संगोष्ठी : आधुनिकता, जलवायु परिवर्तन एवं हाशिए का समाज
लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। हमारा रहन सहन और पूरी व्यवस्था को बदलकर संयमित करने से ही हम बढ़ते जलवायु परिवर्तन के ख़तरों का सामना कर सकते हैं। हमारी कोशिश ही नहीं, मकसद भी होना चाहिये कि गैर बराबरी, ऊर्जा खपत और कचरा कम हो। साथ ही कार्बन उत्सर्जन भी घटे। इसके लिए हमें विकास का सही रास्ता चुनना होगा।
ये विचार मुख्यवक्ता के तौर पर दिल्ली साइंस फोरम के वरिष्ठ वैज्ञानिक डी रघुनंदन ने यूपी प्रेस क्लब सभागार में व्यस्त किये। यहां जन विचार मंच की ओर से’ आधुनिकता, जलवायु परिवर्तन एवं हाशिए का समाज’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया था।

प्रतुल जोशी के संचालन में चली संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो. नदीम हसनैन ने कहा कि हम तकनीक की अंधी दौड़ में बहुत कुछ खोते जा रहे हैं। सोचना होगा कि हम आगे की पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं।

इससे पहले कोपेनहेगन सम्मेलन, पेरिस समझौते का जिक्र के साथ पूंजीवाद जैसे बहुत से खतरों से आगाह करते हुए श्री रघुनंदन ने कहा कि बढ़ता तापमान से समुद्र तल ऊपर आ रहा है और पापुआ न्यू गिनी के आसपास के द्वीप डूब रहे हैं। मालदीव ने भी इस ओर ध्यान खींचा है। देश के संदर्भ में उन्होंने कहा कि एक अमेरिकी एक भारतीय की तुलना में 15 गुना ज्यादा ऊर्जा खपत करता है। इसके साथ ही देश में हवाई यात्री 12 से 15 प्रतिवर्ष और घरों में एसी का प्रयोग करने वाले भी प्रतिवर्ष 15 प्रतिशत बढ़ रहे हैं। हमें सोचना होगा कि हम विकास का क्या रास्ता चुनें।

अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो.रमेश दीक्षित ने कहा कि आज असमान विकास हो रहा है। साथ ही हमें ये भी देखना, सोचना, समझना और फिर करना होगा कि हाशिए के समाज की जिंदगी कैसे बदल रही है। इस मौके पर श्री रघुनंदन ने श्रोताओं हेमंत कुमार सिंह, रिजवान और सरिता मिश्रा के उठाये सवालों के जवाब भी दिए।