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“पेशेंट इंगेजमेंट: बेंचमार्क इन क्लीनिकल ट्रायल्स” पर हुई चर्चा

लखनऊ। सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने डीएनडीआई इंडिया फाउंडेशन के साथ संयुक्त रूप से सीडीआरआई ऑडिटोरियम में शुक्रवार को “पेशेंट इंगेजमेंट: बेंचमार्क इन क्लीनिकल ट्रायल्स” विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय क्लिनिकल परीक्षण दिवस की पूर्व संध्या पर किया गया, जिसे हर साल 20 मई को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का श्रेय स्कॉटिश चिकित्सक जेम्स लिंड को जाता है उन्होने 1747 में पहला नैदानिक परीक्षण किया। ऐसा करके उन्होंने आधुनिक नैदानिक अनुसंधान की नींव रखी। यह संगोष्ठी, नैदानिक अनुसंधान और मरीज जुड़ाव के क्षेत्र से विशेषज्ञों को एक साथ लाती है, मरीज -उन्मुख नैदानिक परीक्षणों पर ध्यान केंद्रित करती है जो मरीजों के लिए सबसे अधिक मायने रखने वाले परिणामों को प्राथमिकता देती है।

नैदानिक अनुसंधानों में प्रतिभागियों का विश्वास उनके अवधारण एवं उनकी संलग्नता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है: डॉ. राधा रंगराजन

संगोष्ठी के उद्घाटन के दौरान, सीएसआईआर-सीडीआरआई की निदेशक डॉ. राधा रंगराजन ने कार्यक्रम का अवलोकन प्रदान करते हुए अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया। अपने भाषण में, उन्होंने नैदानिक परीक्षण में एक प्रतिभागी के रूप में अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा किया और इन परीक्षणों में रोगियों को शामिल करने के लिए अधिक मरीज-केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया। क्लिनिकल रिसर्च में मरीजों का विश्वास प्रतिभागियों को शामिल और प्रतिबद्ध रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, कई रोगियों में नैदानिक परीक्षणों की व्यापक समझ की कमी होती है, इसके अलावा सभी रोगियों को भाग लेने के लिए लगातार आमंत्रित नहीं किया जाता है। औसतन 80% मरीज नामांकन के लिए कठिनाइयों का सामना करते हैं, और 30% तक मरीज जो शुरू में नैदानिक परीक्षण में शामिल होते हैं, वें अंत में अध्ययन से हट जाते हैं। इसलिए जन जागरूकता बढ़ाना एवं नामांकन प्रक्रिया में सुधार करना आवश्यक कारक हैं। अपने भाषण के दौरान उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि नैदानिक विकास अनुसंधान में लागत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उत्पन्न होता है। इसके अलावा, रोगी की उपलब्धता, परीक्षणों के स्थान, विशिष्ट प्रकार के रोगियों को भर्ती करने की आवश्यकता जैसे कारकों से यह लागत और बढ़ जाती है।

वंचित समुदायों को क्लिनिकल परीक्षण मे शामिल होने के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता और निवेश की आवश्यकता है : डॉ. कविता

डॉ. कविता सिंह (डीएनडीआई की निदेशक) ने बिहार में काला अजार क्लिनिकल परीक्षण करने में डीएनडीआई के रोगी के साथ जुड़ाव के अनुभव पर चर्चा की। उन्होने कहा, क्लिनिकल परीक्षण आम तौर पर शहरी क्षेत्रों या शिक्षित आबादी वाले बेहतर अस्पतालों में आयोजित किए जाते हैं। हालांकि, बिहार के ग्रामीण इलाकों में परीक्षण करने से कई चुनौतियां सामने आई। डीएनडीआई ने ऐसे परीक्षण विकसित किए जो स्थानीय संदर्भ, जनसंख्या एवं क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए बनाए हुए थे। गरीब और कम सुविधा वाले समुदायों के लोगो को नैदानिक परीक्षणों में शामिल होने के लिए समुदाय के साथ काम करने और विश्वास स्थापित करने की प्रक्रिया में एक मजबूत प्रतिबद्धता और निवेश की आवश्यकता होती है। इन प्रयासों से महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त हुए हैं, जैसे कि नीतिगत परिवर्तन और रोगियों के जीवन में ठोस सुधार।

क्लिनिकल परीक्षण के लिए मरीज-केंद्रित प्रक्रिया से मरीजों पर बोझ कम होगा, जिससे वे आसानी से प्रतिभागी बनने के लिए तैयार होंगे: डॉ. श्रीवास्तव

डॉ. जे.एस. श्रीवास्तव (प्रोफेसर, एचओडी, हिंद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एवं पूर्व मुख्य वैज्ञानिक सीएसआईआर-सीडीआरआई) ने नैदानिक परीक्षणों के लिए मरीज-केंद्रित प्रक्रिया पर चर्चा की।

उन्होंने कहा, फार्मास्युटिकल क्लिनिकल परीक्षण अक्सर स्थान-केंद्रित होते हैं और इसलिए आवश्यकता होती है कि मरीजों को नमूना और डेटा संग्रह के लिए क्लिनिकल स्थान पर आना होता है। क्लिनिकल ट्रायल करने के लिए मरीजों को भर्ती करने का कार्य कई परेशानियां पैदा करता है। इन परेशानियां को कम करने के लिए हमे डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करना चाहिए जो कि हमें नैदानिक परीक्षणों के संचालन के तरीके को मौलिक रूप से बदलने का एक बड़ा अवसर प्रदान करता है। डिजिटल स्वास्थ्य तकनीकों मे बढ़ोतरी से अब हम नैदानिक परीक्षण प्रक्रिया को स्थान-केंद्रित से मरीज-केंद्रित परीक्षण में स्थानांतरित करने के बारे में सोच सकते हैं। यह एक प्रकार का नैदानिक परीक्षण है जो मरीजों को उनके स्वयं के स्वास्थ्य देखभाल प्रबंधन प्रणाली में शामिल करने पर ध्यान केंद्रित करता है और मरीजों के साथ बातचीत कर सकता है कि उनके स्वास्थ्य का स्तर क्या है। यह तकनीक आम तौर पर केंद्रीय अध्ययन समन्वय केंद्र से आयोजित की जाती है और कई स्रोतों से डेटा संग्रह किया जाता हैं। क्लिनिकल परीक्षणों के लिए मरीज-केंद्रित प्रक्रिया का लक्ष्य मरीजों के रहने, काम करने या नियमित चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने एवं उनके अध्ययन को सरल बनाना है।

सफल क्लिनिकल परीक्षण के लिए मरीजों सहित हितधारकों के बीच मजबूत नेटवर्क एवं बेहतर तालमेल समय की मांग है: डॉ. पूजा

डॉ. पूजा शर्मा (एपीएआर हेल्थ की संस्थापक और सीई ने पेशेंट एंगेजमेंट: पुटिंग पेशेंट्स फर्स्ट पर अपनी बात रखी और कहा, क्लिनिकल रिसर्च ने हमेशा मरीजों को प्राथमिकता देने का दावा किया है, लेकिन अब यह महत्वपूर्ण है कि यह वास्तव में मरीजों पर केंद्रित हो शोध में मरीजों की आवाज को शामिल करने का महत्व पेशेंट रिपोर्टेड आउटकम्स (पीआरओ) और पेशेंट ओरिएंटेड एविडेंस दैट मैटर्स (पीओईएम) पर वैश्विक जोर के माध्यम से स्पष्ट है। समय आ गया है कि मजबूत नेटवर्क बनाया जाए और रोगियों सहित हितधारकों के बीच बातचीत शुरू की जाए।