(डॉ. एस.के. गोपाल)
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का लखनऊ से रिश्ता केवल एक निर्वाचन क्षेत्र का नहीं था बल्कि वह संबंध आत्मीयता, संघर्ष और संस्कारों से बना हुआ था। वे लखनऊ से सांसद रहे और इसी शहर की जनता के विश्वास के सहारे देश के प्रधानमंत्री बने। लखनऊ उनके लिए सत्ता की सीढ़ी नहीं, बल्कि जीवन का वह विद्यालय था जहाँ अभाव ने उन्हें विनम्र बनाया और संघर्ष ने उन्हें दृढ़। आज जब अटल बिहारी वाजपेयी को स्मरण किया जाता है, तो केवल एक प्रधानमंत्री या कुशल राजनेता का चित्र सामने नहीं आता बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की छवि उभरती है जिसने राजनीति को भाषा, मर्यादा और मानवीय संवेदना दी। यह गुण उन्हें सहज रूप से नहीं मिला था; यह लखनऊ की गलियों, साहित्यिक बैठकों और संघर्षपूर्ण दिनों की देन था।
पत्रकारिता के क्षेत्र में मेरे गुरु और अटल बिहारी वाजपेयी के सहकर्मी रहे पद्मश्री वचनेश त्रिपाठी एक संस्मरण अक्सर साझा किया करते थे। वे बताते थे कि दैनिक तरुण भारत और पांचजन्य में साथ काम करते समय उन्होंने और अटल जी ने लखनऊ में ऐसे दिन भी देखे, जब जेब में इक्के वाले को देने के लिए छः पैसे तक नहीं होते थे। ऐसे में सदर से अमीनाबाद तक का सफर पैदल तय करना पड़ता था। यह प्रसंग केवल आर्थिक तंगी की कथा नहीं है; यह उस तपस्या का संकेत है, जिसने आगे चलकर एक युगपुरुष को आकार दिया।
अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीति इसी संघर्ष की जमीन से उपजी थी। उन्होंने सत्ता को कभी लक्ष्य नहीं माना, बल्कि साधन के रूप में देखा। यही कारण था कि वे सत्ता में रहते हुए भी सत्ता के अहंकार से मुक्त रहे। प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भी उनकी वाणी में वही सहजता, वही संवेदनशीलता बनी रही, जो उन्होंने लखनऊ की सड़कों पर अर्जित की थी।
लखनऊ ने अटल जी को केवल राजनीतिक मंच नहीं दिया बल्कि भाषा और संस्कार भी दिए। उनकी वाणी में जो शालीनता, संवादशीलता और कविता का स्पर्श दिखता है, वह इसी शहर की तहज़ीब का प्रतिबिंब था। संसद में उनके भाषण केवल राजनीतिक वक्तव्य नहीं होते थे, बल्कि लोकतांत्रिक मर्यादा के उदाहरण बन जाते थे। वैचारिक मतभेदों के बावजूद वे विरोधियों के भी सम्मान के पात्र बने, यह गुण आज की राजनीति में दुर्लभ होता जा रहा है।
अटल बिहारी वाजपेयी का कवि–मन भी लखनऊ में खूब पल्लवित हुआ। राजनीति की कठोरता के बीच उनकी कविता मानवीय पीड़ा, आशा और आत्मचिंतन की आवाज़ बनी। यही संतुलन, राजनीति और कविता के बीच, उन्हें विशिष्ट बनाता है। वे निर्णय लेते समय भी मनुष्य को केंद्र में रखते थे न कि केवल सत्ता-समीकरणों को।
लखनऊ की जनता ने उन्हें बार-बार अपना प्रतिनिधि चुना, क्योंकि वे केवल नेता नहीं थे, बल्कि इस शहर की आत्मा को समझने वाले संवेदनशील नागरिक थे। उन्होंने दिखाया कि राजनीति यदि संस्कारों से जुड़ी हो तो वह समाज को जोड़ने का कार्य कर सकती है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि महानता सुविधाओं से नहीं, बल्कि संघर्ष, धैर्य और मूल्यों से जन्म लेती है।
आज जब सार्वजनिक जीवन में शोर, कटुता और तात्कालिक लाभ की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, अटल बिहारी वाजपेयी का स्मरण हमें ठहरकर सोचने को मजबूर करता है। उनका जीवन बताता है कि राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि चरित्र की परीक्षा भी है। लखनऊ की मिट्टी से निकला यह व्यक्तित्व राष्ट्र की चेतना तक इसलिए पहुँचा, क्योंकि उसने कभी अपनी जड़ों से मुँह नहीं मोड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी केवल भारत के प्रधानमंत्री नहीं थे; वे उस लखनऊ की आत्मा थे, जिसने अभाव में भी स्वाभिमान और संघर्ष में भी सौम्यता को जीवित रखा।

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