आदरणीय महात्माजी, व बाबा विनोबा के प्रकृति चिंतन, के संबंध में लिखा हुआ काम ही है परंतु संतों का क्रियात्मक निसर्ग संरक्षण अद्भुत है जो कि यहां वर्धा जिले की गांधीजी व बाबा विनोबा की विचारवादी संस्था परिसर में आज भी नजर आता है। मगनवाड़ी हो या एमगिरी हो सेवाग्राम मंडल पवनार आश्रम गांधी हो या दत्तपुर महारोगी सेवा समिति हो। आज से करीब 70-75 वर्ष पुराने अलबर्जिआ लेबेक (सीरस चिचवा) के पेड़ कुछ प्रमाण में आज भी खड़े हैं। वही कुछ पेड़ संतों की प्रकृति प्रेम और प्रकृति में निरंतर तन्मयता को विषाद करते हैं। सीरस (Albezia lebek farm mimosie) यह पेड़ भारतीय मूल का वृक्ष है और अगर वैदिक कालीन संस्कृत नामों से इस पेड़ को देखा जाए तो क्रियात्मक पहलुओं को देखते हुए ही इसके नाम रखे गए होंगे। इस पेड़ के संस्कृत नाम कपिताना, विषनाशना, सुकप्रिया है ऋषि मुनि के आश्रम गुरुकुल वैदिक काल में इसी पेड़ से अच्छादित रहते थे क्योंकि किसी भी प्रकार के हवाओं के प्रसार को यह झेल जाता था।
वानरों का रात्रि आसरा यही पेड़ होते थे। सुकप्रिय नाम से यह तोते के झुंडो का आसरा था। इसकी कोटरो में वह अंडे देते व उनकी वंशवृद्धि होती। विषनाराना के नाम से यह गुरुकुलो में सापों को दूर रखने में कारगर था। इसकी गंध हवाओं के साथ मिलकर परिसर में फैलती जिससे सर्प व बिच्छू का आना बाधित होता। सेवाग्राम आश्रम व मगनवाड़ी यहां महात्मा गांधी जी के समय यह वृक्ष लगाए गए होंगे। मेरे देखे हुए यह वृक्ष सेवाग्राम आश्रम में बापू कुटी के पीछे के भाग में 15 वर्ष पहले तक 10 की संख्या में थे। हालांकि वह जीर्ण हो गए थे परंतु तोतें और दूसरे पक्षियों के घर थे व वानरों का रात्रि निवास भी। एक उसी समय का विशाल सिरस पेड़ कार्यालय के पास दो वृक्ष शाला परिसर में अभी भी है जो कि बापू के समय के हैं।
कहा यह जाता है कि पहले मगनवाड़ी और फिर सेवाग्राम में रहने बापू आए तो दोनों जगह सापों की तादाद बहुत थी। बापू ने ही वह पेड़ आश्रम व मगनवाड़ी में लगाये होंगे, जिससे सीरस पेड़ के सापों को दूर रखने वाली गंध सापों को इन जगहों पर आने से दूर रखें वह आश्रम वासी चैन से रह सके। यह बापू की अपूर्व दूरदर्शिता थी। शुरुआत में बापू ग्रामीण व आश्रम की सहायता से लोहे से बने ग्रामीण कारागिरी से बने चिमटे से सर्प पकडकर दूर जंगलों में छुड़वा देते थे। बापू कुटी में आज भी रखा हुआ सांप पकड़ने का चिमटा इसका जीता जागता प्रमाण है।
लगभग 2 वर्ष बापू मगनवाड़ी में रहे वहां भी सिरस के पेड़ बहुतायत में थे। यह सर्प दूर रखने की कोशिश बापू द्वारा अमल में लाई गई थी। सिरस वृक्षों का उम्र के कारण जर्जर होना और गिर जाना मगनवाड़ी में इन 10 वर्षों में बहुत हुआ। नए सिरस वृक्षों को लगाना इसका ख्याल किसी को भी नहीं आया। बापू ने कोई भारी भरकम नाम ना देते हुए एक प्रकृति संरक्षण व इको सिस्टम को मजबूत करने का काम सिरस वृक्षों को लगवा कर संरक्षण कर दिया था। जिसे आज के विशेषज्ञ अर्बन बायोडायवर्सिटी कहते हैं। मैंने स्वयं देखकर यह समझा है कि मिट्ठू के झुंड हजारों की तादाद में आखिर एमगिरी परिसर में ही क्यों निवास करते हैं? बापू के सिरस वृक्षों की महिमा मेरे ज्ञात में धीरे-धीरे आयी।
एमगिरी परिसर के पेड़ पुराने होने के कारण उनमें कोटर, गढ्ढों, छेदों का निर्माण बहुत ज्यादा प्रमाण में हुआ था। मिट्ठू अंडे देते हुए नवजात पक्षियों को बड़ा करने के लिए कोटरो को उपयोग में लाते थे। इसलिए लगभग 4 वर्ष पहले तक शाम के समय जब मिट्ठू विभिन्न दिशाओं से चर कर हजारों की तादाद में वापस परिसर में लौटते तो उनके कलरव के कारण वहां व्यक्तियों को जोर लगाकर बातचीत करना पड़ता, क्योंकि मिट्ठुओं के शोर के कारण सुनाई आना बंद हो जाता। पिछले चार-पांच वर्ष में लगभग सिरस के सभी पेड़ गिर गए। साथ ही मिठुओं की संख्या भी हजारों से सैकड़ो पर आ गई। बापू के जमाने से चली आयी प्राकृतिक अवलंबिता खत्म हो गई और एमगिरी का परिवेश सुना सुना हो गया। मालूम नहीं बापूजी कैसे जैविक इकोसिस्टम को 80 वर्ष पहले समझ गए थे।
वैज्ञानिक युग उसे आज क्यों कोई समझने में देरी लगाता है। अनुयायी क्यों नहीं बापू के वृक्ष लगाने के कार्य को एक बृहतम निर्देशिता से नहीं जोड पाया। नए सिरस पेड़ लगाने से तो किसी ने रोका नहीं था। यही हाल सेवाग्राम आश्रम का है। अगर बापू के सभी संदेश हम ग्रहण करते हैं तो यह छोटा सा सीरस के पेड़ लगाने का कार्य हम कर लेते तो कितना अच्छा होता। संत विनोबा के आश्रम परिसर के सिरस पेड़ महारोगी सेवा समिति दत्तपुर के सिरस पेड़, गोपुरी के सिरस के पेड़, जर्जर होकर उम्र हो जाने पर खत्म हो गए। हो सकता है अब इन पेड़ों की जरूरत लगभग खत्म हो गई हो या जानकारी का अभाव हो परंतु जो संस्थाएं (चौथे दशक में) वर्धा शहर में स्थापित हुई वहां संत और महात्मा जी के आदर्शवाद का भास कराते परिसरों में एक दो सिरस पेड़ अभी भी खड़े हैं। वह ही उस कालखंड की याद दिलाते रहते हैं।
आधुनिक उपयोग
सागवान लकड़ी से ज्यादा भार सहने की क्षमता सीरस की लकड़ी में है। इस पेड़ की पत्तियों के अल्कलॉइड जैविक कीटक नाशक के तौर पर उपयोग में आते हैं। हर प्रकार के पक्षी इस पेड़ पर बसेरा बनाते हैं। इससे वातावरण सुखद होता है। प्रदूषण मुक्त परिसर रखने की अद्भुत क्षमता। परंतु सबसे महत्वपूर्ण प्रयोग हर प्रकार के ट्यूमर, कैंसर में इसके द्वारा आयुर्वेदिक उपयोग जो की धीरे-धीरे वैज्ञानिक कसोटियों पर खरा उतर रहा है।
- कौशल मिश्र
शब्दांकन : बुद्धदास मिरगे
जनसंपर्क अधिकारी
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
9960562305