लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। रिचमंड फेलोशिप सोसाइटी (इंडिया), लखनऊ शाखा ने अपना 20वां वार्षिकोत्सव का सफलता पूर्वक आयोजन इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन भवन के प्रांगण में किया। इस अवसर पर ‘‘परिजनों की दुविधा! मेरे बाद क्या?’’ विषयक एक कार्यशाला का आयोजन भी किया गया।
कार्यशाला का आयोजन एक बहुत ही महत्वपूर्ण लेकिन प्रासंगिक प्रश्न पर को लेकर किया गया था। यह एक यक्ष प्रश्न कि मेरे जाने (मृत्यु) के बाद मेरे इस प्रियजन का क्या होगा जो मानसिक असंन्तुलन का शिकार है और यही परिजनों के मुख्य तनाव का कारण भी होता। भारत में लगभग 70% व्यक्ति इसी तनाव से ग्रस्त है। (NIMHANS की एक रिपोर्ट)
इस अवसर पर आरएफएस (आई) लखनऊ के अध्यक्ष और केजीएमयू के मनोचिकित्सा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. एके अग्रवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए अपने अध्यक्षीय भाषण में इस बात पर प्रकाश डाला कि हमारी कुल आबादी का लगभग 13.7% लोग मानसिक बीमारी से पीड़ित है। इनमें से आगे चलकर लगभग 2 प्रतिशत लोगों में यह संख्या गंभीर मानसिक बीमारी के रूप में परिर्वतित हो जाती है। यहीं नही आज के परिदृश्य में, सम्पूर्ण जीवनकाल में प्रत्येक 100 में से 10 व्यक्तियों में मानसिक बीमारी होने के लक्षण पाए जाते हैं। इसी परिपेक्ष में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, अब समय आ गया है कि मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सकों, नीति निर्माताओं और सामुदायिक हित धारकों को एक साथ आना चाहिए और मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों की देखभाल करने वाले परिजनों के सामने आने वाली चुनौतियों और समस्याओं का समाधान करने के लिए कोई स्थायी एवं ठोस कदम तलाशना चाहिए।
संस्था की सचिव डॉ. शशि राय ने अपनी रिपोर्ट पेश करते समय मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर अपनी चिंता जताई। उनके अनुसार मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 के अनुसार, गंभीर मानसिक बीमारी से ग्रस्त रोगियों की देखभाल करना राज्य की जिम्मेदारी है, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। लेकिन यह सब केवल कागजों तक ही सीमित है वस्तुस्थिति तथा जमीनी हकीकत पर यह नगण्य हैं, आने वाले समय में यह एक गंभीर समस्या का रूप हमारे सामने आ सकती हैं।
कार्यशाला के मुख्य वक्ता मनोचिकित्सक एवं केजीएमयू के पूर्व विभागाध्यक्ष रहे डा. प्रभात सिठोले ने बताया कि प्रत्येक नागरिक को चाहे वह कहीं भी हो और कोई भी हो, को एक सुलभ, अच्छी गुणवत्ता वाली मानसिक स्वास्थ्य संम्बधी जोखिमों से सुरक्षा एवं देखभाल का अधिकार उच्चतम मानकों के आधार पर होना चाहिए।
पूर्व विधायक और हरभज राम कृपा देवी अस्पताल के चेयरमैन विद्या सागर गुप्ता ने आग्रह पूर्वक कहा कि इस समाज में कोई भी व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से अछूता नहीं है, इसलिए सरकार और निजी हितधारकों को मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास को एक आवश्यक सेवा के रूप में प्राथमिकता देनी चाहिए। खासकर उत्तर प्रदेश जैसे कम सेवा वाले क्षेत्रों में।
मनोरोगी कल्याण संस्थान के अध्यक्ष रमेश अग्रवाल ने भी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि यूपी के लगभग 40% जिलों में उचित मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं। उन्होंने मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए समानता के अधिकार के रूप में नौकरियों में आरक्षण की भी मांग की। इस अवसर पर एक स्मारिका का विमोचन भी किया गया। सोसायटी की गर्वनिंग काउसिल के मेम्बर एवं कोषाध्यक्ष आलोक सक्सेना ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए संस्था की प्रतिबद्धता को स्पष्ट करते हुए कहा कि आर.एफ.एस (भारत) एवं उसकी लखनऊ शाखा लोगों में मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता बढ़ाकर इस कलंक मिटाने के अपने मिशन के प्रति हमेशा सजग रहेगी।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. नीता सक्सेना ने बहुत ही अच्छे एवं सुचारू ढंग से निर्वहन किया। इस जागरूकता कार्यक्रम में आलोक सक्सेना, रमेश अग्रवाल, एलके माहेश्वरी, डा. मधुरिमा प्रधान, एके पाण्डे, शीबा, सोमेश्वर द्विवेदी, श्वेता, एलएचपीएस गुप्ता पार्थो गांगुली अमरेश आर्यन एवं अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।