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भारतीय वैज्ञानिक सर सीवी रमन ने साबित की भारतीय विज्ञान की गुणवत्ता एवं सर्वोच्चता – प्रो. शेखर सी. मांडे

लखनऊ। भारत में विज्ञान दिवस हर साल 28 फरवरी को हमारे अपने विश्व स्तरीय भारतीय भौतिक विज्ञानी सर सीवी रमन द्वारा “रमन प्रभाव” की महान खोज की याद में मनाया जाता है। जिस खोज के लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

सर सीवी रमन विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐसा व्यक्तित्व हैं, जिनकी पूरी दुनिया प्रशंसक है एवं उनकी प्रशंसा उनके हर व्याख्यान में और उनके दार्शनिक उद्धरणों में भी दिखाई देती है। उन्होंने ही कहा था कि अगर आप सही सवाल पूछेंगे तो प्रकृति मां अपने रहस्यों के द्वार खोल देंगी।

इस वर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस कार्यक्रम भारत की G20 अध्यक्षता और साइंस20 वर्टिकल के तत्वाधान में “वैश्विक भलाई के लिए वैश्विक विज्ञान” की थीम के तहत मनाया जा रहा है। सीएसआईआर-सीडीआरआई में मंगलवार को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस, विज्ञान भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष, एवं सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के विशिष्ट प्रोफेसर व सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक एवं डीएसआईआर, भारत सरकार के पूर्व सचिव, डॉ. शेखर सी. मांडे की गरिमामई उपस्थिति में सम्पन्न हुआ।

उन्होंने “भारत के स्वतंत्रता संग्राम एवं उसके पश्चात वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की भूमिका” विषय पर एक बहुत ही प्रेरक व्याख्यान दिया। अपने सम्बोधन में उन्होंने विभिन्न उदाहरणों का उल्लेख किया कि कैसे सर सीवी रमन, सर पीसी रे, सर जेसी बोस, सर एम विश्वेश्वरैया जैसे भारतीय वैज्ञानिकों ने पश्चिमी दुनिया की औपनिवेशिक सोच से मुकाबला करते हुए भारतीय विज्ञान की गुणवत्ता एवं सर्वोच्चता साबित की। अपने सम्बोधन में उन्होंने राष्ट्र के प्रति इन वैज्ञानिकों के समर्पण और भारतीय समाज के साथ-साथ भारतीय विज्ञान के उत्थान के लिए उनके योगदान का उल्लेख किया।

सभागार मे उपस्थित सभी श्रोतागण, भारतीय विज्ञान के गौरवशाली इतिहास को सुनकर चकित रह गए। विशेषकर विज्ञान के उस युग में जब भारतीय विज्ञान को पश्चिमी देशों से हीन एवं दोयम दर्जे का समझा जाता था।