लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। जाति व्यवस्था हमेशा से हमारे समाज में नहीं थी। वह समाज में थोपी गई। आज दलितों की समस्याओं का समाधान केवल आरक्षण से ही संभव नहीं है। आरक्षण के साथ दलित वर्गों को उत्पादन के साधनों में भी हिस्सेदारी मिलनी चाहिये। दलितों के मध्य क्रीमी लेयर जैसा कोई वर्ग नहीं है। क्यूंकि, केवल आर्थिक उन्नति में ही दलित वर्ग के साधन संपन्न व्यक्तियों को सामाजिक भेदभाव से मुक्ति नहीं मिल सकती।
यह विचार अखिल भारतीय खेत मज़दूर सभा के संयुक्त सचिव और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष विक्रम सिंह ने जन विचार मंच द्वारा प्रेस क्लब में आयोजित विचार गोष्ठी “विकास की दौड़ और हाशिए का समाज” में व्यक्त किये।
संगोष्ठी के आरंभ में वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार वाल्मीकि ने हाशिए के समाज को व्याख्यायित करते हुये कहा कि सिर्फ दलित वर्ग ही नहीं, वरन महिलाएं, अल्पसंख्यक, ट्रांसजेंडर, शरणार्थी सभी हाशिए के समाज का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि इनकी बड़ी आबादी का होने के बावजूद यदि यह समाज, उपेक्षित और कमजोर रहा तो इसका कारण इन समाज सत्ता पर कमजोर पकड़ है।
उन्होंने कहा- यह एक विचारणीय प्रश्न है कि यह बहुसंख्यक समाज संगठित होकर सामने क्यूँ नहीं आ रहा। श्री वाल्मीकि ने बताया कि वर्ष 2001 में राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में “सामाजिक न्याय समिति” का गठन किया गया था, जिसने पिछड़ी जातियों का वर्गीकरण कर विभिन्न जातियों की स्थिति के आधार पर समानुपातिक आरक्षण की सिफारिश की थी, किन्तु इस रिपोर्ट पर कालांतर में कोई कार्यवाही नहीं हुई।
दोनों वक्ताओं ने जाति जनगणना के महत्व को रेखांकित करते हुये कहा कि अगले वर्ष जब जनगणना की जायेगी, उस समय सभी को जातिगत जनगणना के पक्ष में आवाज़ उठानी चाहिये, ताकि समाज के विभिन्न वर्गों की सामाजिक आर्थिक स्थिति कैसी है, स्पष्ट हो सके।
संगोष्ठी का संचालन प्रतुल जोशी ने किया। इस अवसर पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष आईशी घोष, जनवादी महिला समिति की प्रदेश अध्यक्ष मधु गर्ग, सामाजिक कार्यकर्ता नरेश कुमार वाल्मीकि, नाईश हसन, अवन्तिका सिंह, अजय शेखर सिंह समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।