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आज़ादी की पहचान और रिश्तों की डोर ने दी स्वतंत्रता और बंधुत्व की सीख

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। मदर सेवा संस्थान द्वारा बाल किलकारी सीज़न- 5 का आयोजन आशा मंच, कोटवा वार्ड न. 10, बक्शी का तालाब में किया गया। यूपी यूथ प्रोजेक्ट और संस्कृति निदेशालय के सहयोग से बाल नाट्य एवं गीतों की प्रस्तुति की गयी। जिसका नाट्य दिग्दर्शन, परिकल्पना एवं प्रस्तुति नियंत्रक महेश चंद्र देवा थे। 

पहला नाटक आज़ादी की पहचान थी, जिसका लेखन एवं निर्देशन मोहम्मद अमन और नाटक रिश्तों की डोर का लेखन एवं निर्देशन, श्रीकांत गौतम द्वारा किया गया। आज़ादी की पहचान नाटक संविधान के मूल अधिकार  स्वतंत्रता पर आधारित है। जिसमें दिखाया गया है कि कैसे हर नागरिक, चाहे वह किसी भी वर्ग, धर्म, जाति या विचार का हो, समान अधिकारों का हकदार है। मंच पर अलग-अलग पात्रों के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, न्याय पाने का अधिकार और जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे अधिकारों को सरल, जीवंत और प्रभावशाली दृश्यों में दिखाया गया है।

कहानी आगे बढ़ते हुए यह संदेश देती है कि अधिकार केवल किताबों में लिखी बातें नहीं, बल्कि हमारे दैनिक जीवन को दिशा देने वाली शक्तियाँ हैं। नाटक में यह भी बताया गया है कि जब अधिकारों का दुरुपयोग होता है या जब किसी की स्वतंत्रता छीनी जाती है, तो समाज कैसा असंतुलित हो जाता है। अंत में सभी पात्र एक स्वर में यह प्रतिज्ञा लेते हैं कि वे न केवल अपने अधिकारों का पालन करेंगे, बल्कि दूसरों के अधिकार और स्वतंत्रता की रक्षा भी करेंगे। यह प्रस्तुति दर्शकों को जागरूक, संवेदनशील और अपने संविधान के प्रति जिम्मेदार बनने का सरल, सुंदर और प्रभावशाली संदेश देती है।

वहीं दूसरे नाटक “रिश्तों की डोर” समाज में बंधुत्व, एकता और आपसी सहयोग के महत्व पर आधारित है। कहानी एक गाँव के लोगों की है जो धीरे-धीरे स्वार्थ और भेदभाव के कारण एक-दूसरे से दूर हो गए हैं। मुख्य पात्र अमित इस बिखरे समाज को देखकर निराश रहता है, उसे लगता है कि अब कोई किसी की मदद नहीं करता। इसी बीच उसका मित्र रवि, समाजसेवी रीना और समझदार बुजुर्ग मोहन उसे सिखाते हैं कि अब भी सब कुछ बदला जा सकता है,अगर हम दिल से एक-दूसरे के साथ खड़े हों।

वे सब मिलकर गाँव में बंधुत्व और सहयोग का अभियान शुरू करते हैं। धीरे-धीरे गाँव के लोग अपने भेदभाव भूलकर एक साथ काम करने लगते हैं। बच्चे, स्त्रियाँ और बुजुर्ग सब एकजुट हो जाते हैं। गाँव में सामूहिक शिक्षा, सेवा और मेल-मिलाप की भावना बढ़ने लगती है। अंत में सब मिलकर एक गीत गाते हैं “चलो मिलकर कदम बढ़ाएँ” जो एकता, प्रेम और भाईचारे का प्रतीक बन जाता है।

नाटक में कृष्णा, राजवीर, सुधीर, सानिया, रोमी, रुचि, प्राची, लवकुश, अनुराग, वैष्णवी, अनुष्का, सोनाली, विशाखा, राशि, रूची, अनुराग कुमार, अंजली, शिल्पी और अनिकेश ने अभिनय किया l 15 दिवसीय नाट्य कार्यशाला प्रशिक्षण के उपरांत दोनों नाटकों का शानदार मंचन हुआ। बच्चों ने अपने अभिनय से खूब तालियां बटोरी। संस्थान के सचिव महेश चंद्र देवा ने बताया की 26 नवंबर को संविधान दिवस और संस्था के 21 वर्ष पूर्ण होने पर 14 दिसंबर को संवैधानिक नाट्य समारोह का आयोजन किया जायेगा।