लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। वॉश कला को नया आयाम देने वाले स्व. प्रो. सुखवीर सिंघल की पुस्तक EVOLUTION OF ART AND ARTIST के पहले खंड का रविवार को विमोचन हुआ। बलरामपुर गार्डेन में चल रहे राष्ट्रीय पुस्तक मेले में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि मौजूद उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, विशिष्ठ अतिथि राज्य ललित कला अकादमी के पूर्व चेयरमैन सीताराम कश्यप, पूर्व क्षेत्रीय सचिव अखिलेश निगम ने पुस्तक का विमोचन किया।
इस मौके पर मेला संयोजक मनोज सिंह चंदेल, प्रो. सुखवीर सिंघल के दामाद राजेश जायसवाल, पुत्री डा. स्तुति सिंघल, नातिन प्रियम चंद्रा, आईटी कॉलेज की पूर्व प्राचार्य डा. अणिमा चक्रवर्ती सहित कई गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।

डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने कहा कि आज एक ऐसी पुस्तक का विमोचन करने का अवसर मिला है जिसके लेखन से प्रकाशन तक अलग कहानी है। प्रो. सुखवीर सिंघल ने जिस तरह से कला को आगे बढ़ाने का कार्य किया वह काफी प्रशंसनीय है। कलाकृतियों के माध्यम से उनकी जीवनशैली और जीवन गाथा आज भी जीवित है। यह पुस्तक भारत की कला और संस्कृति को विश्व में बिखेरने का कार्य करेगी। डिप्टी सीएम ने विरासत को आगे बढ़ाने में प्रो. सुखवीर सिंघल की नातिन प्रियम चंद्रा के प्रयासों की तारीफ करते हुए कहा कि बेटियां भारत की संस्कृति को देश विदेश तक पहुंचाने में अहम योगदान दे रही हैं।

प्रो. सुखवीर सिंघल की नातिन प्रियम चंद्रा ने बताया कि इस पांडुलिपि को पूरा करने में उनके नाना को बारह वर्ष का अथक परिश्रम करना पड़ा, परंतु उनके जीवनकाल में यह पुस्तक प्रकाशित न हो सकी। बीते करीब तीन वर्षों की मेहनत के बाद उन्होंने इस पुस्तक को EVOLUTION OF ART AND ARTIST नाम से तैयार किया है। यह पुस्तक केवल कला का इतिहास नहीं है, बल्कि कला के दर्शन, मनोविज्ञान और तकनीकी पहलुओं की गहराई से समझाने वाला ग्रंथ है। उन्होंने बताया कि भविष्य में पुस्तक का दूसरा और तीसरा खंड भी प्रकाशित होगा।
प्रियम चंद्रा ने बताया कि सन् 1942 की होली की सुबह उनके नाना को पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुत्री इंदिरा गांधी के विवाह निमंत्रण पत्र को तैयार करने को बोला। सुखवीर सिंघल का दृढ़ आग्रह था कि निमंत्रण पत्र भारतीय शैली में हो। इस पर हुए गहन संवाद में उन्हें अपनी विचारधारा को पुस्तक रूप में प्रस्तुत करने का सुझाव मिला।

तीन खंडों में कल्पित इस पुस्तक के बारे में प्रियम चन्द्रा और सहयोगी डा. अणिमा चक्रवर्ती ने बताया कि पांडुलिपि पूरा करने में उन्हें बारह वर्ष लगे, परंतु उनके जीवनकाल 2006 तक में यह पुस्तक प्रकाशित न हो सकी। अब डिजिटलीकरण और कई दौर के सूक्ष्म संपादन के बाद छपकर सामने आयी है। इस मौके पर डा. अणिमा चक्रवर्ती, प्रशांत भाटिया, शुभि पब्लिकेशन के संजय, रितम, पुनीत सहित काफी संख्या में कलाप्रेमी मौजूद थे।