लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए एक नई उम्मीद की किरण बनकर उभरी है अग्रणी कृषि कंपनी सिंजेंटा की नई पहल, जो वर्षों से “गन्ने का कैंसर” कहे जाने वाले रेड रॉट (लाल सड़न) नामक बीमारी से जूझ रहे किसानों को राहत दे रही है। यह फफूंदजनित बीमारी (Colletotrichum falcatum) के कारण होती है। यह राज्य के मेरठ, मुजफ्फरनगर, अमरोहा, लखीमपुर, सहारनपुर जैसे गन्ना उत्पादक ज़िलों में किसानों की आमदनी पर गहरा असर डाल रही है।
प्रशिक्षण के बारे में जानकारी देते हुए, सुशील कुमार (कंट्री हेड और मैनेजिंग डायरेक्टर, सिंजेंटा इंडिया) ने कहा, “हमने राज्यभर के किसानों के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए हैं। अब तक 540 गांवों में 48,000 से अधिक किसानों को जागरूक किया गया है, जिसमें मिट्टी की सेहत, फसल सुरक्षा और रेड रॉट की प्रारंभिक पहचान जैसे विषय शामिल हैं। इस साल रेड रॉट से निपटने के लिए पीलीभीत, बिलासपुर, हरदोई, बागपत, मुरादाबाद, गोंडा, कुशीनगर, लखीमपुर खीरी, बिजनौर और अमरोहा जैसे जिलों में विशेष जागरूकता शिविर लगाए गए हैं।”
सिंजेंटा इंडिया के चीफ सस्टेनेबिलिटी ऑफिसर डॉ. के.सी. रवि ने बताया कि रेड रॉट नमी और जलभराव वाले खेतों में तेजी से फैलती है, खासतौर पर वहां जहां सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है। यह बीमारी गन्ने के अंदरूनी ऊतकों को सड़ा देती है, जिससे पौधों की बढ़त रुक जाती है और कभी-कभी पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। लाल सड़न रोग के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए राज्य भर में किए गए हमारे समय पर हस्तक्षेप किसानों के लिए लाभकारी साबित हुए हैं, क्योंकि आमतौर पर उनके पास तकनीकी जानकारी की सीमित पहुंच होती है।
2023-24 में बिजनौर में गन्ने की पैदावार तीन करोड़ क्विंटल कम हुई, जबकि 2022-23 में यहां 12.43 करोड़ क्विंटल रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था। पूरे राज्य में भी गन्ना उत्पादन 224.25 मिलियन टन से घटकर 215.81 मिलियन टन पर आ गया। चीनी उत्पादन भी मामूली रूप से घटा है। कई चीनी मिलों को गन्ने की कमी के कारण समय से पहले बंद करना पड़ा।
किसानों की उम्मीद बनी सिंजेंटा की पहल
मुजफ्फरनगर के 42 वर्षीय किसान कमल कुमार के लिए साल 2022 सबसे कठिन रहा। कमल बताते हैं “मेरी 6 एकड़ में से लगभग आधी फसल रेड रॉट से बर्बाद हो गई। लागत भी नहीं निकल पाई। लेकिन 2024 में सिंजेंटा द्वारा आयोजित रेड रॉट जागरूकता शिविर में शामिल होने के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई। मुझे नहीं पता था कि जल निकासी और पौधों के बीच दूरी कितनी जरूरी है, और बीमारी की पहचान पहले ही की जा सकती है।” कमल कहते हैं कि अब उनकी फसल पूरी तरह रोगमुक्त है और उत्पादन में भी बढ़ोतरी हुई है।
‘क्रॉप डॉक्टर’ बनी किसानों की मार्गदर्शक
लखीमपुर और अमरोहा के काले सिंह, जो पहले रेड रॉट से परेशान थे, अब अपने इलाके में प्रेरणास्रोत बन चुके हैं। उन्होंने सिंजेंटा की मोबाइल सेवा “क्रॉप डॉक्टर” से जुड़कर न सिर्फ समय पर सलाह ली, बल्कि अपने खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता और जड़ स्वास्थ्य को बेहतर किया।
“ऐप से सिंचाई का सही समय पता चलता है और मौसम के हिसाब से फंगल बीमारी का भी पूर्वानुमान मिलता है।” काले सिंह बताते हैं कि आज वे अन्य किसानों को भी वैज्ञानिक तरीकों से फसल देखभाल करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय
कुशीनगर स्थित गन्ना अनुसंधान संस्थान के संयुक्त निदेशक डॉ. सुभाष सिंह कहते हैं, “गन्ना एक लंबी अवधि की फसल है। जलभराव या अनियमित सिंचाई पौधे को कमजोर कर देती है और उसे रेड रॉट जैसी बीमारियों के प्रति संवेदनशील बनाती है। जलवायु परिवर्तन के चलते यह जोखिम और भी बढ़ रहा है।”
राज्य सरकार ने भी सिंचाई सुविधाओं के आधुनिकीकरण के लिए सोलर पंप और नहर मरम्मत जैसी योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन जागरूकता की कमी अब भी बड़ी बाधा बनी हुई है।
कमल कुमार और काले सिंह जैसे किसानों की सफल कहानियाँ इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि समय पर सिंचाई और सही फसल देखभाल से गन्ने की पैदावार को बेहतर बनाया जा सकता है। जब सरकारी प्रयासों के साथ निजी कंपनियाँ किसानों को सही जानकारी और साधन उपलब्ध कराती हैं, तब चुनौतियों को अवसरों में बदला जा सकता है।
उत्तर प्रदेश को शुगर बोल बनाए रखने के लिए जरूरी है कि किसानों तक वैज्ञानिक सलाह, जागरूकता और तकनीकी मदद की अंतिम कड़ी को मजबूत किया जाए।