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40 साल से पहले ही बढ़ रहा दिल की बीमारियों का खतरा, इन बातों का रखे ख्याल

  • कम उम्र के लोगों में बढ़ते हार्ट अटैक के मामले, मेदांता ने समय पर जांच और लाइफस्टाइल बदलाव पर दिया ज़ोर

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। पहले जहां हार्ट अटैक का खतरा 55 साल की उम्र बाद ज्यादा देखा जाता था, अब यह तेजी से 40 साल से कम उम्र के लोगों में भी बढ़ रहा है। इसकी बड़ी वजह है भागदौड़ भरी जिंदगी, बैठकर अधिक समय तक काम करना, मोटापा, तनाव, तंबाकू का इस्तेमाल और शारीरिक गतिविधि की कमी। साथ ही डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याएं जब कंट्रोल में नहीं रहतीं तो यह अचानक दिल का दौरा पड़ने का कारण बनती हैं।

मेदांता हॉस्पिटल्स के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. नरेश त्रेहन ने लखनऊ में आयोजित कार्डियक कॉन्क्लेव वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए कहा, “समय पर जांच और प्रिवेंटिव हेल्थ चेकअप को भारत की हेल्थ स्ट्रैटेजी का अनिवार्य हिस्सा बनाना बेहद ज़रूरी है।” इस कार्यक्रम का लक्ष्य डॉक्टरों को जटिल मामलों से निपटने के लिए तैयार करने के साथ-साथ आम लोगों में जागरूकता फैलाना भी रहा।”

पिछले दो दशकों में 40 साल से कम उम्र वालों में हार्ट अटैक के मामलों में बड़ा इज़ाफ़ा हुआ है। हार्ट अटैक की वजह से भर्ती होने वाले हर पाँच में से एक मरीज की उम्र 40 साल से कम होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, साल 2022 में दुनियाभर में करीब 1.98 करोड़ लोगों की मौत दिल की बीमारियों से हुई। भारत में 30 से 50 साल की उम्र के बीच दिल की बीमारी की शुरुआत बहुत आम होती जा रही है।

कॉन्क्लेव में कई डॉक्टरों ने अपने अनुभव साझा किए। डॉ. गणेश सेठ ने 45 साल के एक ऐसे मरीज का केस बताया, जिसे कोई लक्षण नहीं था लेकिन ट्रेडमिल टेस्ट पॉज़िटिव आया। डॉ. वैभव सक्सेना ने समझाया कि जटिल हार्ट ब्लॉकेज में इन्ट्रावैस्क्युलर इमेजिंग कितनी ज़रूरी है। डॉ. रोली श्रीवास्तव ने एक 15 दिन के नवजात की जान बचाने का उदाहरण दिया, जिसे बैलून एऑर्टिक वाल्वोटॉमी से सफलतापूर्वक ठीक किया गया। डॉ. माहिम सरीन ने ऐसे युवाओं के केस दिखाए जिन्हें बार-बार बेहोशी होती थी और कार्डियक एमआरआई तथा पीईटी स्कैन से समय पर उनकी बीमारी पकड़ी जा सकी।

डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने किडनी की गंभीर बीमारी वाले एक मरीज का अनुभव साझा किया, जिसे सीने में तेज दर्द के साथ लाया गया और उसे स्टेंट की ज़रूरत पड़ी। उन्होंने बताया कि ऐसे मरीजों का इलाज काफी चुनौतीपूर्ण होता है और बहुत सावधानी की मांग करता है। इसी तरह डॉ. एस.के. द्विवेदी और डॉ. हिमांशु गुप्ता ने जटिल एंजियोप्लास्टी के मामले बताए जिनमें स्ट्रोक और पेट की बीमारियों जैसी दूसरी दिक्कतें भी थीं।

डॉ. प्रवीन के. गोयल ने बुजुर्ग मरीजों के लिए टीएवीआई (ट्रांसकैथेटर एऑर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन) तकनीक को बेहद लाभकारी बताया। उन्होंने बताया कि यह बिना ओपन हार्ट सर्जरी के स्टेंट के जरिए वाल्व बदलने की आधुनिक तकनीक है। डॉ. गौरांग मजुमदार ने रोबोटिक बाईपास सर्जरी का लाइव प्रदर्शन किया और दिखाया कि कैसे यह तकनीक भविष्य में दिल के ऑपरेशन का स्वरूप बदल सकती है।

मेदांता लखनऊ आज क्षेत्र का एक अग्रणी कार्डियक सेंटर बन चुका है। यहां 256-स्लाइस सीटी स्कैनर और 3.0 टेस्ला एमआरआई जैसी अत्याधुनिक जांच सुविधाएं मौजूद हैं। अस्पताल ने रोबोटिक हार्ट सर्जरी और हार्ट ट्रांसप्लांट प्रोग्राम में भी खास पहचान बनाई है। विशेषज्ञों की बड़ी टीम, जिसमें चार डायरेक्टर, दस सीनियर कंसल्टेंट और चार कार्डियक सर्जन शामिल हैं, 24 घंटे गंभीर मामलों के इलाज के लिए उपलब्ध रहती है।

कॉन्क्लेव में डॉक्टरों ने खासतौर पर यह सलाह दी कि 40 साल से ऊपर के लोगों को जिम शुरू करने से पहले ज़रूर ब्लड प्रेशर, शुगर, कोलेस्ट्रॉल की जांच और ट्रेडमिल स्ट्रेस टेस्ट कराना चाहिए। ये छिपे हुए खतरे, अगर समय रहते पकड़े न जाएं, तो एक्सरसाइज़ के दौरान जानलेवा साबित हो सकते हैं।