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मानसिक परेशानी छिपाएं नहीं अपनों को बताएं : मुकेश कुमार शर्मा

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) पर विशेष

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। आज की भाग दौड़ भरी जिन्दगी और बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने लोगों की जीवनशैली को सीधे तौर पर प्रभावित किया है। एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लोगों के पास न तो समय से खाने और न ही सही से सोने का वक्त है। शारीरिक श्रम से भी नाता टूट चुका है। आम जनमानस को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए ही हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का इस साल का विषय है “कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य।“ विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट से भी इसकी गंभीरता को समझा जा सकता है, जो बताती है कि मानसिक विकारों यानि अवसाद और चिंता के कारण विश्व में प्रत्येक वर्ष करीब 12 अरब कार्यदिवसों का नुकसान होता है।

पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर मुकेश कुमार शर्मा का कहना है कि कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कई कारकों के बीच सबसे अहम् होता है सुपरवाइजर, जिसका मुख्य दायित्व होता है कार्यस्थल पर तनावमुक्त वातावरण की स्थापना करना। इसके लिए कर्मचारी को प्रोत्साहन देना, रणनीतिक सहयोग देना, समस्याओं के समाधान के लिए साथ मिलकर काम करना तथा सभी के चेहरे पर मुस्कान लाना अहम् है।

सुपरवाइजर में छिपे दो महत्वपूर्ण शब्द “सुपर” और “वाइज” के महत्व को सही से समझना आवश्यक है। यहाँ सुपर का मतलब है अपने अहम् से ऊपर उठकर सहयोग करना और वाइज का मतलब है हर वह प्रयास करना जिससे कार्यस्थल खुशियों से भरी जगह के रूप में जाना जाये। जहाँ लोग चेहरे पर मुस्कान के साथ आएं और मुस्कुराते हुए वापस घर जाएँ और यकीन मानिये इस मुस्कान का सीधा और गहरा सम्बन्ध मानसिक स्वास्थ्य के साथ है।

श्री शर्मा का कहना है कि मानसिक परेशानी या समस्याओं को बताने की जरूरत है न कि छिपाने की। शुरुआती अवस्था में केवल काउंसलिंग से ही अधिकतर मानसिक विकार दूर हो जाते हैं। सामाजिक भेदभाव के कारण भी मानसिक विकार को लोग छिपाते हैं और मनोचिकित्सक के पास जाने से कतराते हैं क्योंकि वह सोचते हैं कि ‘लोग क्या कहेंगे।‘

आज के दिवस पर यह संकल्प लेने की जरूरत है कि लोग क्या कहेंगे जैसी झिझक को पूरी तरह से हम दूर करेंगे और एक सम्पूर्ण स्वस्थ समाज बनाने में भागीदार बनेंगे। नींद कम आना, उलझन, घबराहट, हीन भावना से ग्रसित होना, जिन्दगी के प्रति नकारात्मक सोच का विकसित होना, एक ही विचार मन में बार-बार आना, एक ही कार्य को बार-बार करने की इच्छा होना, अनावश्यक डर लगना, शक होना, कानों में आवाज आना और नशे की लत होना मानसिक अस्वस्थतता के लक्षण हैं। ऐसे लक्षण नजर आने पर चिकित्सक से परामर्श जरूर लेना चाहिए ताकि बीमारी को जल्दी दूर किया जा सके। इसको लेकर कोई भ्रम या भ्रान्ति मन में नहीं पालनी चाहिए। यह भी जानना जरूरी है कि चिंता या तनाव किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है, उल्टे यह कई अन्य दिक्कतों को जरूर पैदा कर सकता है। इसके लिए जरूरी है कि तनाव व चिंता पैदा करने वाले कारणों से दूर रहें। ऐसे में नियमित स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान देना चाहिए और पूरी नींद लेनी चाहिए।