बहराइच (शम्भू शरण वर्मा/टेलीस्कोप टुडे)। बशीरतगंज निवासी कृष्ण शंकर प्रसाद उर्फ गोपाल गुप्ता ने अपनी अनूठी रचनात्मक सोच और मेहनत से उस चीज़ को भी कीमती बना दिया है, जिसे किसान कटाई के बाद खेतों में बेकार मानकर छोड़ देते हैं। गेहूं की फसल कटने के बाद खेतों में बच जाने वाले डंठल, जिन्हें सामान्यतः पशुओं के चारे या कूड़े के रूप में देखा जाता है, गोपाल गुप्ता के हाथों में पहुंचकर सजीव कलाकृतियों का रूप ले लेते हैं। इन्हीं डंठलों से वे विभिन्न कलाकृतियां तैयार कर रहे हैं। उनके इस कार्य में पत्नी पूनम गुप्ता सहित परिवार के अन्य सदस्य भी सहयोग कर रहे हैं।

गोपाल गुप्ता ने अपनी अनोखी सोच से गेहूं के डंठल को रोजगार का सशक्त माध्यम बना दिया है। वे इन डंठलों से आकर्षक कलाकृतियां, सजावटी उत्पाद और गृह–सज्जा सामग्री तैयार कर रहे हैं। एक जिला एक उत्पाद में बहराइच का चयन गेहूं के डंठल से कलाकृतियां बनाने के लिए हुआ है। जिससे उनकी इस विशिष्ट कला को ODOP योजना में भी स्थान मिल गया है।

उनकी यह विशिष्ट कला न केवल ग्रामीण संसाधनों के बेहतर उपयोग का उदाहरण बन रही है बल्कि पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता के संदेश को भी आगे बढ़ा रही है। समय के साथ-साथ उनके द्वारा बनाई गई इन कलाकृतियों को जिला, प्रदेश और विभिन्न प्रदर्शनियों में सराहना मिली। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उनकी कला को प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ODOP (वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट) में भी शामिल किया गया है। इससे उन्हें न केवल सरकारी प्रोत्साहन मिला बल्कि उनके उत्पादों को व्यापक बाजार तक पहुंच भी मिली।

गोपाल गुप्ता बताते हैं कि उन्हें कम उम्र से ही बेकार पड़ी वस्तुओं से रचनात्मक वस्तुएं बनाने का शौक था। इस दौरान उन्होंने गेंहू के डंठल से घर की सजावट के लिए कलाकृतियां बनाई। कुछ वर्ष पहले जब उन्होंने गेहूं के डंठल से पहली बार प्रयोग किया, तब बहुत कम लोग इस कला के बारे में जानते थे। लेकिन उन्होंने इसे सीखने और आगे बढ़ाने का निश्चय किया।
गोपाल गुप्ता का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की कमी नहीं, बल्कि नजरिये की जरूरत है। खेतों में पड़ा डंठल हमारी नजर में बेकार था, लेकिन मैंने सोचा कि क्यों न इसी को नया स्वरूप देकर कला का माध्यम बनाया जाए। आज यही डंठल कई महिलाओं के जीवन में रोशनी ला रहा है।

शुरुआती चुनौतियों के बावजूद उन्होंने धीरे-धीरे इस कला को परिष्कृत किया और आज उनकी पहचान व्हीट स्ट्रॉ आर्ट के प्रमुख शिल्पकार के रूप में बन चुकी है। वर्तमान समय में विभिन्न आकार-प्रकार की दर्जनों कलाकृतियां तैयार की जाती हैं, जो स्थानीय बाजार से लेकर लखनऊ , अयोध्या, गोरखपुर के अलावा उत्तर प्रदेश के अन्य जनपदों सहित देश की राजधानी दिल्ली पहुंच रही हैं।
60 महिलाओं को मिला सशक्त रोजगार
अनोखी बात यह है कि यह कला केवल गोपाल तक सीमित नहीं रही। उन्होंने इसे महिलाओं के लिए रोजगार और आत्मनिर्भरता का माध्यम बना दिया है। आज उनके साथ करीब 60 महिलाएं नियमित रूप से काम कर रही हैं। गोपाल गुप्ता के मार्गदर्शन और प्रशिक्षण के बाद वे आज अपने परिवार की आर्थिक मजबूती में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।

प्रशिक्षण केंद्र में महिलाएं सीख रहीं हैं पूरी निर्माण प्रक्रिया
उनके प्रशिक्षण केंद्र में महिलाएं गेहूं के डंठल को साफ करने, छांटने, आकार देने से लेकर डिजाइन और तैयार उत्पाद बनाने तक की पूरी प्रक्रिया सीखती हैं। इन उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है। इस मांग से महिलाओं को महीने में अच्छी आय भी हो रही है, जिससे विकल्प आधारित रोजगार को नई पहचान मिली है।
उनका प्रयास बहराइच जिले के लिए प्रेरणा बन चुका है। प्रकृति से जुड़ी, पर्यावरण अनुकूल और स्थानीय संसाधनों पर आधारित यह कला ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार सृजन की नई मिसाल पेश कर रही है। सरकार से लेकर सामाजिक संस्थाएं भी उनके प्रयासों की सराहना कर रही हैं। गोपाल गुप्ता की इस यात्रा ने साबित किया है कि यदि सोच सकारात्मक हो और मेहनत निरंतर, तो साधारण से लगने वाले संसाधन भी असाधारण उपलब्धियां दिला सकते हैं।

जेल में बंदियों को भी दिया रचनात्मकता और नई शुरुआत का अवसर
गोपाल गुप्ता न केवल गेहूं के डंठल से अनोखी कलाकृतियां बना रहे हैं, बल्कि उन्होंने इस कला को समाज के उन लोगों तक भी पहुँचाया है जो जीवन में नई शुरुआत की तलाश में हैं। उन्होंने बहराइच जेल में जाकर बंदियों को भी इस कला का प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षण मिलने के बाद अब जेल के ये बंदी भी अपने भीतर छिपी रचनात्मकता को पहचान रहे हैं और जेल के भीतर रहते हुए अपने जीवन में कुछ नया और सार्थक करने की उम्मीदें संजोए हुए हैं।


अयोध्या श्रीराम मंदिर की विशेष कलाकृति बनी आकर्षण का केंद्र
अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर में रामलला की मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान गोपाल गुप्ता ने गेहूं के डंठल से श्रीराम मंदिर की एक भव्य कलाकृति भी तैयार की थी। उनकी यह विशेष कलाकृति जहां-जहां प्रदर्शित हुई, वहां लोगों ने इसकी खूब सराहना की। गोपाल गुप्ता के मुताबिक इस कलाकृति की इतनी अधिक डिमांड रही कि करीब 400 प्रतियां बिक गईं। उनकी इस सफलता ने न केवल उनकी कला को नई पहचान दी है, बल्कि गेहूं के डंठल जैसे बेकार समझे जाने वाले प्राकृतिक अवशेष के महत्व को भी उजागर किया है।

देवी-देवताओं से लेकर सरकारी प्रतीक चिह्न तक विविध कलाकृतियों का विस्तृत संसार
उन्होंने विभिन्न देवी देवताओं के चित्र के अलावा प्रदेश सरकार का प्रतीक चिह्न, अशोक स्तंभ और अन्य तमाम ऐसी कलाकृतियां बनाई हैं, जो देश भर में बहुत पसंद की जा रही हैं। उन्होंने गेहूं के डंठल से ही पीएम नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बिहार के सीएम नीतीश कुमार सहित अधिकारियों की नाम पट्टिकाएं बनाकर भेजी हैं। इसके लिए उन्हें भी सराहना मिली है।

राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री सहित अनेक अधिकारियों ने की प्रशंसा
गोपाल गुप्ता की कला को राष्ट्रपति, राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने सराहा है। इसके अलावा पूर्व सीएम अखिलेश यादव, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष, पुलिस महानिदेशक, आयुक्त, डीआईजी और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों ने भी उनको प्रोत्साहन पत्र भेज कर उनकी इस कला की सराहना की है। उनका यह प्रयास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया और हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के विजन को भी मजबूती दे रहा है।
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