लखनऊ। मौजूदा समय में अनेक प्रकार के व्याधियों से लोग ग्रस्त हो रहे है। जिसका कारण अनियमित दिनचर्या, खान-पान, रहन-सहन प्रदूषित वातावरण व मिलावटी समानों के बहुतायत उपयोग के कारण आज के दौर में असमय लोग गंभीर बीमारियों, अवसाद व मानसिक तनाव के जद में आ जाते है। जिसका सटीक इलाज जब आधुनिक चिकित्सा पद्वति में नहीं मिल पाता है तो ऐसे मरीजो को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। लेकिन ऐसा नही है, भारत में सदियों से तमाम ऐसी वैकल्पिक विधाओं का प्रयोग करते थे जिसमें एक विधा है प्राणिक हीलिंग, जो एक प्रकार की ‘नो टच नो ड्रग थेरेपी’ हैंं। यद्यपि यह पद्यति प्राचीन भारतीय परम्परा पर आधारित है, परन्तु इसकी पुनःस्थापना फिलीपींस के मास्टर चोआ कोक सुई द्वारा की गई है। इस विधा में औरा (स्थूल शरीर की आभा) की स्वच्छता के साथ ही साथ शरीर के चक्र की भी स्वच्छता होती है, या यू कहे कि यही इस विधा का मूल सिद्धांत है। विवेकानन्द पॉलीक्लिनिक एवं आयुर्विज्ञान संस्थान में इस विधा से कई मरीजों को लाभ हुआ है। सोमवार को आयोजित पत्रकार वार्ता में संस्थान के सचिव स्वामी मुक्तिनाथानंद ने बताया कि संस्थान में प्राणिक हीलिंग का मूल उद्देश्य आमजनता एवं जरूरतमंद लोगों की मदद करना है इतना ही नहीं ऐसे लोगो का कल्याण करना है जो महंगा इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं। इस थैरेपी के माध्यम से संस्थान में भर्ती बहुत से मरिजों ने जिनको आधुनिक चिकित्सा पद्वति से लाभ नही हुआ वो लाभन्वित हुए। उन्होंने कहा कि इस थैरेपी में हम मरीज को न छू रहे हैं, न कोई दवा दे रहे हैं और न ही कोई व्यायाम करने को कह रहे हैं इसलिए किसी भी प्रकार का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है।
इस थैरेपी के अद्भुद परिणाम देखने को मिलते हैं जैसे कैंसर, लीवर सिरोसिस, व्यसन, पार्किंसन, ट्यूमर, कोमा, ब्रेन हेम्ब्रेज, क्रोनिक किडनी डिसऑर्डर (सीकेडी) आदि से मुक्ति मिल जाती है। इस थैरेपी के माध्यम से गंभीर से गंभीर मानसिक रोगी, अवसादग्रस्त व्यक्ति यथाशीघ्र स्वस्थ्य हो जाता है। इस दौरान प्राणिक हीलिंग से स्वस्थ हुए मरीजों ने भी अपने अनुभव साझा किए।