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आत्मबल और परिश्रम से आता है सामाजिक परिवर्तन : आनंदीबेन पटेल

  • राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की जीवनी ‘चुनौतियां मुझे पसंद हैं’ का उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किया विमोचन
  • मजदूर दिवस को ध्यान में रखकर पुस्तक विमोचन कार्यक्रम की तिथि निर्धारित की गई- राज्यपाल

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘चुनौतियां मुझे पसंद हैं’ का विमोचन गुरुवार को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय में देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किया। इस अवसर पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अपने जीवन संघर्षों की व्यापक चर्चा करते हुए कहा कि यह पुस्तक आत्मबल, परिश्रम और सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणादायक गाथा है जो नारी शक्ति, सामाजिक बदलाव और आत्मनिर्भरता का जीवंत दस्तावेज है।

राज्यपाल ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और उनकी पत्नी सुदेश धनखड़ का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आपकी गरिमामयी उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को स्मरणीय बना दिया। उपराष्ट्रपति की धर्मपत्नी स्वयं आयुर्वेदाचार्य हैं और अपने साथ-साथ दूसरों का उपचार भी करती हैं। यह अपने आप में महिला सशक्तिकरण का उदाहरण है।

उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कानून-व्यवस्था और विकास कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि “एक संत और मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ कठिन परिस्थितियों में उत्तर प्रदेश को नई दिशा दे रहे हैं।

मजदूर भाइयों का सम्मान महत्वपूर्ण है : राज्यपाल


उन्होंने कहा कि पुस्तक के विमोचन के दिन का चयन विशेष रूप से मजदूर दिवस को ध्यान में रखकर किया गया। राज्यपाल ने कहा कि निर्माण कार्यों में लगे मजदूर कम पढ़े-लिखे नहीं होते हैं, लेकिन वे सटीक डिजाइन को समझकर सड़क, पुल और भवन जैसे भव्य निर्माण करते हैं। उनकी मेहनत को सम्मान देने के लिए यह दिन चुना गया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण में लगे मजदूरों के चरण पूजन और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा महाकुंभ के निर्माण में लगे श्रमिकों के सम्मान का भी उल्लेख करते हुए कहा कि मजदूर भाइयों का सम्मान महत्वपूर्ण है।

राज्यपाल ने साझा किए अपने जीवन संघर्ष


राज्यपाल ने अपने जीवन की चुनौतियों और संघर्षों को साझा करते हुए बताया कि उनका जन्म गुजरात के मेहसाणा जिले के एक किसान परिवार में हुआ, जहां पानी हजार फीट नीचे और खारा था। उन्होंने बताया कि हमारे पास जमीन थी, लेकिन संसाधनों की कमी थी। मेरे पिता गांधीवादी विचारों वाले थे। उन्होंने शिक्षकीय सेवा छोड़कर खेती शुरू की और गांव के लोगों को भी जागरूक किया। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे बाल विवाह, विधवा के प्रति भेदभाव और स्त्री-असमानता के खिलाफ अपने संघर्ष की चर्चा की। उन्होंने कहा कि अपने ही भतीजे का बाल विवाह रोकने के लिए उन्हें पुलिस तक बुलानी पड़ी। इसी तरह, विधवाओं को समाज में पुनः सम्मान दिलाने के लिए उन्होंने सामाजिक आंदोलन चलाए।

राज्यपाल ने बताया कि नर्मदा आंदोलन के दौरान दो बच्चियों को डूबने से बचाने की घटना उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बनी और इसके बाद उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उन्होंने महिला मोर्चा को संगठित किया और नर्मदा नदी पर बांध और नहर परियोजना के लिए किसानों को तैयार कराकर पानी खेतों तक पहुंचाया।

उन्होंने जम्मू-कश्मीर की यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि जब 1990 के दशक में आतंकवाद चरम पर था। “कन्याकुमारी से कश्मीर तक की एकता यात्रा में मैं एकमात्र गुजराती महिला थी, जो लाला चौक पर तिरंगा फहराने पहुंची। उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर किए गए कार्यों का जिक्र किया।