प्रत्येक भारतवासी के व्यक्तिगत संकल्पों में जब तक देश भी नहीं जुड़ेगा, तब तक सपनों के भारत का निर्माण नहीं होगा : डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा
वर्धा (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। राष्ट्रकवि स्मृति समिति, वर्धा द्वारा राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त की 138वीं जयंती समारोह मनाई गई। बतौर मुख्य अतिथि एवं वक्ता मौजूद दत्ता मेघे उच्च शिक्षा एवं संशोधन संस्था (अभिमत विश्वविद्यालय), वर्धा के प्रो-चांसलर एवं मुख्य सलाहकार डॉ. वेद प्रकाश मिश्रा ने गुप्त जी के प्रबंध काव्य भारत- भारती की सुप्रसिद्ध पंक्ति ‘हम कौन थे, क्या हो गए, और क्या होंगे अभी’ आधारित विषय पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी रचनाओं में अतीत के स्वर्णकाल का गौरवगान करते हुए और परतंत्र भारत की तत्कालीन दुर्दशा को देखते हुए भविष्य के लिए चिंता व्यक्त की।
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के पं. रामेश्वर दयाल दुबे सभागार में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रधान मंत्री डॉ. हेमचन्द्र वैद्य ने की। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, विदर्भ साहित्य संघ, नागपुर के अध्यक्ष प्रदीप दाते, राष्ट्रकवि स्मृति समिति के संयोजक डॉ. ओम प्रकाश गुप्ता एवं दत्ता मेघे विश्वविद्यालय के समन्वयक डॉ. एसएस पटेल भी मंचासीन थे।
जयंती समारोह का प्रारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं राष्ट्र कवि गुप्त जी के फोटो पर माल्यार्पण द्वारा किया गया। कार्यक्रम का बीज वक्तव्य महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के पूर्व अधिष्ठाता डॉ. ओम प्रकाश गुप्ता ने दिया। उन्होंने वर्धा में पिछले 27 वर्षों से जारी गुप्त जयंती आयोजनों की जानकारी तथा इस वर्ष के कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।
मुख्य अतिथि डाँ. मिश्रा ने गुप्त जी की रचनाओं भारत भारती, साकेत, यशोधरा आदि पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने साधारण शब्दों का प्रयोग करते हुए भी असाधारण भाव पैदा किये हैं एवं भूत, वर्तमान और भविष्य की समस्याओं का सरल और मौलिक विवेचन किया है। राष्ट्रकवि गुप्त की रचनाओं का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि हम कथनी और करनी में भेद वाली विरोधाभासी संस्कृति की ओर जा रहे हैं और इसका समाधान यही है कि जब तक प्रत्येक भारतवासी के व्यक्तिगत संकल्पों में देश नहीं जुड़ेगा, तब तक सपनों के भारत का निर्माण नहीं होगा।
प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि गुप्त जी जन-जन के कवि थे। उनकी रचनाओं में वर्तमान की दुर्व्यवस्था प्रकट होती है और उनमें देश, युग व मानवता की चिंताएं होती हैं। परंपराओं को आत्मसात करके भी उन्होंने क्लिष्ट नहीं, बल्कि चलती-फिरती लयात्मक हिंदी का प्रयोग किया जिससे उनकी कवितायें ग्रामीण देशवासियों तक की जुबान पर भी चढ़ गयीं. विशुद्ध हिंदी के प्रति समर्पित होते हुए भी उन्होंने सभी भारतीय भाषाओं के साथ आत्मीय संबंध स्थापित कर लिया था।
इस अवसर पर मंचासीन अतिथियों ने मराठी के प्रतिष्ठित एवं अनेक पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकार आनंद जातेगांवकर द्वारा महाभारत की पृष्ठभूमि पर आधारित पुस्तक ‘व्यासांचा वारसा’ के हिंदी अनुवाद ‘व्यास की विरासत’ का विमोचन भी किया। इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद डॉ. ओम प्रकाश गुप्ता ने किया है। पुस्तक का परिचय देते हुए प्रदीप दाते ने कहा कि मराठी भाषा की पुस्तकों का हिंदी में अधिक से अधिक अनुवाद होना चाहिए क्योंकि अनुवाद विभिन्न भाषाओं के बीच एक सेतु का काम करता है। पुस्तक का यह हिंदी अनुवाद हिन्दी और मराठी भाषा प्रेमी अवश्य ही पसंद करेंगे। इस अवसर पर आनंद जातेगांवकर की पुत्रवधु डॉ. स्मिता एवं पौत्री भी उपस्थित रहीं। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. हेमचंद्र वैद्य ने राष्ट्रकवि गुप्त जी की कालजयी रचनाओं का संदर्भ देते हुए वर्तमान में उनकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।
जयंती समारोह के अन्तर्गत महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान की विद्यार्थी साहित्य परिषद द्वारा आयोजित राष्ट्रकवि स्मृति अंतर-महाविद्यालयीन बहुभाषीय काव्य स्पर्धा के पुरस्कृत छात्रों ने काव्य पाठ किया एवं मंचासीन अतिथियों ने उन्हें पुरस्कार प्रदान किये। प्रथम पुरस्कार सोना सुनारिया, द्वितीय पुरस्कार रिया पाटील तथा तृतीय पुरस्कार हरविंदर सिंह बावरी को दिया गया। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. मनीषा भालावी ने किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनुपमा गुप्ता ने किया तथा बुद्धदास मिरगे ने आभार व्यक्त किया। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। डॉ. अनिल दुबे, डॉ. अमित विश्वास एवं डॉ. अनवर सिद्दीकी ने वक्ताओं का परिचय दिया। कार्यक्रम में गीता गुप्ता, डॉ. दिलीप गुप्ता, हिंदी विवि के कादर नवाज़ ख़ान, आनंद भारती, डॉ. परिमल प्रियदर्शी, निसर्ग सेवा समिति के अध्यक्ष मुरलीधर बेलखोडे, विजय व्यास, डॉ. संतोष गुप्ता अनिल गुप्ता, चूड़ीवाले, डॉ. आशा झा, डॉ. शील चंद्र जैन एवं डॉ. सुधा जैन, अशोक नौगरैया सहित बड़ी संख्या में हिंदी प्रेमी उपस्थित रहे।