लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआईएमएस), लखनऊ के आंकड़ों से पता चलता है कि एडवांस्ड रोबोटिक-असिस्टेड सर्जरी (आरएएस) तकनीक की स्थापना के बाद किडनी ट्यूमर के रोगियों के परिणाम में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। यह रोबोटिक-असिस्टेड सर्जरी से संबंधित तकनीक की क्षमता के कारण हो पाया है, जिसमें किडनी के नॉर्मल टिश्यूज को संरक्षित करना संभव होता है। इसके परिणामस्वरूप पारंपरिक शल्य चिकित्सा पद्धतियों की तुलना में किडनी के कार्य को बेहतर ढंग से संरक्षित किया जाता है।
डेटा यह भी दर्शाता है कि सर्जन 2019 में एसजीपीजीआईएमएस में दा विंची रोबोट-सहायता प्राप्त सर्जरी प्रणाली की स्थापना के बाद पूरे गुर्दे को हटाने के बजाय अधिक आंशिक नेफ्रेक्टोमी (केवल ट्यूमर से प्रभावित क्षेत्र को हटाने के लिए सर्जरी) करने में सक्षम हैं। रोबोट-सहायता प्राप्त सर्जरी तकनीक के उपयोग से पहले, अस्पताल ने 2015 और 2019 के बीच प्रति वर्ष औसतन 6 आंशिक नेफ्रेक्टोमी सर्जरी की। आंशिक नेफ्रेक्टोमी मामलों की संख्या काफी कम थी। वर्ष 2015 में ऐसे सिर्फ 4 मामले थे। हालांकि, 2019 में रोबोटिक तकनीक की स्थापना के बाद से, आंशिक नेफ्रेक्टोमी के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ऐसे मामले 2019 में 12 थे जो बढ़कर 2024 में 25 हो गए हैं। बढ़ी हुई यह संख्या बेहतर उपचार और सर्जिकल आसानी दोनों को दर्शाती है।
पिछले पांच वर्षों में, अस्पताल ने हर साल औसतन 20 आंशिक नेफ्रेक्टोमी सर्जरी की है। यह प्रवृत्ति यूरोलॉजिकल देखभाल को आगे बढ़ाने में रोबोटिक्स की बढ़ती भूमिका को उजागर करती है। जिससे एसजीपीजीआईएमएस जैसे अस्पताल समाज के सभी वर्गों के अधिक रोगियों की मदद कर सकते हैं।
संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के प्रोफेसर और रोबोटिक यूरोलॉजी सर्जन डॉ. एमएस अंसारी ने कहा, ‘‘रोबोटिक-असिस्टेड सर्जरी जैसी सर्जिकल तकनीक में प्रगति ने कई यूरोलॉजिकल बीमारियों के सर्जिकल उपचार में क्रांति ला दी है। इसमें वयस्क और बाल रोगियों दोनों में कैंसरयुक्त और गैर-कैंसरयुक्त दोनों तरह के किडनी और मूत्राशय के ट्यूमर का सर्जिकल उपचार किया जा सकता है। यह तकनीक हमें सामान्य ऊतकों को खतरे में डाले बिना किडनी के केवल प्रभावित हिस्से को हटाने में मदद करती है, जिससे हम किडनी के कार्य को बनाए रख सकते हैं और रोगियों को बेहतर जीवन स्तर प्रदान कर सकते हैं।’’
रोबोटिक-असिस्टेड सर्जरी के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘रोबोटिक-असिस्टेड सर्जरी एक न्यूनतम इनवेसिव एप्रोच है, इस एप्रोच के जरिये रोगी विभिन्न प्रक्रियाओं में पारंपरिक ओपन सर्जरी की तुलना में बहुत तेज़ी से अपने रोजमर्रा के जीवन में लौटने में सक्षम हो जाते हैं। दा विंची सर्जिकल प्लेटफ़ॉर्म का लाभ उठाते हुए, सर्जन 3डी हाई-डेफ़िनेशनविजन सिस्टम और छोटे कलाई वाले उपकरणों द्वारा निर्देशित छोटे चीरों के माध्यम से ऑपरेशन करने में सक्षम हैं। जो मानव हाथ की तुलना में बेहतर लचीलापन और गति प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। नतीजतन, सर्जनों को बेहतर दृश्य, सटीकता और नियंत्रण का लाभ मिलता है। इसके अतिरिक्त दर्द में कमी, ऑपरेशन के बाद घाव में संक्रमण की आशंका कम और न्यूनतम निशान जैसे फायदे भी शामिल हैं।’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘रोबोट-सहायता प्राप्त सर्जरी के एकीकरण से पहले, ट्यूमर और शरीर रचना की जटिलता के कारण लगभग 25 प्रतिशत आंशिक नेफ्रेक्टोमी मामलों को पूर्ण किडनी हटाने (रेडिकल नेफ्रेक्टोमी) में बदलना पड़ता था। रोबोटिक तकनीक को अपनाने के बाद, यह दर घटकर केवल 7 प्रतिशत रह गई, जिससे सर्जिकल संबंधी स्पष्टता में सुधार हुआ है। इसके अतिरिक्त, वार्म इस्केमिया टाइम (सर्जरी के दौरान अंग में बाधित रक्त प्रवाह की अवधि) में लगभग 3.5 मिनट की महत्वपूर्ण कमी आई है, जो किडनी के कार्य को सुरक्षित बनाए रखने के लिहाज से महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, सर्जरी के बाद अस्पताल में भर्ती होने की अवधि भी 5 दिनों से घटकर लगभग 2-3 दिन हो गई है।’’
2019 में रोबोटिक तकनीक की स्थापना के बाद से, संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ने 500 से अधिक रोबोटिक यूरोलॉजी प्रक्रियाएं पूरी की हैं। संस्थान उद्योग-अकादमिक सहयोग के माध्यम से चिकित्सा से जुड़े इनोवेटिव सॉल्यूशंस उपलब्ध कराने में सबसे आगे रहा है। साथ ही संस्थान ने अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ व्यापक रोगी देखभाल पर ध्यान केंद्रित किया है और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों को सपोर्ट किया है। विभिन्न पहलों और एक सहयोगी दृष्टिकोण के माध्यम से संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज अधिक से अधिक लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने और चिकित्सा विज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।