Monday , September 1 2025

अधिकार

मत समझो मुझको तुम बेटी
मैं हूं बस बाबुल की बेटी
पर इतना अधिकार मुझे दो
सदा रहूं मैं उनकी बेटी।
बाबुल ने भारी मन से
जिस दिन मुझको विदा किया
जुड़ा नाम उस दिन से मेरा
तेरे घर की चौखट तक से।
बनी बहु
पर बोला बेटी
पर बेटी का मान नहीं
छोटी सी इक भूल पे पूछा
क्या मां बाबा ने सिखलाया
किया पराया पल भर में
जब केवल प्रश्न दो चार किया
संबंधों की जली चिता फिर
जब उसने यह उपहास किया
पुत्रवधू हूं वही रहूं बस
इतना ही अधिकार चाहिए
बहु से आगे बढ़कर कोई
नहीं मुझे अब नाम चाहिए
दे पाओ यदि
कुछ और
तो मुझको
इतना सा मेरा काम तो करना
अपनी बेटी को
उसके घर पुत्रवधू ही रहने देना
यदि मेरा अधिकार नहीं अब
बाबुल से नेह लगाने का
तो उसको भी अधिकार
न देना
नैहर से प्रीत लगाने का
पुत्रवधू हम दोनों ही हैं
बस अपने अपने आंगन में
तो मुझको भी बेटी कहकर
बेटी बेटी में फर्क न करना
हां
मुझको इस चौखट से
बस
इतना सा अधिकार चाहिए
सदा रहूं उनकी मैं बेटी
बहु का तुझसे मान चाहिए।

निधि श्रीवास्तव