• सर्वश्रेष्ठ तीन हरेला टोकरियों को किया जाएगा सम्मानित
• 17 जुलाई को घरों में मनाया जाएगा पर्व
लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। पर्वतीय महापरिषद लखनऊ के तत्वावधान में 08 जुलाई से 17 जुलाई तक ‘‘हरेला पखवाड़ा’’ मनाया जा रहा है। हरेला उत्तराखण्ड का प्रकृति व पर्यावरण से जुड़ा हुआ महत्वपूर्ण त्यौहार है।
पर्वतीय महापरिषद के अध्यक्ष गणेश चन्द्र जोशी ने बताया कि मकर संक्रान्ति पर सूर्य देव जहां उत्तरायण होते हैं वहीं कर्क संक्रान्ति पर सूर्य दक्षिणायन हो जाते हैं। इसके कारण दिन की अपेक्षा रातें बड़ी होने लगती हैं। पर्वतीय महापरिषद इस बार एक विशेष अंदाज में हरेला पर्व को मना रहा है। इस बार 100 से अधिक महिलाएं पारंपरिक उत्तराखंडी परिधानों में विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देंगी। श्रेष्ठ हरेला टोकरी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेंट किया जाएगा। इस अवसर पर श्रेष्ठ हरेला को शिव-पार्वती सम्मान तथा श्रेष्ठ परिधान सम्मान से अलंकृत किया जाएगा।
महासचिव महेन्द्र सिंह रावत ने बताया कि सावन माह के प्रथम दिवस शिव-पार्वती विवाह के रूप में प्रकृति, पर्यावरण एवं धार्मिक आस्था का यह पर्व पर्वतीय समाज के अधिकांश लोगों के घर पर मनाया जाता है। इसे पर्यावरण के संतुलन एवं परिवार में सुख समृद्धि के लिये मनाया जाता है। हरेला पर्व का सम्बन्ध भगवान सूर्य की उपासना से भी जुड़ा है क्योंकि इस दिन कर्क संक्रान्ति पर सूर्य दक्षिणायन हो जाते हैं। हरेले को आषाढ़ मास के अन्त में 9 दिन पूर्व में बोया जाता है तथा सावन के प्रथम दिवस काटा जाता है।
हरेले की टोकरियाँ शिव-पार्वती का रूप मानी जाती है। घर-घर में जो हरेला पर्व मनाते हैं वे 17 जुलाई को इस पर्व को मनाएंगे तथा दो अलग-अलग टोकरियों में हरेला उगा रहे हैं।एक टोकरी को 17 जुलाई को दोपहर 2 बजे पर्वतीय महापरिषद भवन में लेकर आयेंगे जहां पर सभी हरेले की टोकरियों में से श्रेष्ठ तीन टोकरियों का चयन होगा और उन्हें शिव-पार्वती सम्मान से सम्मानित किया जायेगा। सर्वश्रेष्ठ हरेला टोकरी मुख्यमंत्री को महिला प्रकोष्ठ द्वारा भेंट किया जाएगा। इस प्रतियोगिता के माध्यम से महापरिषद का उदेश्य जन-जन को, विशेष रूप से युवा पीढ़ी को इस पर्व से जोड़ना है।
हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है। इसमें मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है। नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह पानी छिड़कते रहते हैं, दसवें दिन इसे काटा जाता है। 4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है। घर के सदस्य इन्हें बहुत आदर के साथ अपने शीश पर रखते हैं। घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है! इसके मूल में यह मान्यता निहित है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढ़िया होगी। साथ ही प्रभु से फसल अच्छी होने की कामना भी की जाती है। इस दिन घर में हलुवा, पूड़ी, खीर आदि पकवान भी बनाए व बांटे जाते हैं।
इस अवसर पर लोक पर्व ‘‘हरेला गीत’’ से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया जायेगा। तत्पश्चात् हरेला टोकरियों का प्रदर्शन एवं निर्णायकों द्वारा हरेला टोकरियों का निरीक्षण एवं रिजल्ट तैयार किया जाएगा। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अन्तर्गत गोमती नगर भरवारा से समूह नृत्य, एकल हरेला गीत, एलडीए कानपुर रोड शाखा के बच्चों द्वारा लोक नृत्य, कल्याणपुर के बच्चों द्वारा शिव पार्वती समूह नृत्य, समूह नृत्य गोमती नगर शाखा द्वारा, झोड़ा नृत्य, उत्तराखण्डी परिधान प्रतियोगिता जिसमें कुमाऊँनी परिधान प्रतियोगिता, गढ़वाली परिधान प्रतियोगिता, जौनसारी परिधान प्रतियोगिता, शौका परिधान प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा। इस वर्ष पर्वतीय व्यंजन प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जा रहा है, जिसमें विजेताओं को सम्मानित किया जायेगा।