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माहवारी पर महिलाओं के साथ ही पुरूषों से बात करना जरूरी : प्रमुख सचिव

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। वात्सल्य द्वारा माहवारी स्वच्छता पर आधारित “रेड टाक” राउण्ड टेबल कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य माहवारी से सम्बन्धित मुद्दों को समाहित करते हुए एक समेकित एवं स्वस्थ चर्चा को बढ़ावा देना एवं विषय विषेषज्ञों के माध्यम से एक सार्थक चर्चा से नीतिगत चर्चा की ओर ले जाकर एक सार्थक पहल शुरू करना था।
कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि पार्थ सारथी सेन शर्मा (प्रमुख सचिव, मेडिकल हेल्थ एवं परिवार कल्याण) मौजूद रहे। वहीं डा. नेहा जैन (निदेशक यूपीडेस्को), एकता (एडिशनल डायरेक्टर, स्कूल शिक्षा), डॉ. वीणा (डिप्टी डायरेक्टर, राष्ट्रीय बाल एवं किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम), डा. सुगन्धा सुमन, एकता सिंह, डा. अरूनधती मुरलीधरन, डा. नीतू, भुवना-बी, डा. संगीता गोयल, कुमार बिक्रम, डा. शालू सहित कई विशेषज्ञ, स्वैच्छिक संगठन, विकास प्रचारक, अन्तर्राष्ट्रीय एन.जी.ओ., सामुदायिक कार्यकर्ता आदि शामिल हुए।


पार्थ सारथी सेन शर्मा ने कहा कि हमारी लगभग 25 प्रतिशत महिला जनसंख्या नियमित रूप में माहवारी से गुजरती है। इस मुद्दे के प्रति लोगो में काफी झिझक है, शर्म है। इसके लिए महिलाओं के साथ पुरूषों से बात करना बहुत महत्त्वपूर्ण है। उन्होने बताया कि इस मुद्दे पर कई सरकारी विभाग है जिन्हें मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। जैसे ड्रिंकिंग वाटर एण्ड सैनिटेशन, पोल्यूशन, एजुकेशन, एस.एल.आर.एम., हेल्थ, अर्बन लोकल बाडीज़ आदि हैं। यह बहुत गम्भीर एवं संवेदनशील विषय है जिस पर बहुत तत्परता से कार्य करने की आवश्यकता है।


डा. नीलम सिंह ने बताया कि माहवारी एक प्राकृतिक व मासिक होने वाली क्रिया है जो लगभग संसार की आधी जनसंख्या में होती है। भारत देश में 355 मिलियन महिलाएं हर माह माहवारी से गुजरती है। हालांकि ये संसार की लगभग आधी जनसंख्या की घटना है, लेकिन अभी भी इसमें एक स्वस्थ एवं सम्मानजनक तरीके से महिलायें अपने आपको सम्भालने में बहुत सारी चुनौतियों का सामना करती है। जिसमें कि जेन्डर असामना, सामाजिक दुराग्रह, सांस्कृतिक, गरीबी आदि प्रमुख है। विशेष रूप से जो किशोरी बच्चियां है वों दुर्व्यवहार, शोषण एवं सामाजिक मजाक का सामना करती है। लड़कियां माहवारी के दौर में न सिर्फ शारीरिक तकलीफ से गुजरती है बल्कि मानसिक दबाव भी सहती हैं। यह लड़़कियों की गतिशीलता बल्कि उनकी आजादी पर भी प्रभाव डालती है। मासिक स्वच्छता अपनाने की आवश्यकताओं की पूर्ति न हो पाने के कारण भारत में लगभग 23 मिलियन लडकियां हर वर्ष अपना स्कूल छोड़ देती है।


डा. नेहा जैन ने मेन्स्ट्रुअल कप के अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि यह स्वास्थ्य, वातावरण आदि के साथ साथ काॅस्ट इफेक्टिव है। उमा ने बताया कि माहवारी सिर्फ एक महिला की बात नहीं बल्कि यह एक परिवार, समाज के साथ साथ स्वास्थ्य एवं वातावरण से जुड़ा हुआ मुद्दा है। उन्होने इसके निस्तारण से सम्बन्धित व्यवहारों को साझा करते हुए बताया कि 30 प्रतिशत पानी में, 28 प्रतिशत लैण्ड फिलिंग में होता है, जो कि हमारे स्वास्थ्य एवं वातावरण के लिए खतरनाक हो सकता है।


डा. वीणा ने डिस्पोजेबल सैनेटरी पैड्स के बारे में बताया कि ये मुख्यतया प्लास्टिक व सिन्थेटिक, पेट्रोलियम पदार्थों से बने हुए होते हैं। जिनकी वजह से पर्यावरर्णीय प्रदूषण में वृद्वि होने की सम्भावना होती है। देखा गया है कि एक सैनेटरी पैड को डिकम्पोज़ होने में 500 से 800 वर्ष लग जाते है और उसमें काफी सारा प्लास्टिक वेस्ट होता है। भारत देश में लगभग 1,13000 टन मासिक धर्म अपशिष्ट प्रतिवर्ष निकलता है जिसका निस्तारण सही मायने से नहीं किया जाता है।
अजिंक्य धार्या (पैड केयर लैब्स) ने वेस्ट कनंड्रम ;रिड्यूस, रियूज, रिसाइकिल पर जानकारी देते हुए बताया कि माहवारी वेस्ट डिस्पोजल के लिए देश के विभिन्न भागों में काम करते हैं और शीघ्र ही लखनऊ में मेन्स्ट्रुअल वेस्ट रिसायकिल के लिए काम किया जायेगा।


अरूनधती ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि माहवारी प्रबन्धन सिर्फ सेनेटरी पैड या अन्य प्रोडक्ट का सही प्रयोग करना ही नहीं बल्कि इस दौरान महिलाओं में होने वाली शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं का प्रबन्धन भी है। अतएव हम सभी को इस दौर से गुजर रही महिलाओं, लड़कियों की काउन्सिसिंल करनी अति महत्त्वपूर्ण है।
सुचिता चतुर्वेदी (सदस्य राज्य बाल आयोग, उत्तर प्रदेश) ने अपने सम्बोधन में कहाकि सरकार के द्वारा माहवारी मुद्दे पर काम करने के लिए कई विभाग एवं अधिकारी है। किन्तु यदि इस मुद्दे पर संवेदना के साथ काम किया जाये तो निश्चित रूप से इस मुददे पर व्याप्त चुप्पी अवश्य टूटेगी।