Saturday , December 27 2025

अरोमा मिशन : ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई उड़ान, पर्पल रिवोल्यूशन बना पहचान

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। देश की चर्चित “पर्पल रिवोल्यूशन” और लैवेंडर उद्यमिता को गति प्रदान करने वाली उद्यमी विज्ञान टीम सीएसआईआर के नेतृत्व वाले अरोमा मिशन को “राष्ट्रीय विज्ञान टीम पुरस्कार 2025” से सम्मानित किया गया। बीते 23 दिसंबर को यह पुरस्कार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में प्रदान किया गया। CSIR-अरोमा मिशन के मिशन निदेशक डॉ. प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने टीम की ओर से यह पुरस्कार ग्रहण किया।

यह उपलब्धि सीएसआईआर की विभिन्न प्रयोगशालाओं के सहयोग और वैज्ञानिक विशेषज्ञता का परिणाम है, जिसने ग्रामीण विकास और कृषि उद्यमिता को नई दिशा दी है। यह पुरस्कार वैज्ञानिक नवाचार, किसान-केंद्रित तकनीकों तथा निरंतर तकनीकी सहयोग के माध्यम से टिकाऊ आजीविका सृजन करते हुए भारत के सुगंधित फसलों के क्षेत्र को सशक्त बनाने में मिशन की परिवर्तनकारी भूमिका को मान्यता देता है।

इस अवसर पर CSIR-CIMAP, लखनऊ के संकाय सदस्यों ने भी ऑनलाइन माध्यम से पुरस्कार समारोह में सहभागिता की और CSIR-CIMAP के निदेशक को उनके दूरदर्शी नेतृत्व, मार्गदर्शन, निरंतर सहयोग तथा CSIR अरोमा मिशन में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए बधाई दी।

ग्रामीण विकास और कृषि उद्यमिता को मिली नई दिशा

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कार्यरत अरोमा मिशन टीम को हिमालयी क्षेत्र में सुगंधित फसलों, विशेष रूप से लैवेंडर की खेती और प्रसंस्करण को बढ़ावा देकर प्रयोगशाला अनुसंधान को जमीनी स्तर के परिणामों में परिवर्तित करने का श्रेय दिया जाता है। इसके कार्य ने जम्मू और कश्मीर के किसानों के लिए आजीविका के नए द्वार खोले, आवश्यक तेलों के आयात पर निर्भरता कम की और यह प्रदर्शित किया कि समन्वित वैज्ञानिक हस्तक्षेप किस प्रकार सामाजिक-आर्थिक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है।

इस मान्यता से राष्ट्रीय पुरस्कारों के ढांचे के केंद्र में सहयोगात्मक, अनुप्रयोग-उन्मुख विज्ञान को स्थान मिलता है। जम्मू-कश्मीर के भदेरवाह और गुलमर्ग कस्बों से शुरू हुई लैवेंडर की खेती और उद्यमशीलता अब केंद्र शासित प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी फैल चुकी है और उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे अन्य राज्यों द्वारा भी अपनाई जा रही है।

अरोमा मिशन को मिली मान्यता के साथ, समारोह ने रेखाकिंत किया की कैसे सरकार समर्थित वैज्ञानिक कार्यक्रम, जब स्थानीय आवश्यकताओं पर आधारित हों और टीम वर्क के माध्यम से कार्यान्वित किए जाएं, तो प्रयोगशालाओं और पत्रिकाओं से परे परिणाम दे सकते हैं। भारत अपने विज्ञान-आधारित विकास मॉडल को मजबूत करने की दिशा में अग्रसर है। ऐसे में राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार अनुसंधान उत्कृष्टता को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और जमीनी स्तर पर प्रभाव से जोड़ने वाले एक मंच के रूप में तेजी से उभर रहा है।

लेमनग्रास उत्पादन में भारत को वैश्विक बढ़त

CSIR-CIMAP के निदेशक डॉ. प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की आय बढ़ाने और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने वर्ष 2017 में अरोमा मिशन की शुरुआत की। सुगंधित फसलों की खेती, प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन पर केंद्रित इस मिशन से न केवल किसानों की आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, बल्कि सुगंध उद्योग को भी उच्च गुणवत्ता का कच्चा माल उपलब्ध हुआ है।

उन्होंने बताया कि सीएसआईआर अरोमा मिशन एक बहु-संस्थागत परियोजना है, जिसकी नोडल प्रयोगशाला सीएसआईआर–सीमैप है। मिशन के तहत भारत ने लेमनग्रास आवश्यक तेल के उत्पादन और निर्यात में वैश्विक नेतृत्व हासिल किया है। देश में 10,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में लेमनग्रास की खेती कर लगभग 1,000 टन आवश्यक तेल का उत्पादन किया गया, जिसकी अनुमानित कीमत 100 करोड़ रुपये है।

जम्मू-कश्मीर में पर्पल रिवोल्यूशन

अरोमा मिशन के तहत जम्मू-कश्मीर में लैवेंडर की खेती ने ‘पर्पल रिवोल्यूशन’ को जन्म दिया है। इससे किसानों को प्रति हेक्टेयर 2.5 लाख रुपये से अधिक की आय प्राप्त हुई। इस पहल से 10,000 से अधिक परिवारों को रोजगार मिला और कृषि आधारित स्टार्ट-अप्स को भी बढ़ावा मिला।

जनजातीय किसानों, महिलाओं और युवाओं को मिला लाभ

उन्होंने बताया कि पूर्वोत्तर राज्यों, छत्तीसगढ़, झारखंड, तमिलनाडु सहित कई क्षेत्रों में 10,000 से अधिक जनजातीय किसानों को सुगंधित फसलों के विकल्प उपलब्ध कराए गए, जिससे उनकी आय में दो से तीन गुना तक वृद्धि दर्ज की गई।

अरोमा क्लस्टर से बना मजबूत इकोसिस्टम

निदेशक ने बताया कि देशभर में 4,500 से अधिक अरोमा क्लस्टर विकसित किए गए हैं, जो लगभग 51,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं। इन क्लस्टरों से 6,000 टन आवश्यक तेल का उत्पादन हुआ, जिसकी बाजार कीमत 660 करोड़ रुपये आंकी गई है। इससे किसानों, उद्योग और नवोदित उद्यमियों के लिए मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र तैयार हुआ है।

बंजर भूमि का कायाकल्प और मजबूत इकोसिस्टम

डॉ. प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने बताया कि अरोमा मिशन के तहत चक्रवात, बाढ़ और सुनामी प्रभावित क्षेत्रों में वेटिवर, पहाड़ी क्षेत्रों में टैगेटिस मिनुटा तथा शुष्क व लवणीय भूमि में लेमनग्रास और रोजा घास की खेती कर 10,000 हेक्टेयर से अधिक अनुपजाऊ भूमि को लाभकारी बनाया गया।

रोजगार और आय में उल्लेखनीय वृद्धि

उच्च मूल्य वाली सुगंधित फसलों से किसानों की आय में प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष 60 से 70 हजार रुपये की बढ़ोतरी हुई, जबकि कई मामलों में लाभ 400 प्रतिशत तक पहुँचा। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में 100 लाख से अधिक मानव-दिवस रोजगार का सृजन हुआ।

उन्नत तकनीक और प्रशिक्षण

मिशन के अंतर्गत 52 उच्च उपज किस्में और 80 से अधिक कृषि तकनीकें विकसित की गईं। इन्हें 2,000 से अधिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से 1.20 लाख से अधिक लोगों तक पहुँचाया गया। जिनमें 10,000 महिलाएँ शामिल हैं। मूल्य संवर्धन क्षेत्र में 110 से अधिक उद्यमी भी उभरकर सामने आए हैं।

सीएसआईआर-सीमैप एक नोडल लैब के तौर पर तथा सम्बद्ध सीएसआईआर प्रयोगशाला निदेशकों के नेतृत्व में सीएसआईआर की अरोमा मिशन टीम ने सुगंधित फसलों की उच्च उपज वाली किस्मों के विकास, उन्हें (किस्मों को) किसानों के बीच प्रचलित एवं लोकप्रिय बनाने, किसानों की आय बढ़ाने तथा लक्षित किसान समूहों के लिए स्थिर आजीविका सुनिश्चित करने में उन्हें निरंतर तकनीकी सहयोग प्रदान करने की दिशा में सराहनीय कार्य किया है। 

टीम के निरंतर प्रयासों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव लाया गया। बाजार की गतिशीलता को नवीन रूप दिया गया और सुगंधित तेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट विकास के अवसरों को सृजित किया गया तथा सम्पूर्ण देश में व्यापक प्रौद्योगिकीय एवं प्रक्रियात्मक समाधान उपलब्ध कराए गए। जिससे ग्रामीण उद्यमिता को प्रोत्साहन मिला व ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाया गया एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन को बढ़ावा मिला।