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पेप्सिको इंडिया की कृषि पहल : कृषक समुदायों को सशक्त बनाने पर जोर

इगलास/अलीगढ़ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। पेप्सिको इंडिया की कृषि पहल खेती-किसानी के रिजनरेटिव (पुनरुत्‍पादक) तरीकों को मजबूत करने, आपूर्ति श्रृंखला में कृषक समुदायों को सशक्त बनाने पर जोर देती है।

पेप्सिको भारत में सहयोगपूर्ण आलू की खेती का अगुवा रहा है और आज की तिथि में यह 14 राज्यों में 27,000 किसानों के साथ प्रत्यक्ष ओर अप्रत्यक्ष रूप से काम करता है। पर्यावरण की दृष्टि से स्‍थायी खेती को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय किसानों के साथ इसके काफी घनिष्‍ठ संबंध हैं।
अपने सहयोगपूर्ण कृषि कार्यक्रम के तहत, पेप्सिको इंडिया किसानों को आलू की खेती के लिए 360º सहायता प्रदान करता है, जिसमें उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उपज की सुनिश्चित वापस-खरीद, बैंक ऋण और कृषि-सूचना वाली कंपनियों के सहयोग से प्रौद्योगिकी की सर्वोत्तम पद्धतियाँ उपलब्‍ध कराना शामिल हैं।

पेप+ कारोबार और हमारे चारों ओर की दुनिया के प्रति हमारे दृष्टिकोण को दर्शाता है। एंड-टू-एंड स्‍ट्रेटजिक ट्रांसफॉर्मेशन और सस्‍टेनेबिलिटी को आगे बढ़ाने पर फोकस करते हुए, हमारा लक्ष्य कृषि के बेहतर तरीकों को बढ़ावा देना, वैल्‍यु चेन में प्रक्रियाओं को बेहतर करना और अपने उपभोक्ताओं को बड़ी संख्‍या में बेहतरीन विकल्प उपलब्‍ध कराना है।
कृषि वैश्विक चुनौतियों और समाधानों दोनों के लिए अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है तथा सकारात्मक कृषि में खेती-किसानी के रिजनरेटिव (पुनरुत्‍पादक) तरीकों को बढ़ावा देने, फसल सिंचाई में जल का किफायती तरीके से उपयोग करने तथा आपूर्तिकर्ताओं से महत्‍वपूर्ण सामग्री को स्थायी ढंग से प्राप्त करने के हमारे प्रयास शामिल हैं। किसान हमारे कारोबार को ताकत देते हैं – हमारे चिप्स बनाने में उपयोग किए जाने वाले आलू की 100% मात्रा भारतीय किसानों से प्राप्त की जा रही है।


रिजनरेटिव (पुनरुत्‍पादक) कृषि मिट्टी को उपजाऊ बनाने, कार्बन ग्रहण करने, जलग्रहण क्षेत्र में सुधार, जैव विविधता की रक्षा एवं संवर्धन तथा किसानों और कृषि समुदायों के जीवन स्तर को बढ़ाने पर केंद्रित है। क्षेत्रीय परिस्थितियों के आधार पर, रिजनरेटिव तकनीकें किसानों को पानी, उर्वरक
और कीटनाशकों के इष्‍टतम उपयोग से उतनी ही भूमि पर अधिक अनाज पैदा करने में मदद कर सकती हैं।

मिट्टी की जांच अक्‍सर व्‍यापक स्‍तर पर नहीं होती है। मिट्टी की जांच के दौरान किसानों के सामने आने वाली कुछ सबसे बड़ी बाधाओं में गलत रिपोर्ट और रिजल्‍ट मिलने में देरी शामिल है। मौसमी खेती की पद्धतियां भी मिट्टी की जांच के अवसरों को कम करती हैं। इन समस्‍याओं का समाधान करने के लिए हाथरस जिले की महिलाओं को मिट्टी स्वास्थ्य जांच के लिए पोर्टेबल इनसॉइल मशीन चलाने का प्रशिक्षण देकर उन्‍हें समर्थ बनाया है और कृषि-उद्यमी बननने के लिए सशक्‍त किया है। यह मशीन पोटेशियम, मैग्नीशियम, बोरॉन, पीएच और अन्य सहित 12 प्रमुख मापदंडों के आधार पर मिट्टी की जांच करती है, और केवल 30 मिनट के भीतर एक व्यापक रिपोर्ट प्रदान करती है।

रिपोर्ट आदर्श मिट्टी के स्तर से किसी भी कमी को बताती है, जिससे किसानों को उनकी मिट्टी के स्वास्थ्य के बारे में समय पर और सटीक जानकारी मिल पाती है। अपनी मिट्टी के स्वास्थ्य के बारे में समय पर जानकारी मिलने से, किसान सही निर्णय ले पाते हैं, जिससे बेहतर योजना बनाने और अधिक उपज पैदा करने में मदद मिलती है। इस ‘मिट्टी दीदी’ मशीन को चलाने वाली महिलाओं को अब उनके लोगों के बीच कृषि-उद्यमी माना जाता है और आस-पास के किसानों को मिट्टी स्वास्थ्य जांच रिपोर्ट समय पर मिल पाती है।


पेप्सिको इंडिया ने किसानों को बेहतर फ़सल प्रबंधन, उपज पूर्वानुमान और बीमारी की चेतावनी के लिए समय पर सटीक जानकारी प्रदान करने के उद्देश्‍य से अपनी पुरस्कार विजेता पहल लेज़ स्मार्ट फ़ार्म के लिए क्रॉपिन के साथ साझेदारी की है। ये जानकारी एक यूजर फ्रेंडली स्मार्टफ़ोन ऐप पर उपलब्‍ध कराई जाती है। लेज़ स्मार्ट फ़ार्म एक AI संचालित पूर्वानुमानित इंटेलिजेंस मॉडल पर आधारित है जो सैटेलाइट इमेजरी को हिस्‍टोरीकल डेटा से मिलाता है। अभी तक, लेज़ स्मार्ट फ़ार्म ने किसानों को कई लाभ प्रदान किए हैं, जिसमें 45 दिन पहले तक सटीक उपज पूर्वानुमान, बीमारी की घटना से 10-14 दिन पहले बीमारी की चेतावनी और किसानों के लिए बढ़ी हुई उपज और कम इनपुट लागत शामिल है। अब तक, 20000 भूखंडों में सैटेलाइट इमेजरी के माध्यम से 15000+ एकड़ का मानचित्रण किया गया है, जिससे 7000+ किसान सक्षम हुए हैं।


पेप्सिको इंडिया की सकारात्मक कृषि योजना खेती-किसानी के रिजनरेटिव (पुतरुत्‍पादक) तरीकों को मजबूत करने और आपूर्ति श्रृंखला में कृषक समुदायों को सशक्त बनाने पर जोर देती है1 इसने पर्यावरण की दृष्टि से स्‍थायी खेती को प्रोत्साहित करने के लिए स्थानीय किसानों के साथ घनिष्‍ठ संबंध बनाए हैं।