ऐतिहासिक निर्णय है जातिगत जनगणना


मृत्युंजय दीक्षित


जम्मू कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा धर्म पूछकर किये गये हिन्दू नरसंहार के बाद जनमानस में उपजे आक्रोष और पाकिस्तान पर कार्यवाही की प्रतीक्षा कर रहा आम जनमानस तथा राजनैतिक दल उस समय हैरान रह गए जब केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का बड़ा निर्णय सुनाया। केंद्र सरकार का यह निर्णय आते ही देश का राजनैतिक विमर्श जातिगत जनगणना पर केन्द्रित हो गया। आमजन यद्यपि यह सोच रहा है कि इस समय जब हम आतंकवादियों के शवों की प्रतीक्षा कर रहे हैं उस समय प्रधानमंत्री जी को ये क्या सूझ पड़ी, किन्तु आश्वस्त है कि प्रधानमंत्री जी ने ऐसा किया है तो अवश्य इसके पीछे कुछ रणनीति होगी। उधर कांग्रेस के नेतृत्व में इंडी गठबंधन इसे अपनी विजय बताकर प्रसन्नता व्यक्त कर रहा है। कांग्रेस तो इतनी आतुर हो गई कि उसने सोशल मीडिया पर, “सरकार उनकी, सिस्टम हमारा” कैप्शन के साथ राहुल का प्रचार आरम्भ कर दिया, फिर उनको याद दिलाना पड़ा कि ये फिल्म में एक खलनायिका द्वारा कहे गए शब्द हैं जो आतंकवादियों के साथ है।
पहलगाम आतंकी हमले के पश्चात प्रधानमंत्री जी ने कदा रुख अपनाया है और कहा है, हम आतंकवादियों तथा उनके पीछे छुपे लोगों का धरती के अंत तक पीछा करेंगे और सजा देंगे। प्रधानमंत्री ने इस बार पाकिस्तान को कल्पना से अधिक दंड मिलने की बात भी कही है। संभव है, इस प्रक्रिया में समय लगे और लम्बे समय तक युद्ध की परिस्थितियां बनी रहें। उस समय में विपक्ष अपना राजनैतिक अस्तित्व बचाए रखने के लिए क्या – क्या कर सकता है? स्वाभाविक रूप से जाती जनगणना जैसे मुद्दों को हवा देगा। भारत की अवश्यम्भावी विजय के उपरांत विपक्ष के पास क्या मुद्दा होगा? स्वाभाविक है वो पुनः अत्यंत आक्रामक रूप से जातिगत जनगणना के मुद्दे को उठाएगा यही कारण है कि केंद्र सरकार ने पहले ही जातिगत जनगणना का निर्णय लेकर उन वर्गों की चिंताओं को दूर कर दिया है जो मानती है कि जातिगत जनगणना उनके पक्ष में होगी और जिनको विश्वास में लेकर राहुल गाँधी तथा उनके मित्र देश और समाज का वातावरण बिगाड़ सकते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामाजिक समरसता के विचारों को आत्मसात करते हुए तथा संघ को अपने निर्णय में साथ लेकर केंद्र सरकार ने यह निर्णय लिया है।
कांग्रेस ने जातिगत जनगणना को एक राजनतिक हथियार के रूप में उपयोग करके 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के मिशन 400 को पूरा होने से रोक दिया यद्यपि उसके बाद हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र में भाजपा के नए नारों “एक रहेंगे नेक रहेंगे“ और “बटेंगे तो कटेंगे“ ने परिस्थितियाँ पूरी तरह बदल दीं। वर्तमान में भारत -पाक के मध्य चल रहे तनाव के समय सरकार द्वारा लिया गया जातिगत जनगणना का निर्णय विपक्ष के लिए तनाव पैदा करने है भले ही इस समय वो इस फैसले को अपनी जीत मानकर जश्न मना रहा है। वास्तविकता यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सहयोगियों व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ मिलकर विरोधी दलों के खतरनाक राजनीतिक एजेंडे पर पॉलटिकिल सर्जिकल स्ट्राइक कर दी है और एक बड़ा मुद्दा उनके हाथों से छीन लिया है।
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी सदन और सदन के बाहर हमेशा यही कहते थे कि जब भी हमें मौका मिलेगा हम संसद से जातिगत जनगणना का प्रस्ताव पारित करवाकर रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी जी ने उनके इस कथन का पटाक्षेप कर दिया है और यह भी स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस जातिगत जनगणना पर केवल राजनीति ही करती रही है।
वर्ष 1931 में जब देश में अंग्रेजों की सरकार थी तब जातिगत जनगणना हुई थी, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में अधिकांश समय कांग्रेस की सरकारें ही रहीं किंतु कांग्रेस ने कभी भी जातिगत जनगणना करवाने का साहस नहीं किया अपितु पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह सरकार के गृहमंत्री पी चिदम्बरम तक ने सदन मे खड़े होकर 16 बिन्दुओं को आधार मानकर जातिगत जनगणना का कड़ा विरोध किया था और इसे देशहित के खिलाफ बताया था। यह एक कटु सत्य है किआज जिस कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी जातिगत जनगणना के नाम पर देश को अराजकता की आग में झोकने का प्रयास कर रहे हैं उस कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का हमेशा विरोध किया और इसे लागू नहीं होने दिया।
पत्रकार वार्ता में जातिगत जनगणना के निर्णय की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि जातिगत जनगणना कराना समता, समरसता, सुशासन और सामाजिक न्याय के एक नये युग का आरंभ है। अब जातिगत जनगणना का मुद्दा पूरी तरह से बीजेपी के पाले में है। भाजपा ने कभी भी जातिगत जनगणना का विरोध नहीं किया। स्मरणीय है कि जब बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतिश कुमार इंडी गठबंधन में शामिल थे और उन्होंने जातिगत जनगणना को लेकर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी तब बीजेपी ने भी उस बैठक में भाग लिया था और जातिगत जनगणना का समर्थन किया था यद्यपि बीजेपी को विपक्ष के तौर तरीकों पर आपत्ति थी क्योंकि जनगणना मूलतः केंद सरकार का विषय है और इसमें राज्य सरकारों की कोई भूमिका नहीं है। अभी तक जिन राज्यों में यह जनगणना हुई है वह राजनीति से प्रेरित तथा सामाजिक तनाव बढ़ाने वाली रही है।
केंद्र सरकार की जातिगत जनगणना से पहली बार वास्तविक आंकड़े सामने आयेंगे।इस जनगणना के माध्यम से कई चीजे स्पष्ट हो सकेंगी जिसमें एक यह बड़ा मुददा भी है कि हर जाति के दंबग लोग ही आरक्षण का लाभ उठाते चले आ रहे हैं जबकि उन्हीं जातियों और समाज के अन्य लोग पिछड़ते ही चले जा रहे हैं, उन्हें आरक्षण व सरकार की अन्य सुविधाओं का प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिल पा रहा है अर्थात क्रीमिलेयर का भी वास्तविक वर्गीकरण हो सकेगा।
विपक्ष की जातिगत जनगणना केवल हिंदू समाज को जातियों में विभाजित करने की नीयत से थी जबकि मोदी सरकार अब संपूर्णता के आधार पर जातिगत जनगणना कराने जा रही हैं देश के इतिहास में पहली बार मुस्लिम समाज की जातियों की भी जनगणना होने जा रही है। इस जनगणना के माध्यम से धर्मांतरण करने वालों का आंकड़ा भी जुटाया जायेगा। धर्म परिवर्तन करने के कारण देश के कई हिस्सों की जनसंख्या और भौगोलिक संरचना में तेजी से बदलाव देखा गया है ।ऐसे में सरकार के यह भी पता करने का इरादा है कि किन धर्मों और जाति विशेष के लोगों में धर्मांतरण हुआ और किस हिस्से में इसका प्रभाव अधिक है। जातिगत जनगणना का परिणाम सामने आने के बाद सामाजिक आर्थिक स्थिति का सटीक डेटा मिल सकेगा। वंचित समूहों के लिए नीतियां बनाने में मदद मिल सकेगी संसाधनों और अवसरो का समान वितरण हो सकेगा तथा समाजिक असमानता को कम करने में मदद मिलने के साथ जाति व्यवस्था के कारण होने वाले भेदभाव की समस्या का भी समाधान हो सकेगा।
जातिगत जनगणना पर संघ का दृष्टिकोण भी स्पष्ट है कि यदि जातिगत जनगणना का उद्देश्य न्याय ओैर कल्याण है तो समर्थन योग्य है और यदि उसका उद्देश्य राजनीति और समाज को बांटना है तो उसका सदैव विरोध है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस निर्णय का समर्थन किया है। संघ का विचार है कि “जाति का अंत आांकड़ों से नहीं, आत्मीयता से होगा लेकिन आंकड़ो के बिना न तो नीति बनेगी न्याय मिलेगा।“ वैसे भी संघ का मूल कार्य सामाजिक समरसता ही है और वह आगामी समय में सामाजिक समरसता का एक महा अभियान चलाने वाला है। वर्तमान जातिगत जनगणना का स्वरूप संघ के दृष्टिकोण से मेल खाता है।
जातिगत जनगणना की बात सामने आने पर कई विचारक इसमें सनातनी “गोत्र” को भी जोड़े जाने की मांग कर रहे हैं क्योंकि हिन्दू समाज की रचना में गोत्र, किसी भी समाज के सनातन ऋषि परम्परा से जुडाव को स्थापित करता है। हिन्दू जीवन के सभी सोलह संस्कारों तथा पूजा एवं दान के संकल्प में गोत्र का नाम लिया जाना अनिवार्य होता है।

(मृत्युंजय दीक्षित स्तंभकार है और ये उनके निजी विचार हैं फोन नं. – 9198571540)