वर्धा (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी, गीतकार, उपन्यासकार, स्तंभकार और लोक गायक मृत्युंजय कुमार सिंह के साथ महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में शनिवार को जनसंचार विभाग की ओर से महादेवी वर्मा सभागार में संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रभारी कुलपति प्रो. कृपाशंकर चौबे ने की।
मृत्युंजय कुमार से प्रदर्शनकारी कला विभाग के अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश भारती, गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग के अध्यक्ष डॉ. राकेश मिश्रा व हिंदी साहित्य विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार ने उनके समस्त रचना संसार को लेकर उनसे संवाद किया।
डॉ. सुनील कुमार ने मृत्युंजय कुमार सिंह लिखित खंडकाव्य ‘द्रौपदी’ को लेकर पूछे गए सवाल पर मृत्युंजय कुमार ने कहा कि द्रौपदी लिखते समय मन में कई प्रश्न थें। इसे लिखते समय लेखिका प्रतिभा राय, इरावती कर्वे आदि की रचनाओं का संदर्भ लिया गया और परकाया प्रवेश कर अनेक प्रश्नों का उत्तर खोजा गया।
डॉ. राकेश मिश्रा द्वारा उनकी रचना ‘गंगा रतन विदेशी’ को लेकर पूछे गए प्रश्न पर उन्होंने कहा कि यह उपन्यास पीढ़ियों के इतिहास को समेटता है। उपन्यास की तैयारी सन 2004 में प्रारंभ की थी। इस उपन्यास में गयाना, मॉरीशस, गिरमिटिया मजदूर आदि का वर्णन किया गया है।
डॉ. ओमप्रकाश भारती ने उनकी सृजन यात्रा पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि कुछ बनने का लक्ष्य नहीं था। गीत तो मैं बचपन से गाया करता था।
इंडोनेशिया में बिताए गए दिनों पर उन्होंने कहा कि इंडोनेशिया में महाभारत की परंपरा समृद्ध है। वहां कीचक रामायण प्रसिद्ध है। वहां के लोग महाभारत को अपना इतिहास मानते हैं। इस दौरान डाॅ. मनोज राय, डाॅ जयंत उपाध्याय, डाॅ. रूपेश कुमार सिंह, डाॅ. संदीप सपकाले तथा शोधार्थियों द्वारा पूछे प्रश्नों का मृत्युजंय कुमार सिंह ने लंबे अनुभव से अपने अंदाज में समाधान किया।।उनके द्वारा प्रस्तुत गीतों से सभागार मंत्रमुग्ध हुआ।
मृत्युंजय कुमार सिंह ने अपने रचना संसार और एक पुलिस अधिकारी के रूप में आए व्यापक जीवन अनुभव को विस्तार से साझा किया। मृत्युंजय कुमार सिंह का स्वागत प्रो. कृपाशंकर चौबे द्वारा सूत माला, अंगवस्त्र और विश्वविद्यालय का प्रतीक चिन्ह देकर किया गया। मराठी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. संदीप सपकाळे ने स्वागत भाषण किया। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजेश लेहकपुरे ने किया तथा हिंदी साहित्य विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. रूपेश कुमार सिंह ने आभार माना।
कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन एवं कुलगीत की प्रस्तुति से तथा समापन राष्ट्रगान से किया गया। इस अवसर पर अध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।