लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। पर्यावरण निदेशालय, उप्र के सहयोग से आंचलिक विज्ञान नगरी, द्वारा शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय ओज़ोन परत संरक्षण दिवस के अवसर पर कार्यक्रमों की श्रंखला आयोजित की गयी। कार्यक्रम का आरंभ ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: ओज़ोन परत को ठीक करना और जलवायु परिवर्तन को कम करना’ विषय पर ‘वाद-विवाद प्रतियोगिता’ के साथ की गई थी। इसके पश्चात् जलवायु परिवर्तन विषय पर चित्रकला प्रतियोगिता, ‘ओज़ोन परत के महत्व’ पर लिखित प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता और विभिन्न श्रेणियों के स्कूली बच्चों के लिए ‘ओज़ोन परत संरक्षण’ पर विज्ञान फिल्म शो का आयोजन किया गया। इसके अलावा, आकांक्षित छात्रों के लिए ‘पर्यावरण’ पर एक विशेष प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम भी आयोजित किया गया। केंद्र ने कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सरकारी स्कूल के विद्यार्थियों को आंचलिक विज्ञान नगरी की दीर्घाओ का निःशुल्क भ्रमण कराया। इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय ओज़ोन परत संरक्षण दिवस का विषय ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: ओज़ोन परत को ठीक करना और जलवायु परिवर्तन को कम करना’ था।



कार्यक्रम के समापन पर ‘ओज़ोन की रक्षा – हमारे वायुमंडल की सुरक्षा’ विषय पर एक लोकप्रिय विज्ञान व्याख्यान का आयोजन किया गया। जिसे लखनऊ विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर अजय मिश्रा द्वारा प्रस्तुत किया गया। अपने प्रस्तुति में उन्होंने बताया कि इनमें से लगभग 90% ओज़ोन अणु 10 से 50 किलोमीटर (किमी) के बीच की ऊंचाई पर, यानी समताप मंडल में मौजूद हैं। समताप मंडल में, सूर्य से पराबैंगनी विकिरण द्वारा विघटित ऑक्सीजन ओज़ोन बनाने के लिए पुनः संयोजित होती है। उन्होंने बताया कि कैसे रासायनिक रूप से निष्क्रिय सीएफसी धीरे-धीरे ओज़ोन परत तक पहुंचते हैं और अपने घटक क्लोरीन परमाणुओं में अलग हो जाते हैं जो ओज़ोन अणुओं को नुकसान पहुंचाते हैं। मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर भी संयुक्त प्रभाव से ओज़ोन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर रहा है। उन्होंने ओज़ोन छिद्र के आकार के संबंध में डेटा प्रस्तुत किया जो वर्षों के अनुसार बदलता रहता है। ओज़ोन क्षरण के कारण अत्यधिक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँच रही हैं। इन किरणों के बढ़ने से त्वचा कैंसर और आँखों की विभिन्न बीमारियाँ हो सकती हैं। बढ़ी हुई अल्ट्रा-वायलेट विकिरण द्वारा पृथ्वी का तापमान बढ़ेगा जिसके परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन होगा।

एम अंसारी (परियोजना समायोजक, आंचलिक विज्ञान नगरी) ने ओज़ोन परत की खोज के इतिहास और ओज़ोन परत को नष्ट होने से बचाने के विभिन्न उपायों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि ओज़ोन बहुत कम मात्रा में मौजूद है और यदि वायुमंडल में सभी ओज़ोन को पृथ्वी की सतह पर संपीड़ित किया जाता है तो परत केवल 3 मिमी मोटी होगी। अतः ओज़ोन परत के संरक्षण हेतु हम सबको मिलकर हर संभव प्रयास करने होंगे।
कार्यक्रम के अंत में श्रुति शुक्ला (उपनिदेशक, पर्यावरण निदेशालय, उप्र) ने हमारी रोजमर्रा की जीवनशैली में कुछ संशोधन करके ओज़ोन परत को बचाने के लिए विभिन्न सुझाव दिए। उन्होंने कामना की कि ओज़ोन परत का क्षरण दूर हो जाए और आशा है कि निकट भविष्य में यह उत्सव बंद हो जाएगा। अतिथियों ने विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कार एवं प्रमाण पत्र भी वितरित किये। कार्यक्रम में लगभग 660 स्कूली विद्यार्थियों ने भाग लिया।
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