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भारतीय भाषाएं हमारा गौरव है : प्रो. अखिलेश कुमार

हिंदी विश्वविद्यालय में ‘राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति एवं भारतीय भाषाएं’  विषय पर विचार गोष्‍ठी

वर्धा (टेलीस्कोप टुडे डेस्क)। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ‘राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति एवं भारतीय भाषाएं’  विषय पर विचार गोष्‍ठी की अध्‍यक्षता करते हुए साहित्‍य विद्यापीठ एवं भाषा विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. अखिलेश कुमार दुबे ने कहा कि सभी भारतीय भाषाएं हमारा गौरव है। गोष्‍ठी का आयोजन सोमवार को गालिब सभागार में किया गया। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के निर्देशानुसार 28 सितंबर से 11 दिसंबर 2023 इन 75 दिनों में देशभर के शिक्षा संस्थानों में भारतीय भाषा उत्सव मनाया जा रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बहुभाषिकता पर अधिक बल दिया गया है। इस दिशा में भारतीय भाषाओं को केंद्र में रखकर संगोष्ठियाँ और कार्यशालाएँ देश भर आयोजित किया गया हैं। विश्‍वविद्यालय में इसी के अनुसरण में यह आयोजन किया गया।

प्रो. दुबे ने कहाकि भारत सरकार ने एक व्‍यापक संकल्‍प के साथ राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति तैयार की है। यह नीति प्रत्‍येक भारतीय भाषा को गौरव बढ़ाएगी और इससे विद्या, मनोरंजन तथा व्‍यापार में भारतीय भाषाओं का कद और बढ़ेगा। इस गोष्‍ठी में साहित्‍य विद्यापीठ के अध्‍यक्ष प्रो. अवधेश कुमार ने कहा कि राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा पर विशेष बल दिया है। हिंदी भाषा को लेकर उन्‍होंने कहा कि रामायण, महाभारत जैसे धारावाहिको, हिंदी सिनेमा, समाचार पत्रों और हिंदी साहित्‍य ने हिंदी को देश-विदेश में ले जाने का काम किया है। भाषा विज्ञान विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. एच.ए. हुनगुंद ने कन्‍नड़ भाषा को केंद्र में रखकर अपने संबोधन में कहा कि कन्‍नड द्रविड़ परिवार की एक सशक्‍त भाषा है जिसे बोलने वालों की संख्‍या 6 करोड़ से भी अधिक है। यह भाषा 2500 वर्ष पुरानी है और इस पर संस्‍कृत का गहरा प्रभाव है।

जनसंचार विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. रेणु सिंह ने बांग्‍ला भाषा में रवींद्रनाथ ठाकुर को उधृत करते हुए बताया कि सृजनशील मानव समाज बनाने में बांग्‍ला का महति योगदान रहा है। वर्धा समाज कार्य संस्‍थान के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. के. बालराजु ने तमिल में अपनी बात रखते हुए यूनेस्‍को और यूएन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए मातृभाषा के महत्‍व को रेखांकित किया। संस्‍कृत विभाग के डॉ. जगदीश नारायण तिवारी ने संस्‍कृत में दिए संबोधन में कहा कि शिक्षा की संकल्‍पना संस्‍कृत के शिवाय नहीं की जा सकती। शिक्षा विद्यापीठ के सहायक प्रोफेसर डॉ. हेमचंद्र ससाने ने मराठी को लेकर कहा कि संत ज्ञानेश्‍वर, संत तुकाराम आदि संतों ने मराठी भाषा को समृद्ध किया है। पडोसी राज्‍यों में मराठी भाषा और संस्‍कृति का संचार हुआ है। शिक्षा विद्यापीठ के ही सहायक प्रोफेसर डॉ. भरत पंडा ने उडिया भाषा की महत्‍ता को बताते हुए कहा कि उडिया एक सर्व समावेशी भाषा है और उडिया-मराठी में 80 प्रतिशत समान शब्‍दों का प्रयोग होता है। भारतीय भाषा विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. हिमाशु शेखर ने कहा कि उर्दू एक हिंदुस्‍तानी जबान है। हिंदी-उर्दू बहने हैं और राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति के माध्‍यम से उर्दू को और बल मिलेगा। ऑनलाइन माध्‍यम से प्रयागराज केंद्र की सहायक प्रोफेसर डॉ. हरप्रीत कौर ने पंजाबी भाषा को लेकर कहा कि पंजाबी भाषा प्रवासन का दंश झेल रही है। सुबे के लोग बारहवीं कक्षा के बाद से ही विदेश जाने लगते हैं, परंतु शिक्षा नीति के कारण शब्‍दकोश और पुस्‍तक प्रकाशन जैसी योजनाओं को गति मिल रही है। विदेशी भाषा विभाग के शोधार्थी इंद्रजीत मिश्र ने बांग्‍ला भाषा में अपनी बात को रखते हुए राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति के महत्‍व को रेखांकित किया। कार्यक्रम का संचालन तुलनात्‍मक साहित्‍य विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. रामानुज आस्‍थाना ने किया। उन्‍होंने सुब्रमण्‍यम भारती के योगदान पर प्रकाश डाला।

दूर शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनंद पाटिल ने धन्‍यवाद ज्ञापित किया। राष्‍ट्रगान से कार्यक्रम का समापन किया गया। इस अवसर पर अधिष्‍ठातागण, विभागाध्‍यक्ष, अध्‍यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज, कोलकाता के अध्‍यापक एवं विद्यार्थी  बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।