लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (आईजीबीसी) द्वारा शुक्रवार को यूपी सस्टेनेबिलिटी कॉन्क्लेव के सेकंड एडिशन की शुरुआत की गई। इस अवसर पर ‘उत्तर प्रदेश को डीकार्बनाइज करना: शून्य और हरित निर्मित पर्यावरण को बढ़ावा देना’ विषय पर चर्चा हुई। चर्चा में अलग-अलग इंडस्ट्री के लीडर्स और सरकारी पॉलिसीमेकर्स शामिल हुए। इसमें डीकार्बनाइजिंग उत्तर प्रदेश: पॉलिसी एंड रिगुलेटरी पाथवेज और डीकार्बनाइजिंग कंस्ट्रक्शन: द रोल ऑफ इमर्जिंग ग्रीन टेक्नोलॉजीज़ जैसे विषयों पर पैनल डिस्कशन भी हुआ।
कॉन्फ्रेंस में एएमए हर्बल के को-फाउंडर और सीईओ व संयोजक, सीआईआई एमएसएमई पैनल यावर अली शाह ने कहा कि शुद्ध हवा और शुद्ध पानी हमारी जिम्मेदारी है। हमें अपने पूर्वजों से जैसा पर्यावरण मिला है, वैसा ही पर्यावरण अपनी आने वाली पीढ़ी को देना होगा। इसके लिए सबसे पहले घरों में इस्तेमाल होने वाले पानी में कमी लानी होगी क्योंकि घरों में लगे पंप हर साल शहर के जलस्तर को तीन से छह फीट नीचे ले जा रहे हैं। हमने अपनी फैक्ट्री में जल संचयन के लिए विशेष तौर पर इंतजाम किये हैं। जहां आधा एक घंटे की बारिश में 1 से 1.5 लाख लीटर पानी का संचयन होता है। इसके हवा को शुद्ध बनाने के लिए अधिक पेड़ लगाने होंगे और पेड़ के आसपास पक्के निर्माण को बंद करना होगा। इससे पेड़ों की कॉर्बन सोखने की क्षमता कम हो रही है, जड़ें गहरी नहीं हो पा रही हैं और पेड़ कमजोर हो रहे हैं। इसी क्रम में लखनऊ मेट्रो के निदेशक – रोलिंग स्टॉक एवं सिस्टम्स नवीन कुमार ने बताया कि लखनऊ मेट्रो में हम 300 से अधिक वॉटर हार्वेस्टिंग यूनिट्स की मदद से लगभग 50 लाख लीटर जल का संरक्षण कर रहे हैं।
इसके बाद डीकार्बनाइजिंग उत्तर प्रदेश: पॉलिसी एंड रिगुलेटरी पाथवेज विषय पर पैनल डिस्कशन हुआ ।जिसमें ओमैक्स के बिजनेस हेड अंजनी पाण्डेय ने कहा कि अन्य सेक्टर्स की तरह रियल एस्टेट सेक्टर भी पर्यावरण को लेकर चिंतित है। इसके दो प्रमुख कारण हैं एक आमजन में जागरूकता और दूसरा पर्यावर्ण संरक्षण को लेकर सरकार द्वारा बनाए गए नियम। किसी भी निर्माण के दौरान हमारी यह कोशिश होती है कि पर्यावरण को न्यूनतम हानि हो तथा ऊर्जा के कभी न समाप्त हो पाने साधनों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करें। वर्तमान समय में कोई भी घर या फ्लैट खरीदने से पहले लोग यह पूछते है कि आपका कितना एरिया ग्रीन कवर्ड है। ऐसे एक प्राइवेट बिजनेस में अपने आपको बचाए रखने के लिए जरूरी है कि जनता की मांग को पूरा किया जाए। हां, यह सच है कि सस्टेनबिलिटी को ध्यान में रखते हुए किसी भी प्रोजेक्ट के निर्माण में लागत बढ़ जाती है क्योंकि पहले के समय में जो चीजें नॉर्मल थीं वह अब लग्जरी बन गई हैं। फिर चाहे सौर ऊर्जा के इस्तेमाल की बात हो या फिर कोई और तकनीक। शुरुआती समय में यह लागत को थोड़ा बढ़ा देती है।
इसके अलावा पैनल में प्रदेश सरकार के चीज टाउन एंड कंट्री प्लानर अनिल कुमार मिश्रा, यूपीएसआरटीसी के चीफ जनरल मैनेजर, टेक्निकल गौरव पाण्डेय, मिलिटरी इंजीनियरिंग सर्विस के चीफ इंजीनियर बी.एस लसपाल, पीडब्लूडी के चीफ इंजीनियर मसर्रत नूर खान और यूपी मेट्रो के जॉइंट जनरल मैनेजर इन्वार्नमेंट एंड सोशल चेतन त्यागी ने भी अपने विचार रखे। पैनल के आखिर में आईजीबीसी लखनऊ चैप्टर के सीओओ अमित श्रीवास्तव ने सबको धन्यवाद दिया।
दूसरे सोशन में डीकार्बनाइजिंग कंस्ट्रक्शन: द रोल ऑफ इमर्जिंग ग्रीन टेक्नोलॉजीज़ विषय पर चर्चा हुई जिसमें एक्सपर्ट्स ने नई तकनीकों के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन को कम करने पर विचार रखे। इसमें इलेक्ट्रिक वइकल से लेकर सस्टेनबल वॉटर सिस्टम पर चर्चा की गई।