Thursday , December 5 2024

समान नागरिक संहिता लागू करने का सबसे अनुकूल समय

विश्व संवाद केन्द्र में हुई अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने कॉमन सिविल कोड को देश की सभी समस्याओं का समाधान बताया

मुस्लिम दूसरा सबसे बड़ा बहुसंख्यक वर्ग है, अल्पसंख्यकों के नाम पर बने संस्थाएं और विभाग ख़त्म हों : कुंवर आजम खां

लखनऊ। छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर रविवार को विश्व​ संवाद केन्द्र, लखनऊ के विवेकानंद सभागार में ‘समान नागरिक संहिता की आवश्यकता’ विषयक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वक्ताओं ने देश में समान नागरिक संहिता बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। संगोष्ठी का शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रख्यात अमेरिकी पत्रकार डॉ. रिचर्ड बेंकिन, पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. सरजीत सिंह डंग, प्रो. धर्म कौर, भंते शीलरतन, भंते देवानंद, नरेन्द्र भदौरिया, कैप्टन राघवेन्द्र विक्रम सिंह, कुंवर मोहम्मद आजम खान, गिरीश चंद्र सिन्हा, अमिताभ त्रिपाठी एवं अशोक सिन्हा ने छत्रपति शिवाजी महाराज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरूजी गोलवालकर के चित्र पर पुष्पांजलि के साथ की।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अमेरिका के प्रख्यात पत्रकार एवं लेखक डॉ. रिचर्ड बेंकिन ने कहा कि अमेरिका में समान नागरिक संहिता है। भारत की प्रगति तभी हो सकती है जब यहां पर भी समान नागरिक संहिता बने। उन्होंने कहाकि हिजाब पहनने पर अमेरिका में कोई आपत्ति नहीं करता, पर भारत में आपत्ति करते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी की जमकर प्रशंसा की। डॉ. रिचर्ड बेंकिन ने कहा कि अमेरिका भारत का दोस्त था है और आगे भी रहेगा। अमेरिकी निवेशक जार्ज सोरोस के बारे में डॉ. रिचर्ड बेंकिन ने कहा कि यह आदमी न भारत का हितैषी है और न अमेरिका का। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पूरा दुनिया लोहा मानती है, इसलिए भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने का यह सर्वाधिक अनुकूल समय है।

अध्यक्षता कर रहे पूर्व मंत्री सरबजीत सिंह डंग ने कहा कि देशकाल एवं परिस्थिति के अनुसार स्मृतियों एवं संविधान में संशोधन होना चाहिए। हमारे प्रतापी पूर्वजों ने राजनैतिक ही नहीं अपितु पारिवारिक रूप से भी देश को संगठित करने का काम किया था।उन्होंने कहा कि देश का बंटवारा नहीं होना चाहिए था, लेकिन विभाजन हुआ। विगत पांच सौ वर्षों के अंदर भारत के कई टुकड़े हो गये। डॉ. सरजीत डंग ने कहा कि जो लोग शरीयत के नाम पर शरारत करते हैं वह लोग सरीयत का कानून लागू करने की मांग क्यों नहीं करते। 

कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि विद्यांत स्नातकोत्तर महाविद्यालय लखनऊ की प्राचार्य प्रो. धर्म कौर ने कहा कि जब केन्द्र में मोदी और प्रदेश में योगी हैं तो समान नागरिक संहिता में देरी क्यों? उन्होंने कहा कि मौलिक अधिकारों का फायदा जब सभी नागरिक उठाते हैं तो देश में सबके​ लिए एक समान कानून भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में समान नागरिक संहिता महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बहुत आवश्यक है। भंते शील रतन और भंते देवानन्द ने कहा कि बौद्ध मतावलम्बी भी समान नागरिक संहिता का समर्थन करते हैं। बौद्धिज्म सभी मनुष्यों को समान मानने का पक्षधर है।

भारतीय मुस्लिम महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुस्लिम कारसेवक मंच के अध्यक्ष कुंवर मोहम्मद आजम खान ने कहा कि समाज को बांटने का कार्य करने वाले अल्पसंख्यक आयोग और अल्पसंख्यक मंत्रालय एवं विभाग को खत्म किया जाना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा नहीं है, यह हमारी मां है और हम पांच वक़्त सिर झुकाकर सजदा करते हैं। इसलिए भारतीय और सच्चे मुस्लिम हमेशा समान नागरिक संहिता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि हम अल्पसंख्यक नहीं हैं, हम भारत के दूसरे सबसे बड़े बहुसंख्यक वर्ग हैं। इसलिए मुसलमानों को अल्पसंख्यक कहने और मानने वाले उनके हितैषी नहीं बल्कि दुश्मन हैं। 

पूर्व आईएएस कैप्टन राघवेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा कि शक्ति विहीन राजनीति से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। जब-जब हमारे देश की सत्ता कमजोर नेतृत्व के हाथों में गयी तब-तब देश कमजोर हुआ है। पीपुल्स फोरम फॉर जस्टिस के सचिव गिरीश चंद्र सिन्हा ने कहा कि इतिहास में जो गलतियां की गई हैं, उन्हें सुधारने का यह सबसे उपयुक्त समय है। उन्होंने संवैधानिक उपबंधों के व्याख्या करते हुए समान नागरिक संहिता लागू करने पर जोर दिया। विश्व संवाद केन्द्र के सचिव अशोक सिन्हा ने समान नागरिक संहिता देश के लिए जरूरी क्यों है इस पर प्रकाश डाला।

विश्व संवाद केन्द्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार नरेन्द्र भदौरिया ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन पत्रकार डॉ. अतुल मोहन सिंह ने किया। इस मौके पर कर्नल आदित्य प्रताप सिंह, धनंजय सिंह राणा, अनुराग पाण्डेय, अधिवक्ता अरुणा सिंह, माधुरी सिंह, अनुराग श्रीवास्तव, ओम पाण्डेय, विजय लक्ष्मी सिंह, प्रीती सिंह, निखिल सिन्हा के साथ लखनऊ के पत्रकार, प्रोफेसर, शिक्षक, अधिवक्ता, सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता और छात्र उपस्थित रहे।