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मज़बूत संस्थाओं के निर्माण से ही यूपी और बिहार में आएगा टिकाऊ बदलाव : तनोज

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। भारत का सामाजिक विकास क्षेत्र अब एक अहम मोड़ पर पहुँच चुका है। यह क्षेत्र, जिसे पहले सिर्फ समाजसेवा या परोपकार से जोड़ा जाता था, आज एक मज़बूत और लगातार बढ़ते ऐसे तंत्र में बदल गया है, जो देश की तरक्की का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। भारत पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि विकास के लाभ समाज के हर वर्ग तक समान रूप से पहुँचें। इस दिशा में डेवलपमेंट सेक्टर की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।

हालाँकि, इस क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती है प्रशिक्षित और कुशल लोगों की कमी। कई ज़मीनी संगठन इसलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि उनके पास ऐसे लोग नहीं होते जो सामाजिक विकास कार्यक्रम को ठीक तरह से कार्यान्वित कर सकें। सामाजिक विकास के लिए ऐसे पेशेवरों और अपने क्षेत्र के अग्रदूतों की ज़रूरत है, जो दिशा, दृष्टि और लगन के साथ बदलाव ला सकें। यही कोशिश भारत की सामाजिक नींव को मज़बूत बनाएगी और आर्थिक तरक्की को समाज की तरक्की से जोड़ सकेगी।

क्यों महत्वपूर्ण हैं उत्तर प्रदेश और बिहार?

उत्तर प्रदेश और बिहार देश के विकास के सबसे बड़े इलाके हैं जिनमें अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन मज़बूत संस्थाओं और सक्षम नेतृत्व की अब भी कमी महसूस होती है। इन दोनों राज्यों में कई पेशेवर एनजीओ, सरकारी योजनाओं और कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के ज़रिए समाज में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं। फिर भी, संगठित प्रशिक्षण, डेटा पर आधारित काम करने की शैली और नेतृत्व विकास के सीमित अवसरों की वजह से उनका असर उतना बड़ा नहीं बन पाता जितना हो सकता है।

भारतीय विद्या भवन के मुंबई स्थित एस. पी. जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च (SPJIMR) संस्था के Post Graduate Programme in Development Management (PGPDM) के   अध्यक्ष और प्राध्यापक तनोज कुमार मेश्राम ने कहा, “वित्त वर्ष 2022-23 में भारत का कुल कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व खर्च करीब 30,000 करोड़ रुपये रहा। लेकिन इसमें से केवल लगभग 1,500 करोड़ रुपये उत्तर प्रदेश में और करीब 300 करोड़ रुपये बिहार में खर्च किए गए। यह दोनों राज्यों की आबादी के अनुपात में बहुत कम है, जबकि देश की लगभग 17 प्रतिशत आबादी उत्तर प्रदेश में और 9 प्रतिशत बिहार में रहती है। इन राज्यों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को देखते हुए यहाँ सामाजिक क्षेत्र में निवेश बढ़ाना बहुत ज़रूरी है। इसके साथ-साथ नई संस्थाएँ बनाना और मौजूदा संस्थाओं को मज़बूत करना भी उतना ही अहम है और यही काम एसपीजेआईएमआर का पीजीपीडीएम/PGPDM प्रोग्राम सफलतापूर्वक कर रहा है।”

अगर इन राज्यों के पेशेवरों को आधुनिक विकास प्रबंधन की समझ और सही प्रशिक्षण मिले, तो जमीनी स्तर पर बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। वित्तीय योजना, प्रोजेक्ट बनाना, काम के नतीजों का आकलन और साझेदारों के साथ बेहतर तालमेल जैसे विषयों की जानकारी से संस्थाएँ ज़्यादा प्रभावी, पारदर्शी और टिकाऊ बन सकती हैं। यह सिर्फ करियर में आगे बढ़ने का मौका नहीं, बल्कि ऐसी मज़बूत संस्थाओं के निर्माण की दिशा में कदम है, जो समान और स्थायी विकास को आगे बढ़ा सकें।

एसपीजेआईएमआर (SPJIMR) कैसे बना रहा है बदलाव का पुल

इस कमी को दूर करने के लिए, एस. पी. जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च (एसपीजेआईएमआर) का Post Graduate Programme in Development Management (PGPDM) सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों को प्रशिक्षण देने का एक बेहतरीन मौका देता है। यह प्रोग्राम ऐसे लोगों में नेतृत्व की क्षमता विकसित करता है, जो अपनी समुदायों की ज़रूरतों को गहराई से समझते हैं और समाज में असली तथा टिकाऊ बदलाव लाने के लिए ज़रूरी प्रबंधन कौशल रखते हैं।

SPJIMR का PGPDM प्रोग्राम सामाजिक परिवर्तन के लिए समर्पित पेशेवरों को तैयार करने के अपने मिशन पर केंद्रित है। यह कार्यक्रम किसी भी योग्य व्यक्ति के लिए खुला है जो सामाजिक क्षेत्र में नेतृत्व करना चाहता है। इस मिशन को बल देने और देश के महत्वपूर्ण क्षेत्रों तक इसकी पहुँच बढ़ाने के लिए, हम योग्य एवं मेहनती प्रतिभाओं को सशक्त बनाने हेतु छात्रवृत्तियाँ और फीस में रियायतें प्रदान कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य संस्थागत क्षमता को बढ़ाना और भविष्य के समावेशी विकास के लिए समाज की नींव को मजबूत करना है, जिससे न केवल उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों को, बल्कि पूरे भारत की प्रगति को भी बल मिले।

SPJIMR ka PGPDM 12-महीने का मॉड्यूलर शैक्षिक कार्यक्रम है, जो सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे या इस क्षेत्र में जुड़ना चाहने वाले पेशेवरों के लिए तैयार किया गया है। यह 39-क्रेडिट का प्रोग्राम तीन हिस्सों में बाँटा गया है, जिसमें 32 कोर्स शामिल हैं। इनमें विकास, प्रबंधन, प्रोजेक्ट योजना, नतीजों का मूल्यांकन, सामाजिक न्याय और आधुनिक प्रबंधन जैसे विषय शामिल हैं। कोर्स का समापन एक विकास प्रबंधन रिसर्च प्रोजेक्ट के साथ होता है, जो प्रतिभागियों को व्यावहारिक समझ और नेतृत्व की नई दृष्टि देता है। संस्थान विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार के विकास पेशेवरों, सरकारी अधिकारियों और सामाजिक परिवर्तन लाने वालों से आवेदन आमंत्रित कर रहा है। यह पहल न सिर्फ इन दो राज्यों के सामाजिक विकास को नई दिशा देगी, बल्कि भारत की समावेशी प्रगति में भी अहम योगदान करेगी।

यह भारत का एकमात्र विकास प्रबंधन प्रोग्राम है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर AACSB, AMBA और EQUIS जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं से मान्यता मिली है।