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संरचना : पर्यावरण संतुलन की दिशा में एक आवश्यक कदम

विश्व पक्षी दिवस

(अंशुमान सिंह)

आज के बदलते परिवेश में जब शहरों से हरियाली घट रही है और पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ता जा रहा है, तब पक्षियों का संरक्षण पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। कभी सुबह–शाम घरों की छतों, पेड़ों और मंदिरों से सुनाई देने वाली चिड़ियों की चहचहाहट अब धीरे–धीरे हमारे जीवन से गायब होती जा रही है। यह सिर्फ़ एक आवाज़ का लुप्त होना नहीं है, बल्कि प्रकृति के संतुलन का टूटना भी है।

पक्षी हमारे पर्यावरण के लिए अनमोल उपहार हैं। वे कीट–पतंगों की संख्या नियंत्रित करते हैं, पौधों के परागण में सहायक होते हैं और बीजों के प्रसार से वनस्पति को नया जीवन देते हैं। जहाँ पक्षी रहते हैं, वहाँ हरियाली और शुद्ध वातावरण स्वाभाविक रूप से बना रहता है। लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़, पेड़ों की कटाई और प्रदूषण ने उनके घर छीन लिए हैं।

ऐसे समय में पक्षी–संरचना की पहल न सिर्फ़ एक पर्यावरणीय कार्य है, बल्कि यह संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का प्रतीक भी है। यदि हम अपने घरों, विद्यालयों, मंदिरों या पार्कों में लकड़ी या मिट्टी के घोंसले लगाएँ, पेड़ों पर पानी और दाने के पात्र रखें, तो यह पक्षियों के लिए सुरक्षित आश्रय बन सकता है। ये छोटे–छोटे प्रयास मिलकर एक बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।

धरा फाउंडेशन जैसे संस्थान अयोध्या में इस दिशा में लगातार कार्यरत हैं। संस्था का उद्देश्य केवल पक्षियों को सुरक्षित आवास देना नहीं, बल्कि आम नागरिकों में पर्यावरण–प्रेम और जागरूकता का संदेश फैलाना भी है। यह पहल न केवल पक्षियों की रक्षा करेगी, बल्कि शहर के तापमान नियंत्रण, प्रदूषण घटाने और जैव विविधता बढ़ाने में भी मदद करेगी।

पक्षी–संरचना के अनेक लाभ हैं — यह पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखती है, कृषि को कीटों से प्राकृतिक सुरक्षा देती है, पक्षी–पर्यटन को बढ़ावा देती है और मनुष्यों में प्रकृति के प्रति संवेदना जगाती है। यदि अयोध्या जैसे शहर में हर परिवार एक–दो पक्षी–घोंसले लगाए, तो यह हजारों पक्षियों के लिए नया जीवन प्रदान कर सकता है।

आज जरूरत इस बात की है कि हम सभी “एक घर, एक घोंसला” का संकल्प लें। यह कोई कठिन कार्य नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति हमारे प्रेम की छोटी–सी अभिव्यक्ति है। यदि हम समय रहते यह जिम्मेदारी नहीं निभाएँगे, तो आने वाली पीढ़ियाँ चिड़ियों की मधुर चहचहाहट को केवल किताबों में पढ़ेंगी।

इसलिए आइए, हम सब मिलकर पक्षियों के लिए घर बनाएँ, जल–दाने की व्यवस्था करें और अपने शहर को फिर से उस स्वर से भर दें जो कभी हर सुबह को जीवंत बना देता था — चिड़ियों का संगीत, जो जीवन और प्रकृति दोनों का प्रतीक है।

(लेखक अंशुमान सिंह, भूगोल विषय के शोध छात्र हैं और ये उनके निजी विचार हैं)