Thursday , September 19 2024

…और जब डबल कमाई के चक्कर में “बुरे फंसे गुलफाम”

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। आकांक्षा थियेटर आर्ट्स के तीन दिवसीय नाट्य समारोह-2024 का गुरुवार को शुभारंभ हो गया। इस मौके पर भारतीयम् संस्था की ओर से कार्लो गोल्डोनी का विश्वविख्यात इटेलियन हास्य नाटक, ‘द सर्वेन्ट ऑफ टू मास्टर्स’ का हिन्दुस्तानी अनुवाद, ‘बुरे फंसे गुलफाम’ नाम से किया गया। गोमती नगर स्थित उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के संत गाडगे जी महाराज ऑडिटोरियम में वरिष्ठ रंगकर्मी पुनीत अस्थाना के निर्देशन में इसका प्रभावी मंचन किया गया। इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ. अनिल रस्तोगी उपस्थित रहे।

विश्व रंगमंच के पटल पर इटली की कामेदिया देल आर्ते शैली की अहम् भूमिका रही है। हास्य और व्यंग्य प्रधान इस शैली की विशिष्टता – तेज गतियां, उछल-फांद और विशेष शैली की एक्टिंग होती है। इटली के अत्यन्त लोकप्रिय नाटककार कार्लो गोल्डोनी ने साल 1775 में इसी शैली में इस हास्य नाटक की रचना की थी, जो आज भी उतना ही लोकप्रिय है, जितना अपने लिखे जाने के समय थी। 

प्रस्तुत नाटक में घटना-स्थल 20वीं सदी के शुरुआती दौर का लखनऊ रखा गया था। नवाब बग़लौल साहब लखनऊ के एक जाने-माने व्यापारी होते हैं जिनके व्यापारिक संबंध हैदराबाद के एक अन्य युवा व्यापारी जनाब जावेद साहब से होते हैं। दोनों ने एक दूसरे को देखा नहीं होता है पर ख़तोकिताबत के ज़रिये वह इतने करीब आ जातें हैं कि नवाब साहब अपनी बेटी गुलनार की शादी, जावेद मियां के साथ पक्की कर देते हैं, पर इसी बीच उन्हें ख़बर मिलती है कि जावेद मियां की मौत उनकी बहन शबनम के प्रेमी, आरिफ मियां के हाथों एक कहासुनी के दौरान हो गई है। ऐसे हालात में, जनाब बग़लौल साहब अपनी बेटी गुलनार का रिश्ता, अपने दोस्त डॉ. बुखारा के लड़के लाड़ले मियां से पक्का कर देते हैं। उनकी सगाई की रस्म चल ही रही होती है कि तभी जावेद मियां भी वहां पंहुच जाते हैं। उन्हे ज़िन्दा देख कर सभी हैरान और परेशान हो जातें हैं।

जावेद मियां के भेष में असल में वह शख़्स, जावेद की बहन शबनम होती है जो मर्दाना लिबास में अपने प्रेमी आरिफ को ढूंढते हुए लखनऊ आ पहुंचती है। वास्तव में आरिफ के हाथों जावेद, महज़ ज़ख्मी हुआ होता हैं पर आरिफ उसे मरा हुआ जान कर लखनऊ भाग आता हैं। इत्तेफ़ाक से शबनम और आरिफ, दोनों ही अन्जाने में एक ही सराय में ठहरते हैं, जहां एक नौकर गुलफाम, जुगाड़ से दोनों की मुलाज़मत हासिल कर लेता है पर दोनों आकाओं की खिदमत करने की कोशिश में वह चक्करघिन्नी बन कर रह जाता है, जिससे उसके हाथों एक के बाद एक गल्तियां होती जाती हैं। इसका ख़ामियाज़ा उनके आकाओं को भुगतना पड़ता है। 

नाटक के अंत में लालची गुलफाम का झूठ पकड़ा जाता है और सारी गलतफहमियां दूर हो जाती हैं। उसके बाद केन्द्रीय किरदार शबनम की आरिफ के साथ, गुलनार की लाडले मियां साथ और बुलबुल की गुलफाम के साथ निकाह की भी घोषणा कर दी जाती है। मंच पर गुलफाम के किरदार में केशव पंण्डित ने सबकी खू़ब वाहवाही लूटी।

अशोक सिन्हा ने बगलौल खां, तुषार बाजपेई ने डॉ. बुखारा, सोमेन्द्र प्रताप सिंह ने अच्छे मिंया की भूमिकाओं में खू़ब तालियां बटोरीं। आकांक्षा अवस्थी, भव्या द्विवेदी और अंकिता दीक्षित ने युवा प्रेमिकाओं के किरदारों में दर्शकों को खू़ब आकर्षित किया। राजीव रंजन सिंह और अभिषेक सिंह ने युवा प्रेमियों की उठा पटक को बखूबी जिया। शशांक तिवारी और तनय विवेक पान्डे ने भी अपने किरदारों से दर्शकों को खू़ब हंसाया। आनन्द अस्थाना के पल भर में बदल जाने वाले सेट ने लोगों को हैरत में डाल दिया। राजीव रंजन सिंह के गायन और ध्वनि प्रभाव के साथ एम. हफीज़ की लाइट डिज़ाइन ने नाटक का आकर्षण बढ़ाया। इस क्रम में 29 मार्च को ऊपर की मंजिल खाली है और 30 को कंजूस नाटक का मंचन किया जाएगा।