Sunday , February 23 2025

रामकुमारजी के लिये संघ का निर्णय सर्वोपरि रहा : दत्तात्रेय जी होसबाले

कार्यकर्ता निर्माण के लिये आदर्श था रामकुमारजी का जीवन

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सह क्षेत्र संघचालक रामकुमारजी की श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुये संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय जी होसबाले ने कहा कि रामकुमारजी के लिये संघ का निर्णय ही सर्वोपरि था। वे संघ के हर कार्य को बड़ी निष्ठा के साथ करते थे। कार्यकर्ता निर्माण करने के लिये उनका जीवन एक आदर्श था। लम्बी बीमारी से जूझ रहे क्षेत्र के पूर्व सहक्षेत्र संघचालक रामकुमारजी का निधन 19 फरवरी को हुआ था।  

निराला नगर स्थित सरस्वती शिशु मंदिर के सभागार में शुक्रवार को आयोजित श्रद्धांजलि सभा में सरकार्यवाह ने कहा कि जो जन्म लेता है उसे मरना ही होता है। मगर जन्म से लेकर मृत्यु तक वह कैसी यात्रा करता है, दूसरों के लिए क्या छोड़कर जाता है यह जानना व समझना बहुत आवश्यक है। यहां बोलने वाले लोगों ने रामकुमारजी के व्यक्तित्व के विभिन्न अनुभव प्रस्तुत किये। यहां बोलने वाले लोगों को उनके साथ रहने का पर्याप्त अवसर मिला था लेकिन मेरा लखनऊ केन्द्र बनने के बाद उनसे मिलना-जुलना अधिक हुआ। वे एक अत्यधिक अनुशासनप्रिय स्वयंसेवक थे। जब साथी कार्यकर्ता अपने साथ वाले कार्यकर्ता की चिंता करते हैं तो वह सीखने वाला पाठ बन जाता है। रामकुमारजी जैसे तपस्वी कार्यकर्ताओं से ही संघ बना है। उनके समान कार्यकर्ताओं ने ही संघ को बनाया है। 

उन्होंने कहा कि देशभर में ऐसे ही श्रेष्ठ कार्यकर्ताओं ने अपनी गृहस्थी चलाते हुये संघ कार्य किया है। संघ में एक गीत गाया जाता है जिसकी पंक्ति है कि दिव्य ध्येय की ओर तपस्वी साधक बन कण-कण गलता है… गीत जैसे साधक बनकर रामकुमारजी ने अपने जीवन को कण-कण गलाया क्योंकि उन्होंने ऐसा शाश्वत व्रत लिया था। 

सरकार्यवाह ने कहा कि जब संघ का गणवेश बदला तो हमने देखा कि वह भी बदला हुआ गणवेश पहनकर तैयार हैं। मैंने उन्हें सदैव धोती पहने ही देखा था। ऐसे में मैंने उनसे पूछा कि आपने इतनी आसानी से पैंट स्वीकार कर लिया जबकि कई बड़े कार्यकर्ता पैंट नहीं पहनना चाह रहे थे। ऐसे में रामकुमारजी ने कहा कि संघ ने कहा है तो करना है।

उन्होंने दूसरा स्मरण सुनाते हुये कहाकि बाबा साहेब आप्टे जिन्हें संघ का पहला प्रचारक कहा जाता था वे कभी चाय नहीं पीते थे जबकि श्रीगुरूजी बिल्कुल गर्म चाय पीते थे। किसी कार्यकर्ता ने आप्टेजी से पूछा कि यदि श्रीगुरूजी ने चाय पीने के लिये कह दिया तो क्या करेंगे, तब आप्टेजी ने कहा कि श्रीगुरूजी कहेंगे तो मैं खुशी-खुशी जहर भी पी लूंगा। संघ जो भी कहेगा वह मैं करूंगा। ऐसे ही कार्यकर्ता थे रामकुमारजी। एक बार वे मुझे अपने पारिवारिक विवाह का निमंत्रण देने के लिये आये। उसी तिथि पर मेरा सुदूर प्रांत में प्रवास लगा था। मैं चाहकर भी नहीं आ सकता था। अतः मैं संकोच में था। मगर मैं कुछ कह नहीं पाया। ऐसे में उन्होंने मेरा संकोच भांप लिया और कहा कि यदि आप प्रवास पर हैं तो निश्चिंत होकर जाएं। संघ कार्य ही सबसे पहले करना है।

उन्होंने बताया कि उनके प्रांत और क्षेत्र में जब सरसंघचालक एवं सरकार्यवाह का प्रवास होता था तो रामकुमारजी पूरी तल्लीनता से प्रवास क्रम तय करते थे। वे संघ को जीवन में जीने वाले एक आदर्श कार्यकर्ता थे। इतने वर्ष संघ कार्य करने के बाद भी मुझे क्या मिलेगा, ऐसा विचार उनके मन में कभी नहीं आया। संघ कार्य यज्ञ में जीवन समिधा देने वाले रामकुमारजी की यादें हर कार्यकर्ता के लिये प्रेरक मार्गदर्शक एवं ऊर्जा भरने का कार्य करेंगी। भगवान से प्रार्थना करूंगा कि ऐसा अभिभावक सभी को मिलता रहे।

श्रद्धांजलि सभा का आरम्भ करते हुये अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के पालक स्वांत रंजन ने कहा कि एक लम्बा कालखंड उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बिताया। उनकी उपस्थिति मात्र से ही कार्यक्रम अनुशासित हो जाया करते थे। उनकी जीवन की प्रत्येक स्मृति से ही स्वयंसेवकों को जीवन जीने का आदर्श प्राप्त हो जाया करता है। आज हम सब अपने इस क्षेत्र के पूर्व सह क्षेत्र संघचालक जी की श्रद्धांजलि सभा के लिये आमंत्रित हैं। रामकुमारजी का जीवन एक आदर्श स्वयंसेवक के नाते सभी के लिये अनुकरणीय है। प्रारम्भिक शिक्षा उन्होंने अपने ग्राम से ही प्राप्त की। लखनऊ से स्नातकोत्तर की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने वाराणसी से एलटी किया और प्राध्यापक बन गये। सीतापुर के एक विद्यालय से उन्होंने अपना शिक्षक जीवन आरम्भ किया। वे बचपन से ही स्वयंसेवक रहे थे। उन्होंने संघ के विभिन्न पदों का दायित्व निभाया। 1996 में वे प्रांत के सह प्रांत कार्यवाह बने। उस समय मैं भी अवध प्रांत में सह प्रांत प्रचारक बना था। ऐसे में मुझे उनका भरपूर सानिध्य मिला। राम जन्मभूमि आंदोलन जब शुरू हुआ तो एक सभा का आयोजन किया गया था, उसमें भी वे उपस्थित रहे। 

उन्होंने कहा कि जब संघ पर प्रतिबंध लगा तो वे जेल में भी रहे। चूंकि जेलर को यह ज्ञात था कि वे एक कुशल अध्यापक हैं तो वह अपने बच्चों को पढ़ाने के लिये उन्हें एक घंटे का समय देकर अपने घर भेज देता था। उन्होंने आगे कहा कि रामकुमार जी त्रुटिहीन कार्य करते थे। सूचना मिलने के अनुरूप ही वह कोई कार्य सम्पूर्ण किया करते थे। उनका आचरण एवं व्यवहार संघ के नियमों के अनुरूप ही रहता था। हिसाब-किताब के पक्के रामकुमारजी बीते कुछ समय से बीमार रहने लगे थे। मैं उनके घर जाता तो वे ज्यादा बात नहीं कर पाते थे। फिर भी एक बार जब मैंने सरसंघचालक जी के एक कार्यक्रम में चलने के लिये उनसे पूछा तो वे पूरी शक्ति लगाकर जाने को तैयार हो गये। यानी वे संघ को लेकर सदैव गम्भीर रहते थे। उनका पूरा जीवन संघ कार्य को ही समर्पित था। वे जीवन के अंतिम क्षणों तक संघ के लिये समर्पित रहे। ऐसे महान रामकुमारजी को मैं नमन करता हूं। 

संघ के क्षेत्र कार्यवाह डा. वीरेंद्र जायसवाल ने कहा कि एक बार एक कार्यक्रम में जाने के लिये मुझे सूचना दी गयी। उसी समय मेरे करीबी का विवाह था। मैंने सोचा कि एक बार रामकुमारजी से निवेदन करके अवकाश मांग लूं। ऐसा सोचकर मैं उनके पास गया मगर मैंने देखा कि रात 11 बजे भी वह अपने कार्य में तल्लीनता से लगे हुये थे। ऐसे में मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि मैं उनसे छुट्टी मांग सकूं। उन्होंने कहा कि रामकुमारजी का आचरण ही ऐसा था कि उन्हें देखकर ही स्वयंसेवकों को राह मिल जाती थी। मुझे चिंता में देखकर वे कहते थे कि वीरेंद्र जी एकदम चिंता मत कीजिये। सब हो जाएगा। ऐसा कहते हुये वे कुछ भावुक हो गये। उन्होंने भावुक शब्दों में कहा कि आज भी जब स्वयं को तनावग्रस्त पाता हूं तो मैं अपने बड़े भाई के समान या यूं कहें कि भगवान राम के समान रामकुमार जी का स्मरण करके यह विचार करता हूं कि वे इस परिस्थिति में होते तो क्या करते। मुझे स्वतः उत्तर मिल जाता है कि अब क्या करना है। मुझे प्रतीत होता है कि आज भी वह मेरा मार्गदर्शन कर रहे हैं। मैं उन्हें नमन करता हूं।  

वहीं, कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहाकि आज रामकुमारजी हम सबके मध्य नहीं हैं। मगर वे सदा हम सबके द्वारा याद किये जाएंगे। उनकी जीवन यात्रा बहुत लम्बी है। उन्होंने अपने जीवन से हम सबको बहुत कुछ सिखाया है। उनका सिखाया आज भी हम सबके लिये प्रासंगिक है। मैं एक स्वयंसेवक के रूप में उनके जीवन के आदर्शों के अनुरूप जीने का संकल्प लेता हूं। 

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुये संयुक्त क्षेत्र के कुटुम्ब प्रबोधन प्रमुख ओमपाल ने कहा कि रामकुमारजी के विषय में मैं यही कहूंगा कि उनका जीवन एक पुस्तक के समान है। उस पुस्तक को मैं तीन-चैथाई पढ़ चुका हूं। एक समय मैं संघ के कार्य से सुबह से उनके साथ अपनी मोटरसाइकिल से जा रहा था। दोपहर के समय मैंने उनसे पूछा कि आपने तो आज कहीं भोजन की व्यवस्था ही नहीं करवाई तो वे बोले ग्रामीण क्षेत्र में ही सारे कार्यक्रम थे। ऐसे में यदि कहीं भी भोजन की व्यवस्था की जाती तो ग्रामीण परिवेश के अनुसार वहां कई लोगों का भोजन बनता। काफी समय बीत जाता। संघ का कार्य होना आवश्यक है। अतः मैंने भोजन की व्यवस्था नहीं करवाई। संघ के ऐसे महान स्वयंसेवक को मैं नमन करता हूं। 

‘गृहस्थ कार्यकर्ता होने के साथ ही अखण्ड प्रवासी‘

मजदूर संघ के अनुपम ने श्रद्धांजलि देते हुये कहा कि बौद्धिक एवं बातचीत में भी उनकी निडरता स्पष्ट झलकती थी। रामकुमारजी की संघ प्रार्थना कभी नहीं छूटती थी। वे गृहस्थ कार्यकर्ता होने के साथ ही अखण्ड प्रवासी थे। वे सदा कठोर अनुशासन में जीते थे। हम सब उनका सामना करने से पहले यही सोचते थे कि वे कुछ भी पूछ सकते हैं। ऐसे में हम सारी तैयारी करने के बाद ही उनका सामना करते थे। वे सदैव हम सबको देश के प्रति समर्पित होकर जीने की शिक्षा देते रहे। उनके प्रति अपनी संवेदना प्रकट करते हुये यही कहूंगा कि हम सब उनकी दी हुई शिक्षा के अनुरूप ही जीकर अपनी सच्ची श्रद्धांजलि प्रकट कर सकते हैं। 

‘हर कार्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और निष्ठा हम सबके लिये एक सीख‘

एबीवीपी के अध्यक्ष राजशरण शाही ने कहा कि एक कार्यकर्ता को कुछ भी सिखाने के लिये वे अच्छा उदाहरण थे। वे हर कार्य बड़ी गम्भीरता के साथ करते थे। हर कार्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और निष्ठा हम सबके लिये एक सीख होती थी। उनका जाना इस विचार संगठन के लिये अपूर्णनीय क्षति है। 

‘उनका जीवन पाथेय हम सबकी प्रेरणा‘

राष्ट्रधर्म पत्रिका के निदेशक एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के सह क्षेत्र प्रचार प्रमुख मनोजकान्त ने कहा कि रामकुमारजी से मेरा सम्पर्क 1996 में हुआ था। उसके बाद उनसे मेरा निरंतर सम्पर्क रहा। वे जब भी मिलते तो मुझसे एबीवीपी के बारे में सारी सूचना लेते थे। वे संघ की सभी आनुषांगिक संगठनों की भी पूरी चिंता करते थे। वे अपने कार्य के प्रति समर्पित रहते थे। जब भी वे किसी बौद्धिक कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिये जाते तो पूरी तैयारी करते थे। जब मैं उनसे कहता कि आपको तो सब ज्ञात है। ऐसे में आपको इतनी तैयारी की क्या आवश्यकता है। इसका उत्तर देते हुये वे कहते कि मैं एक शिक्षक हूं। इसीलिये मैं सदैव तैयारी के साथ ही कहीं बोलने जाता हूं।

उन्होंने कहा कि वे शिक्षक जैसे ही डांटते भी थे। अभिभावकत्व उनमें भरा पड़ा था। उनका जोर था कि हर चीज ठीक से लिखी-पढ़ी जाये। राष्ट्रधर्म पत्रिका के सम्बंध में वे काफी चिंतित रहते थे। सीतापुर में उनके ही प्रयास से राष्ट्रधर्म पत्रिका की काफी प्रतियां जाती थीं। वे हर काम को बड़ी गम्भीरता से करते थे। राष्ट्रधर्म पत्रिका के निदेशक के रूप में जब भी मैं वहां जाता था तो मुझसे पत्रिका के संदर्भ में किसी को कोई शिकायत नहीं होती थी। यह उनके निष्ठापूर्ण कार्य करने के कारण ही सम्भव था। आपातकालीन चिकित्सा में भी वे मानसिक रूप से सक्रिय थे। यह उनकी आंतरिक गहरी शक्ति का प्रमाण है। उनके प्रति भीतर से भावना उमड़ती है कि वे अब नहीं रहे लेकिन उनका जीवन पाथेय हम सबकी प्रेरणा बनी रहेंगी। मैं उन्हें नमन करता हूं। 

‘स्वयंसेवकों को पीड़ा में देखकर उसका निदान करते‘

सह संगठन मंत्री इतिहास संकलन योजना के संजय श्रीहर्ष ने कहा कि मैं सदैव उन्हें मास्टर साहब ही कहा करता था। वह मुझे हर छोटी-बड़ी बात के लिये टोकते और कार्य सिखाते थे। मैं उनसे बिना किसी संकोच के हर कार्य के लिये कहता और वे उसे कर भी देते। एक बार सीतापुर में एक खंड में कार्य नहीं हो पा रहा था। मैंने इसकी चिंता उनसे प्रकट की। उन्होंने उक्त खंड मुझसे मांग लिया और देखते ही देखते ही उन्होंने उस खंड में अटके पड़े सभी कार्य सम्पन्न कर दिये। वे निरंतर प्रवास पर ही रहते थे। वे स्वयंसेवकों को पीड़ा में देखकर उसका निदान करने में देरी नहीं करते थे। संघ शिक्षावर्गों में लगभग 20 वर्षों से वे सभी आंकड़ों का हिसाब-किताब रखते थे। वे कभी भी अपनी कक्षा छोड़कर नहीं आते थे। वे हर कार्यकर्ता के बारे में सारी सूचना रखते थे। वे किसी कार्यकर्ता के अनुपस्थित होने पर उसका विकल्प भी तलाश लेते थे। उनके रहने से सारी संख्या भी मिल जाती थी। वे भले ही सशरीर हमारे बीच नहीं हैं मगर वे आज भी हम सबको अपना आशीर्वाद दे रहे हैं। 

कार्यक्रम के अंत में क्षेत्र प्रचारक अनिल, सह क्षेत्र कार्यवाह अनिल श्रीवास्तव, अवध प्रांत प्रचारक कौशल, काशी प्रांत प्रचारक रमेश, प्रांत संघचालक सरदार स्वर्ण सिंह, प्रांत कार्यवाह प्रशांत शुक्ला, क्षेत्र शारीरिक प्रमुख अखिलेश, क्षेत्र प्रचारक प्रमुख राजेन्द्र, सह प्रांत प्रचारक संजय, प्रांत सम्पर्क प्रमुख गंगा सिंह, मंत्री असीम अरूण, मंत्री दयाशंकर सिंह, ओएसडी सीएम डा. श्रवण बघेल एवं संजीव सिंह, एमएलसी अनूप गुप्ता, एमएलसी अवनीश सिंह, महिला आयोग की अध्यक्ष अपर्णा यादव, पूर्व महापौर संयुक्ता भाटिया, कल्याण सिंह कैंसर संस्थान के निदेशक एमएलबी भट्ट, शकुंतला विश्वविद्यालय के कुलपति संजय सिंह, विधायक डा. नीरज बोरा, भाजपा प्रदेश महामंत्री संजय राय आदि गणमान्यों ने स्वर्गीय रामकुमारजी को पुष्प अर्पित किये।