- भारत में हर साल 30 हज़ार को जरूरत है लिवर की, मिलता है केवल 3 हज़ार को
- लिवर डोनेशन से जुड़े डर को खत्म करने की दिशा में अपोलोमेडिक्स का महत्वपूर्ण कदम
- अंगदान में महिलाओं का अहम योगदान, पत्नियाँ और बेटियाँ बनीं ट्रांसप्लांट के लिए प्रमुख डोनर
लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। वर्ल्ड लिवर डे के अवसर पर अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसका उद्देश्य लिवर डोनेशन और ट्रांसप्लांट से जुड़े मिथकों और डर को लेकर लोगों को जागरूक करना था। इस कार्यक्रम में लिवर ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीजों और उनके डोनर्स ने भी हिस्सा लिया, जो ट्रांसप्लांट के बाद सामान्य जीवन जी रहे हैं और ऑर्गन डोनेशन के लिए एक प्रेरणास्रोत बने हैं।
अपोलोमेडिक्स ने 2021 में लिवर ट्रांसप्लांट की शुरुआत की थी और तब से इस प्रक्रिया में लगातार सफलताएँ प्राप्त की हैं। अपोलोमेडिक्स ने उत्तर प्रदेश में पहला लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट और पहला कैडेवेरिक लिवर ट्रांसप्लांट करने की उपलब्धि हासिल कर चुका है। अपोलोमेडिक्स के सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों ने बताया कि लिवर एक ऐसा अंग है, जो ट्रांसप्लांट के बाद कुछ ही हफ्तों में अपना आकार पूरी तरह से पुनः प्राप्त कर लेता है। इससे यह भ्रम भी समाप्त होता है कि डोनर की सेहत पर इसका कोई गंभीर असर पड़ता है।

डॉ. आशीष मिश्रा (सीनियर कंसल्टेंट एवं हेड, लिवर ट्रांसप्लांट, एचपीजी एवं जीआई सर्जरी, अपोलोमेडिक्स) ने बताया, “लिवर एक ऐसा अंग है जिसे शरीर के बाहर डोनर से रिसीपिएंट तक ट्रांसप्लांट किया जा सकता है और यह बहुत जल्दी ठीक हो जाता है। ट्रांसप्लांट के बाद डोनर को कोई गंभीर समस्या नहीं होती। यह प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित और प्रभावी है। लिवर ट्रांसप्लांट के बाद मरीजों को सामान्य जीवन में लौटने में लगभग 3 महीने का समय लगता है और डोनर को केवल 1 महीने के भीतर अपनी सामान्य गतिविधियाँ फिर से शुरू करने का अवसर मिलता है।”
डॉ. आशीष मिश्रा ने लिवर ट्रांसप्लांट की स्थिति पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, “देशभर में ऑर्गन डोनेशन की स्थिति अभी भी बेहद चिंताजनक है। भारत में हर साल 25,000 से 30,000 मरीज़ों को लिवर ट्रांसप्लांट की ज़रूरत होती है, लेकिन केवल 3,000 को ही यह सुविधा मिल पाती है। इनमें भी केवल 10 प्रतिशत ट्रांसप्लांट कैडेवेरिक डोनर से संभव हो पाते हैं। यह गंभीर अंगदान की कमी को दर्शाता है, जिसे दूर करने के लिए समाज में व्यापक जागरूकता और सहभागिता की आवश्यकता है।”

उन्होंने मृतक अंगदाता (कैडेवेरिक डोनेशन) कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए सरकार और प्राइवेट अस्पतालों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “उत्तर प्रदेश, अन्य राज्यों की तुलना में अंगदान में काफी पीछे है। इस अंतर को कम करने के लिए जागरूकता बढ़ाने और अस्पतालों के बीच सहयोग को मजबूत करने की आवश्यकता है।”
कार्यक्रम में इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला गया कि भारत में अधिकांश अंगदान लिविंग डोनर्स द्वारा किया जाता है। खासकर महिलाएँ, जैसे पत्नियाँ और बेटियाँ, ट्रांसप्लांट के लिए प्रमुख डोनर बनती हैं। यह भी बताया गया कि अंगदान के लिए जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि लोग इस प्रक्रिया को लेकर अपने डर और संकोच को छोड़ सकें।
साथ ही, एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी निकलकर सामने आया कि लिवर ट्रांसप्लांट के लिए दिल्ली, मुंबई या हैदराबाद जैसे अन्य शहरों में जाने पर मरीजों को अतिरिक्त खर्चों का सामना करना पड़ता है। ट्रांसप्लांट के बाद मरीज को 1.5 से 2 महीने तक उस शहर में रहना पड़ता है, जिससे कुल खर्च बढ़ जाता है। इसके विपरीत, अपोलोमेडिक्स में यह प्रक्रिया किफायती है और यहां मरीज ऐसे अतिरिक्त खर्चों के बोझ से मुक्त रहते हैं।

डॉ. मयंक सोमानी (एमडी एंड सीईओ, अपोलोमेडिक्स) ने बताया, “हमारे अस्पताल में अब तक 25 से अधिक लिवर ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किए जा चुके हैं, जिनमें से 23 लिविंग डोनर से और 2 कैडेवेरिक डोनर से हुए हैं। यह उपलब्धि हमारी टीम की विशेषज्ञता, अत्याधुनिक मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और मरीज़ों की सेवा के प्रति हमारे समर्पण का प्रमाण है।”
डॉ. मयंक सोमानी ने कहा, “अंगदान को बढ़ावा देने के लिए हमें समाज में मानसिकता बदलने की आवश्यकता है। अंगदान से जुड़े मिथकों को दूर करना बहुत जरूरी है, ताकि अधिक से अधिक लोग इस जीवन रक्षक प्रक्रिया का हिस्सा बन सकें।”
इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता दर, डोनर्स और रिसीपिएंट्स के अनुभव और अंगदान के महत्व को बढ़ावा देना रहा। साथ ही, अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल ने ट्रांसप्लांट सरकारी में अपनी 95% सफलता दर को भी प्रमुखता से साझा किया, जो इसके लिवर ट्रांसप्लांट प्रोग्राम की प्रभावशीलता को प्रमाण है।
इस कार्यक्रम में लिवर ट्रांसप्लांट से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गई। ताकि समाज में अंगदान के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया जा सके और इस जीवन रक्षक प्रक्रिया को और अधिक बढ़ावा दिया जा सके।