लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। साहित्य और संस्कृति की नगरी लखनऊ, जहाँ हर गली में कला और साहित्य की महक बसी है। हाल ही में एक ऐसे आयोजन का गवाह बनी, जिसने भारतीय कला, साहित्य और संस्कृति के प्रति लोगों के प्रेम को एक नई ऊँचाई दी।
इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित दो दिवसीय साहित्योत्सव जश्न-ए-अदब कल्चरल कारवां विरासत अद्भुत गतिविधियों से गुलज़ार हुआ। जिसमें शास्त्रीय गायन, गज़ल गायन, पैनल चर्चा, नाटक, मुशायरा और कवि सम्मेलन, वाद्ययंत्र, शास्त्रीय नृत्य और लोक गायन आदि शामिल रहें। कार्यक्रम में प्रवेश पूरी तरह से नि:शुल्क रखा गया, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति और साहित्य को प्रोत्साहित करना और युवा पीढ़ी को इसके महत्व से अवगत कराना है।
साहित्योत्सव जश्न-ए-अदब कल्चरल कारवां विरासत के संस्थापक कुँवर रंजीत चौहान ने इस कार्यक्रम के महत्व पर अपनी बात रखते हुए कहा, “हमारा उद्देश्य केवल साहित्य और संस्कृति के प्रति सम्मान बढ़ाना नहीं है, बल्कि उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना भी है। इस आयोजन के माध्यम से हम भारतीय साहित्य, कला और सांस्कृतिक धरोहर को एक नए रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं, ताकि ये अनमोल धरोहरें हमारे समाज के हर वर्ग तक पहुँचें और उन्हें इनकी महत्ता का अहसास हो।”
यह अद्वितीय साहित्योत्सव साहित्य प्रेमियों और कलाकारों को एक ही मंच पर एकत्रित करने का गवाह बना, उन्हें भारतीय संस्कृति और साहित्य की धारा से जोड़ने का शानदार अवसर प्रदान किया। इस कार्यक्रम ने न केवल लखनऊ बल्कि समूचे उत्तर भारत के साहित्य प्रेमियों को एक मंच पर लाकर भारतीय संस्कृति और साहित्य को प्रोत्साहित करने का अद्भुत अवसर प्रदान किया।
कुँवर रंजीत चौहान ने कहा, “यह आयोजन साहित्यिक जगत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जो कि हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। साहित्य और कला की शक्ति से समाज में बदलाव लाना ही हमारा मुख्य उद्देश्य है। हम चाहते हैं कि इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से हम देशवासियों को एकजुट करें और भारतीय संस्कृति के प्रति उनका प्रेम और श्रद्धा बढ़ाएँ। इस प्रकार के कार्यक्रमों से न सिर्फ साहित्यकारों और कलाकारों को मंच मिलता है, बल्कि युवाओं को भी अपने देश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ने का एक शानदार अवसर प्राप्त होता है। ऐसे आयोजनों से समाज में एक नया जागरूकता और संवेदनशीलता उत्पन्न होती है, जो देश को एक सकारात्मक दिशा में ले जाती है।”
पहले दिन की प्रस्तुतियों में ‘कथा रंग’, ‘दास्तानगोई- ‘दास्तान-ए-राम’, ‘थिएटर, सिनेमा और संगीत’, और ‘कोर्ट मार्शल’ नाटक प्रमुख रहे, जिन्हें देश के विभिन्न कलाकारों ने अपनी अद्भुत कला से सजाया। इन प्रस्तुतियों ने न सिर्फ दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि भारतीय कला और संस्कृति के प्रति उनकी आस्था को और मजबूत किया।
दूसरे दिन की प्रस्तुतियाँ भी उतनी ही आकर्षक और प्रभावशाली रहीं। ‘बैतबाजी’ ने श्रोताओं को गीतों और कविताओं की रसधारा में डुबो दिया, जहाँ राजीव सिंह और उनके समूह ने सूफी गायन से माहौल को रोमांचित कर दिया। ‘शेरी नशिस्त’ ने साहित्यिक संवाद का एक अनोखा अनुभव प्रदान किया, जिसमें पद्मश्री प्रो. अशोक चक्रधर, फरहत एहसास, मदन मोहन दानिश, कुँवर रंजीत चौहान, आलोक अविरल, जावेद मुशिरी, इमरान राही, नितिन कबीर और निज़ामत खुबाईब अहमद ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं का दिल जीता।
इसके अलावा, ‘सुर-संध्या-गज़ल और लोक गायन’ कार्यक्रम में पद्मश्री मलिनी अवस्थी और पं. धर्मनाथ मिश्रा ने अपनी गायकी और हारमोनियम के साथ श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। ‘सुर-साधना’ में पद्मभूषण पं. साजन मिश्रा और स्वरांश मिश्रा की ताजगी भरी प्रस्तुतियों ने कला के प्रति श्रोताओं का प्रेम और भी गहरा कर दिया, जिसमें हारमोनियम की प्रस्तुति पंडित धर्मनाथ मिश्र और तबला प्रस्तुति पंडित शुभ महाराज ने दी।
समापन समारोह में, कर्नल डॉ. अशोक कुमार ने अपने सैक्सोफोन से संगीत की एक नई धारा छोड़ी, जबकि पद्मविभूषण पं. हरि प्रसाद चौरसिया ने अपनी बाँसुरी के जादू से समापन किया। इस दौरान, पंडित शुभ महाराज ने इस कार्यक्रम ने आकर्षक तबला प्रस्तुति दी। संगीत, कविता और शास्त्रीय कला के हर पहलू को उजागर किया, जिससे पूरे आयोजन में एक अमिट छाप छोड़ी।