- कोड ब्रेन मरीज के पहुँचते ही हॉस्पिटल मैनेजमेंट को अलर्ट करता है
- समय पर मैनेजमेंट सुनिश्चित करता है कि गोल्डन आवर में इलाज हो
लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। लखनऊ में मेदांता सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल ब्रेन स्ट्रोक के लिए वर्ल्ड-क्लास ट्रीटमेंट प्रदान कर रहा है। अत्याधुनिक संसाधनों, कुशल डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ के साथ, और कुशल टाइम मैनेजमेंट के कारण, मरीजों को तुरंत देखभाल मिल रही है। यह सुनिश्चित करता है कि क्रिटिकल गोल्डन आवर में व्यापक इलाज हो। यह सब मेदांता के अत्यधिक योग्य डॉक्टरों की टीम द्वारा संभव हो पाया है, जो हॉस्पिटल के डॉक्टरों, पैरामेडिक्स, नर्सिंग स्टाफ, वार्ड बॉय, सिक्योरिटी पर्सनल, एम्बुलेंस ड्राइवर्स और टेक्निशियनों को भी स्ट्रोक मरीजों को संभालने के लिए ट्रेन करते हैं।
मेदांता में न्यूरोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ. एके ठक्कर ने बताया कि सर्दियों में ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में वृद्धि हो जाती है। इलाज में देरी जानलेवा हो सकती है या लकवे का कारण बन सकती है। स्ट्रोक के बाद शुरुआती चार से साढ़े चार घंटे को “गोल्डन ऑवर” कहा जाता है। इस दौरान सही और समय पर इलाज से मरीज की रिकवरी की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
मेदांता में न्यूरोसर्जन डॉ. रवि शंकर ने बताया कि स्ट्रोक के मामले युवाओं और वयस्कों में तेजी से बढ़ रहे हैं। स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क तक रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है। बदलती खानपान की आदतें, व्यायाम की कमी, पर्याप्त नींद न लेना, धूम्रपान और शराब का सेवन इसके प्रमुख कारण बन रहे हैं। इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, टाइप-2 डायबिटीज़ के मरीजों में स्ट्रोक का खतरा अधिक होता है। स्ट्रोक के अन्य कारणों में ब्लॉक आर्टरीज़, अनियमित हार्टबीट और फैमिली हिस्ट्री शामिल हैं। नियमित हेल्थ चेकअप और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से स्ट्रोक के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
मेदांता में इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी के निदेशक डॉ. रोहित अग्रवाल ने बताया, “स्ट्रोक थ्रॉम्बेक्टॉमी, जो एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है, स्ट्रोक के इलाज में क्रांति ला रही है। इस तकनीक के जरिए मस्तिष्क की ब्लॉक आर्टरी से रक्त के थक्के हटाए जाते हैं, जिससे रक्त प्रवाह बहाल होता है और परिणाम में सुधार होता है। यह प्रक्रिया समय की सीमा में की जाती है और विशेष रूप से उन मरीजों के लिए फायदेमंद है, जो पारंपरिक उपचार का जवाब नहीं देते।” उन्होंने कहा, “थ्रॉम्बेक्टॉमी जीवन बदल रही है, और समय पर इलाज बेहद जरूरी है।” स्ट्रोक के लक्षण पहचानने के लिए बी फास्ट या “बीई एफएएसटी” (बैलेंस, आईज, फेस, आर्म्स, स्पीच, टाइम) फॉर्मूला अपनाने पर जोर दिया।
मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ के स्ट्रोक यूनिट के इंचार्ज और एसोसिएट डायरेक्टर न्यूरोलॉजी डॉ. ऋत्विज बिहारी ने स्ट्रोक के इलाज के लिए “गोल्डन आवर” यानि स्ट्रोक के शुरू होने के बाद के पहले 4.5 घंटों के सही प्रबंधन पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया की शुरुआत तब होती है जब एम्बुलेंस मरीज को लेने जाती है या मरीज खुद अस्पताल पहुंचता है। प्रशिक्षित एम्बुलेंस टेक्नीशियन अस्पताल को पहले ही अलर्ट कर देते हैं, लक्षणों की पहचान करते हैं और प्राथमिक उपचार देते हैं। अस्पताल पहुंचने पर इमरजेंसी और ओपीडी टीम मरीज को प्राथमिकता देती है। ‘कोड ब्रेन’ अलर्ट सक्रिय कर विशेष टीम को तुरंत इलाज के लिए तैयार किया जाता है। सीटी स्कैन और एमआरआई जैसी इमेजिंग जांच के बाद इलाज शुरू होता है। कुछ मामलों में, स्ट्रोक शुरू होने के 24 घंटे के भीतर रीवैस्कुलराइजेशन प्रक्रिया की जा सकती है।
अस्पताल में उन्नत आईसीयू, स्ट्रोक थैरेपी और रिहैबिलिटेशन की सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिनका संचालन प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ करता है।