Thursday , November 21 2024

आसान नहीं है एक स्त्री के लिए दीवाली की सफाई

(संध्या श्रीवास्तव)

यूं ही लोग नहीं कहते
आसान नहीं है दीवाली की सफाई
तन मन दोनों ही महसूस करते हैं
एक कसक एक दर्द
हर साल की तरह इस साल भी
जब करने बैठी दीवाली की सफाई
कोने कोने से निकाल कर
एक एक सामान को लगी झाड़ने
सबसे पहले नजर आया वो बक्सा
जिसमें मम्मी पापा ने सहेज कर दी थी पूरी गृहस्थी
सामान तो कुछ भी न बचा उसका
पर यादें हैं उस रात की
जब आखिरी बार उत्सुकता से देखा था उन्होंने
कुछ छूट तो नहीं गया
बस झाड़ कर फिर रख दिया उसे
उसी जगह पर हर बार की तरह
फिर आई बारी उस अलमारी की
जिसमें रखें थे पुराने एलबम
उन्हें उठाया और खो गई
उन पुरानी तस्वीरों में
जाने कितने चेहरे ऐसे नजर आये
जो सिर्फ अब बचे हैं तस्वीरो में
आंखों से निकल पड़ी आंसू की झड़ी
फिर पलटती गई एक एक करके पन्ने
कुछ रिश्ते ऐसे नजर आये
जिन पर जम गई थी परतें धूल की
एल्बम की धूल तो झाड़ दी
पर कैसे झाड़े उस धूल को
जो पड़ गई है रिश्तों में
फिर बांध कर रख दी एक बार
अलमारी में वो पोटली
ऐसी ही जाने कितनी पोटलियां निकली
और फिर सहेज कर रख दी गई
अगले साल दीवाली तक के लिए
हर साल निरंतर चला आ रहा है
ये सिलसिला