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बुनियादी स्वच्छता के प्रति बच्चों को कर रहे जागरूक


हाईजीन एंड बिहेवियर चेंज कोअलिशन के सहयोग से सेसमी वर्कषॉप चला रहा मल्टी-मीडिया अभियान
लखनऊ। कोविड-19 महामारी की दस्तक के बाद संक्रामक बीमारियों के प्रसार को रोकने के लिए इस जीवनरक्षक आदत को आम जीवन का हिस्सा बनाने की बढ़ी जरूरतों के बीच सेसमी वर्कशॉप इंडिया अपने मपेट एल्मो और चमकी से बच्चों को खेल-खेल में हाथ साफ रखने की अहमियत सिखाने के साथ जागरूक किया जा रहा है। स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्र में सेसमी वर्कशॉप इंडिया की ओर से बच्चों के लिए किए जा रहे काम के बारे में संस्थान की प्रबंध निदेशक सोनाली खान का कहना है कि हमारा लक्ष्य बच्चों और परिवारों के बीच स्वच्छता से जुड़ी जानकारी, व्यवहार और प्रथाओं को बढ़ावा देना और बच्चों की विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करना है। हाईजीन बिहेवियर चेंज को अलिशन की मदद से हम स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी महत्वपूर्ण आदतों को लेकर अधिक से अधिक बच्चों और परिवारों तक पहुंच बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। अमेरिका के रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के एक आकलन के मुताबिक हाथ साफ रखने से डायरिया के हर तीन में से एक और श्वास संक्रमण के हर पांच में से एक मामले रोके जा सकते हैं। बावजूद इसके, बड़ी संख्या में लोग हाथों की सफाई पर ध्यान नहीं देते। जिसे देखते हुये सेसमी वर्कशॉप की भारतीय शाखा सेसमी वर्कशॉप-इंडिया स्वच्छता और बीमारियों की रोकथाम के उपायों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हाईजीन एंड बिहेवियर चेंज कोअलिशन (एचबीसीसी) के सहयोग से एक मल्टी-मीडिया अभियान चला रहा है। एचबीसीसी लोगों में स्वच्छ आदतें विकसित करने के लिए यूनिलीवर और ब्रिटिश सरकार के विदेश, राष्ट्रमंडल एवं विकास कार्यालय (एफसीडीओ) का एक गठबंधन है। इस मल्टीमीडिया अभियान के तहत, सेसमी वर्कशॉप इंडिया ने लोगों को  “स्वच्छता और बीमारियों की रोकथाम के उपायों” के बारे में जागरूक करने के लिए हिंदी, मराठी, तेलुगु और तमिल भाषा में सरल, लेकिन आकर्षक ऑनलाइन सामग्री उपलब्ध कराई हैं। जिनमें वीडियो से लेकर पोस्टर, डिडिटल गेम और ई-बुक शामिल हैं। ये सामग्री सोशल मीडिया साइटों – फेसबुक, इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब और रेडियो के अलावा समुदायों से सीधे संपर्क के जरिये परिवारों को मुहैया कराई जा रही हैं। इसके अलावा, सेसमी स्ट्रीट के अभिनव डिजिटल गेम “एच फॉर हैंडवाशिंग” का नया हिंदी संस्करण भी समुदायों में बच्चों और परिवारों के बीच वितरित किया जा रहा है।