गोण्डा (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। शिक्षा की दिशा संस्कारपूर्ण और भारतीय संस्कृति पर आधारित होनी चाहिए। समाज की दशा व दिशा भारतीय मूल्यों-आदर्शों और सिद्धांतों से ओत-प्रोत होनी चाहिए। जिसके लिए संस्कार युक्त शिक्षा परम आवश्यक है। इस प्रकार की शिक्षा देने का कार्य अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान (वि़द्या भारती) द्वारा संचालित शिशु/ विद्या मन्दिर कर रहे हैं। उक्त बातें सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज मालवीय नगर गोंडा के नवागत प्रधानाचार्य रवि कुमार शुक्ल ने कही।
उन्होंने बताया कि आज सम्पूर्ण भारत में विद्या भारती 24183 से अधिक विद्यालय एक लाख पचास हजार आचार्य एवं 3447856 लाख विद्यार्थियों को शिक्षा देने का कार्य कर रही है। विद्या भारती ने अब खण्ड स्तर से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक अपने विद्यालयों का विस्तार शुरू किया है। जिससे अभाव ग्रस्त, असहाय एवं निर्धन जनों के बच्चों को संस्कारयुक्त शिक्षा देकर समाज में बराबरी का स्थान दिलाया जा सके। विद्या भारती का लक्ष्य पूरी तरह से स्पष्ट है। हमें इस प्रकार से शिक्षा प्रणाली का विकास करना है कि जिससे ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण हो सके जो शारीरिक, प्राणिक, मानसिक और बौद्धिक दृष्टि से पूर्ण विकसित हो और समाज में एक नया परिवर्तन करने में सक्षम हो।
उन्होंने बताया कि विद्या भारती के द्वारा चलाये जा रहे आयामों को सरकारों एवं अन्य विद्यालयों ने अपनाना शुरू कर दिया है। जिसमें सतत मूल्यांकन, सामाजिक समरसता, शिशु भारती और छात्र संसद जैसे आयाम प्रमुख हैं। हमने झुग्गी-झोपडि़यों में निवास करने वाले दीन-दुःखी बान्धवों को सामाजिक कुरीतियों, शोषण एवं अन्याय से मुक्त कराने के लिए ग्राम स्तर पर एकल विद्यालय एवं संस्कार केन्द्रों का संचालन किया है। हमारे विद्यालयों में छात्रों को शारीरिक, मानसिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से शिक्षित कर उनका सर्वांगीर्ण विकास किया जा रहा है।
उनके मुताबिक गोंडा में 15 शिशु मन्दिर, 5 इण्टर काॅलेज, 1 बालिका विद्या मन्दिर और 1 शिशु वाटिका संचालित है। जिसमें पढ़ रहे भैया-बहनों ने राष्ट्रीय स्तर तक की प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। चाहे वह अखिल भारतीय हाॅकी प्रतियोगिता में लगातार कई बार स्थान लाने की बात हो या फिर विज्ञान मेले में राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक प्राप्त करने की बात या आईएएस, पीसीएस और आईपीएस जैसी प्रतियोगिताओं में चयन रही हो। छात्रों में नेतृत्व क्षमता के विकास के लिए छात्र संसद और शिशु भारती का गठन किया जाता है।
उन्होंने कहा कि भैया-बहनों के सर्वांगीर्ण विकास के लिए विद्यालय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक विज्ञान मेला, खेल-कूद प्रतियोगिता, प्रश्नमंच और कला-पर्व जैसी प्रतियोगिताएँ समय-समय पर आयोजित की जाती रही हैं। परीक्षा में विद्यालय के छात्र-छात्राओं का सदैव सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है। बोर्ड परीक्षा में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी हमारे छात्र-छात्राओं ने सर्वश्रेष्ठ सफलता अर्जित की है। यहाँ से निकले छात्र-छात्रा विभिन्न प्रशासनिक सेवाओं जैसे आई0ए0एस0, पी0सी0एस0, इन्जीनियर, डाॅक्टर, वैज्ञानिक सहित विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों में अपनी सेवा समाज व राष्ट्र के विकास के लिए दे रहे हैं। राजनैतिक दृष्टि से भी हमारे भैया-बहनों ने एक सफल राजनेता के रूप में अपना दमखम दिखया है।
आज वर्तमान परिवेश में जो एक अंग्रेजियत का माहौल सा बन गया है। जिससे संस्कार पक्ष का बच्चों में धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है, लोगों का अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों को ज्यादा महत्व देना। लेकिन यदि तुलना की जाए तो विद्या भारती के विद्यालय उन विद्यालयों से सदैव आगे रहे हैं। चाहे वह परिणाम की बात रही हो या भारतीय मूल्यों, आदर्शों एवं संस्कार आदि की बात हो।