत विग्रह धर्म के संरक्षणार्थ अविचल खड़े हैं। 

यहाँ गोमती तट पर श्री बजरंगबली की एक तांत्रिक मूर्ति है। जिसमें उनके पैरों के नीचे अहिरावण राक्षस बना है। इस मंदिर की छत आधी टूट गयी है, यदि थोड़ी सी और टूटकर मूर्ति पर गिरी तो विशाल मूर्ति खंडित भी हो सकती है। मंदिर में बजरंगबली के कुल पाँच विग्रह हैं। जिनमें तीन बालरूप के हैं।‌ मंदिर में दूसरी दिव्य मूर्ति भगवान भोलेनाथ के आखेटक बेर विग्रह की है। भगवान् शिव ने जब किरात का रूप धारण कर वीरवर अर्जुन को दर्शन दिये थे। उस समय की यह मूर्ति है। ऐसी मूर्तियाँ गुप्तकाल में बना करती थीं। यह मूर्ति संभवत इस मंदिर से भी बहुत प्राचीन है और कहीं से यहाँ लाकर रखी गयी है। पूरे लखनऊ जनपद में ऐसी मूर्ति कहीं और नहीं है। जो भी इस मूर्ति के दर्शन कर रहा है। इस मूर्ति में शिव परिवार में से केवल भगवान शिव एवं नन्दिकेश्वर की मूर्ति ही शेष है।‌ मंदिर के मुख्य कक्ष में सत्रह मूर्तियाँ रखी हैं। जो संभवत उनके स्वयं के कक्षों के भग्न हो जाने के कारण वहाँ रखी गयीं हैं। मुख्य कक्ष में भगवान श्री नृसिंह की दो दिव्य विग्रह रखे हैं एक उग्र मूर्ति एवं एक शान्त मूर्ति। इसके अतिरिक्त मंदिर में विभिन्न प्रकार के शालग्राम रखे हैं जिनमें दुर्लभ चक्र शालग्राम भी है।‌ राम दरबार एवं राधाकृष्ण की धात्विक मूर्तियाँ भी हैं।‌ इतने दिव्य विग्रहों के होने पर भी मंदिर की दुर्दशा अकथनीय है। देवमंदिर में न तो किसी पुजारी की व्यवस्था है और न नियमित भोग की। मूर्तियों का विधिवत् आरती-पूजन तक नहीं होता है। एक सेवादार किसी प्रकार विग्रहों की थोड़ी-बहुत सेवा कर रहा है।